क्या दशहरा मनाओगे, क्या अब भी रावण जलाओगे?

क्या दशहरा मनाओगे, क्या अब भी रावण जलाओगे?

दिल्ली में कुछ दिन पहले हुई नन्ही बच्ची से बलात्कार की वारदात के आरोपी (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली:

राजनैतिक और धार्मिक घटनाओं को परे किया जाए तो भारत के वर्तमान काल या कहें कि इस कलयुग में जो हो रहा है उसकी कल्पना शायद खुद भगवान राम ने सतयुग में भी नहीं की होगी। मैं यहां न तो देश के विकास की बात कर रहा हूं, न ही किसी मजहब से जुड़े तौर-तरीकों की। मैं बात कर रहा हूं उन मासूम बच्चियों की जिनके साथ हैवानियत का खेल खेला गया। जिस उम्र में बच्चियां पिता के कंधे पर खेलकर अपनी किलकारियों से घर की रौनक बन जाती हैं उसी उम्र में कुछ इंसानी दिमागों में बैठे हैवानों ने उनकी किलकारियों को चीख में बदल दिया। जिन बच्चियों को देखकर कल तक उनके मां-बाप अपनी हर फिक्र भूल जाया करते थे, वही मां-बाप आज उनकी यह हालत कैसे देख पा रहे होंगे। सोचना आसान नहीं होगा...जिस उम्र में खिलौनों की चाबी तक न भरनी आती हो ऐसी उम्र में अपने साथ हुई हैवानियत को समझ पाना उन मासूम बच्चियों के लिए कतई मुमकिन नहीं होगा। लेकिन कहीं न कहीं इसका दर्द उनके नन्हे बचपन पर रह जरूर जाएगा....।  

बुराई पर अच्छाई की कैसी जीत?
नवरात्रों में जब देवियों को पूजा जाता है तभी यह घटना भी हुई। नवरात्र खत्म होते-होते ही दशहरा आ गया, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना जाता है। इस दिन रावण का पुतला दहन करके यह माना जाता है कि सभी बुराईयों से समाज को निजात मिलेगी, लेकिन पिछले कुछ दिनों में होने वाली इन घटनाओं को देखकर इस बार का दशहरा सिर्फ एक ढोंग ही लग रहा है। कलयुग के यह दैत्य सतयुग के उस रावण को भी शर्मसार कर देंगे जिसका पुतला हम जलाते हैं।

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दिमागों में बैठी हैवानियत कैसे मिटे...
क्या सच में रावण का पुतला जलाने से दिमाग की कालकोठरी में भरी हैवानियत खत्म हो जाएगी? क्या सच में सच्चाई एक बार फिर जीत पाएगी? यह फैसला कर पाने में मैं खुद को लाचार महसूस कर रहा हूं। समझ नहीं पा रहा हूं कि जो हमारे सामने एक इंसानी शरीर लिए खड़ा है उसके अंदर की हैवानियत इतनी उग्र कैसे हो सकती है। अगर रावण जला भी दिया जाएगा तो भी शायद दिमागों में भरी इस हैवानियत तक इसकी लपटें नहीं पहुंच पाएंगी। यानी दिमागों में भरा हैवानियत का दैत्य फिर तिलमिला कर उठेगा और न जाने किस घर की सुख-शांति को सन्नाटे और आंहों में बदल देगा। एक बार फिर रावण का पुतला फूंक दिया जाएगा, एक बार फिर हम तमाशबीन बनकर तालियां बजाएंगे..और घर चले जाएंगे...।