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This Article is From Jul 30, 2015

बाबा की कलम से : इस रात की सुबह नहीं...

Reported By Manoranjan Bharti
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  • Updated:
    जुलाई 30, 2015 17:44 pm IST
    • Published On जुलाई 30, 2015 16:54 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 30, 2015 17:44 pm IST
याकूब मेमन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रात के तीन बजे अदालत लगाई। ये अपने आप में ऐतिहासिक घटना है, खास कर भारत की न्यायपालिका के इतिहास में। इसकी शुरुआत हुई सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद जिसमें याकूब की याचिका को खारिज कर दिया गया और उसकी फांसी बहाल रखी गई।

याकूब के वकीलों ने तुरंत शाम को ही राष्ट्रपति के यहां दया याचिका लगा दी। राष्ट्रपति के पास इस दया याचिका को गृह मंत्रालय के पास भेजने के अलावा कोई चारा नहीं था। गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी मामले की गंभीरता को समझ रहे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री के यहां हो रही कैबिनेट की बैठक में नहीं जाने का फैसला लिया और अपने वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक करने लगे।

करीब 8 बजे रात में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बाहर खड़े मीडिया को बताया कि सिफारिश राष्ट्रपति को अभी तक नहीं भेजी गई मगर जल्द ही भेज दी जाएगी। राष्ट्रपति के पास जब गृह मंत्रालय की सलाह पहुंची तो उन्होंने भी सरकार से कुछ स्पष्टीकरण मांगे और उनका फैसला रात के दस बजे के बाद आया कि राष्ट्रपति ने याकूब मेमन की दया याचिका ठुकरा दी है और अब उसे सुबह नागपुर जेल में फांसी दी जाएगी।

उधर नागपुर के द्वारका होटल में याकूब के दो भाई अलग-अलग कमरों में टीवी से चिपके पल-पल की खबर ले रहे थे। होटल के मैनेजर ने बताया कि याकूब का परिवार जब भी नागपुर आता है द्वारका होटल में ही ठहरता है। इधर दिल्ली में घटनाक्रम तेजी से घूम रहा था। दिल्ली के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और याकूब के वकील चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के घर पहुंच गए, तब तक आधी रात गुजर चुकी थी।

ऐसा नहीं है कि यह पहली बार नहीं हो रहा था। निठारी के सुरेंदर कोली की फांसी भी चीफ जस्टिस ने डेढ़ बजे रात में रोक दी थी। इसी उम्मीद में याकूब के वकील ने चीफ जस्टिस का दरवाजा खटखटाया था। मीडिया का जमावड़ा चीफ जस्टिस के घर तीन कृष्ण मेनन मार्ग पर जमा रहा। चीफ जस्टिस ने भी हालात की गंभीरता को देखते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस प्रफुल्ल चंद पंत और जस्टिस अमिताभ रॉय की बेंच को यह मामला सुनने के लिए कहा।

सारी मीडिया जस्टिस मिश्रा के घर तुगलक रोड पर भागी, तब तक वहां पुलिस की बैरिकेडिंग हो चुकी थी। हमें वहां घुसने नहीं दिया गया। मगर 15 मिनट बाद ही याकूब के वकील सामने से आते दिखे। मालूम चला कि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी। हम सब भागे सुप्रीम कोर्ट की ओर। वहां तैनात पुलिस भी चकित थी कि ये सब क्या हो रहा है। हमने कहा कि गेट खोलिए सुनवाई होने वाली है। वो लोग भी हैरान थे, लेकिन तब तक उनके पास भी मैसेज आ गया था कि मीडिया को अनुमति दी जाए क्योंकि मामले की सुनवाई खुले कोर्ट यानी कोर्ट रूम चार में होगी।

जज साहब आ चुके थे, कोर्ट मास्टर बुलाए गए क्योंकि फैसला उन्हें ही लिखवाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी खुलवाई गयी ताकि जज साहब पुराने फैसले और कानून की किताबों का सहयोग ले सकें। सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी को पक्ष रखना था, उन्हीं का इंतजार हो रहा था। उनके आते ही रात के 3 बज कर 20 मिनट पर जिरह शुरू हुई।

पहले वचाव पक्ष के वकील ने कहा कि याकूब की दया याचिका खारिज होने के 14 दिनों बाद ही फांसी होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने शत्रुघ्न चौहान केस का हवाला दिया जिसमें अदालत ने यही फैसला सुनाया था। जाहिर है सरकारी वकील ने इसका विरोध किया। तमाम जिरह के बाद 4 बज कर 58 मिनट पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाया कि याकूब मेमन की याचिका एक बार फिर खारिज की जाती है। उसे अपने वचाव करने का पूरा मौका दिया गया।

एक तरफ सुप्रीम कोर्ट की भव्य ईमारत पर सुबह की पहली किरण पड़ने वाली थी और यहां से एक हजार 63 किलोमीटर दूर नागपुर जेल में याकूब के जीवन को अस्त करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। पूरा देश सो रहा था या जाग कर हमारी खबरों को देख रहा था या नहीं, मगर मैं महसूस कर रहा था कि रात के स्याह अंधेरे से निकला यह न्याय एक नए उजाले का संकेत दे रहा था और ये रात कभी खत्म न होने वाली रात की तरह थी। मगर याद रखिए हर रात के बाद सुबह होती ही है, मगर याकूब के लिए इस रात की सुबह नहीं थी।

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