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कांग्रेस में फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं, राहुल और प्रियंका एक ही हैं

मनोरंजन भारती
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2025 20:57 pm IST
    • Published On दिसंबर 23, 2025 20:32 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2025 20:57 pm IST
कांग्रेस में फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं, राहुल और प्रियंका एक ही हैं

कांग्रेस में प्रियंका गांधी को लेकर सबसे पहले इमरान मसूद का बयान आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि यदि प्रियंका को प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो इंदिरा गांधी की तरह पाकिस्तान को सबक सीखा देंगी. कहने का मतलब है कि इमरान मसूद ने धीरे से प्रियंका गांधी की वकालत की है. सबको प्रियंका में इंदिरा गांधी दिखती हैं. वह सभी को सुगम और सहज लगती है. मगर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इसकी वजह से प्रियंका को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बना देना चाहिए. प्रियंका को लोकसभा में आए महज 12 महीने ही हुए हैं, ऐसे में उन्हें कांग्रेस का नेता या नेता प्रतिपक्ष कैसे बनाया जा सकता है. इतना जरूर है कि राहुल गांधी की अनुपस्थिति में प्रियंका गांधी संसद के इस सत्र में आगे आईं और बड़े ही अच्छे ढंग से विपक्ष का नेतृत्व किया, खासकर जी राम जी या मनरेगा मामले में समूचे विपक्ष का गांधी प्रतिमा तक मार्च करना, फिर लोकसभा अध्यक्ष की चाय पार्टी में जाना. हालांकि यह निर्णय खरगे साहब का था. मगर प्रियंका के इस अंदाज को बहुतों ने सराहा, उन्हें लगा कि राहुल गांधी इस चाय पार्टी में नहीं जाते, लेकिन प्रियंका गईं.

जब कि सच्चाई यह है कि लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की चाय पार्टी में ना जाने का फैसला पार्टी का था. इस बार जाने का भी पार्टी ने ही तय किया था. इतना जरूर है कि राहुल गांधी के राजनीति करने और प्रियंका के राजनीति करने के एप्रोच में फर्क है. साथ ही राहुल गांधी का बीजेपी के प्रति रवैया कुछ ज्यादा ही सख्त रहता है, इसकी वजह यह है कि जिस ढंग से बीजेपी ने पहले सोनिया गांधी को निशाना बनाया उसे राहुल गांधी नहीं भूले हैं. साथ ही राहुल को पता है उनसे लड़कर किस तरह से सोनिया गांधी ने यूपीए की सरकार बनवाई थी. यही नहीं, सोनिया गांधी के बाद बीजेपी ने जिस ढंग से राहुल गांधी का मजाक बनाया उन्हें पप्पू तक साबित करने की कोशिश की. ऐसे में राहुल का बीजेपी के प्रति रवैया सख्त होना लाजिमी है.

राहुल गांधी लगातार 2004 से लोकसभा का चुनाव जीत रहे है. जहां तक पार्टी को सत्ता में लाने की बात है इस बार कांग्रेस ने लोकसभा में 99 सीटें जीत कर बहुत सारे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की उम्मीद बढ़ाई. राहुल गांधी अधिकतर राज्यों के चुनाव हारे कुछ में जीते मगर लगे रहे. उनकी छवि हार कर भी लड़ने वाले नेता की है, हिम्मत इतनी कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल ही चल दिए. मगर राहुल गांधी भी क्या करें. खाए अघाए कांग्रेसी नेताओं से आप क्या ही करवा लेंगे, आधे तो बीजेपी के स्लीपर सेल हैं और जो आधे लड़ रहे हैं उसकी टांग खींचने में लगे रहते हैं.

राहुल वैसे नेता हैं जो खुद खूब मेहनत करते हैं और अपने नेताओं से भी वही उपेक्षा करते है. भले ही उनके पास कोई अहमद पटेल जैसा राजनैतिक सूझबूझ वाला व्यक्ति नहीं है. उनकी अपनी एक युवा टीम है जो अपने ढंग से पार्टी चला रही है और उसे ही यह जवाब देना है कि पार्टी का प्रदर्शन सुधर क्यों नहीं रहा. जो मुद्दा वह लेकर चल रहे हैं उससे सफलता मिलेगी या नहीं या क्यों नहीं मिल रही है. कांग्रेस में सत्ता संघर्ष की जो बात कही जा रही है उसमें कोई सच्चाई नहीं है. राहुल और प्रियंका एक ही हैं .प्रियंका भी यहीं चाहेंगी कि राहुल ही पार्टी को लीड करें, इसलिए इधर उधर की बातें बेमानी हैं. फिलहाल कांग्रेस में कोई वैकेंसी नहीं है. वैसे भी कोई भी सख्त बॉस नहीं चाहता.

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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