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This Article is From Nov 27, 2018

EPFO के आंकड़ों को समझने का तरीका और ईज़ ऑफ डूइंग नथिंग का ढिंढोरा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 27, 2018 16:50 pm IST
    • Published On नवंबर 27, 2018 16:50 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 27, 2018 16:50 pm IST
Huffington post के अक्षय देशमाने ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दावेदारी को लेकर एक लंबी स्टोरी की है. अक्षय ने लिखा है कि इस रपट के लिए उन्होंने बैठकों के मिनट्स के सैकड़ों पन्ने देख लिए हैं. कई प्रमुख लोगों से बात की है और सरकारी पत्रचार को भी देखा है तब जाकर यह रिपोर्ट की है. रिपोर्ट 20 नवंबर को छपी है. रिपोर्ट यह है कि कैसे मोदी सरकार ने रैंकिंग में सुधार लाने के लिए विश्व बैंक के साथ लॉबिंग कर रैंकिंग की प्रक्रिया में बदलाव करवाया. जब उससे कामयाबी नहीं मिली तो कुछ मामूली सुधारों के ज़रिए रैंकिंग को हासिल करने की कोशिश की गई. लवीश भंडारी जैसे अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बदले में भारत के आर्थिक सुधारों को विश्व बैंक ने प्रभावित किया.

अक्षय ने सूचना के अधिकार से कई दस्तावेज़ हासिल कर दिखाया है कि कैसे वित्त मंत्री जेटली ने प्रतियोगी परीक्षा की चालू तरकीबों का इस्तमाल कर रैकिंग में सुधार हासिल कर लिया और कोई ठोस बदलाव भी नहीं किया. इससे अर्थव्यवस्था को खास लाभ भी नहीं हुआ. मोदी सरकार के शुरुआती दौर में वित्त सचिव रहे अरविंद मरियम ने सवाल किया है कि अगर रैंकिंग सुधर रही है तो निवेश क्यों नहीं बढ़ रहा है. 2011 में जीडीपी का 38 प्रतिशत निवेश होता था तब तो ईज ऑफ डूइंगि बिजनेस में भारत की रैंकिंग भी अच्छी नहीं थी लेकिन 2018 में जब बहुत अच्छी हो गई तब निवेश जीडीपी का 27 फीसदी क्यों है. आप खुद भी इस रिपोर्ट को पढ़ें और समझें.

बिजनेस स्टैंडर्ड में 26 नवंबर के रोज़ ईशान बख्शी की रिपोर्ट कर्मचारी भविष्यनिधि फंड (EPFO) के आंकड़ों को लेकर है. इससे जुड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या के आधार पर दावा किया जा रहा है कि लोगों को नौकरियां मिल रही हैं. डेटा से पता चलता है कि यह संख्या इसलिए बढ़ी हुई दिख रही है कि प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY) के कारण कंपनी को सरकार से अनुदान मिलता है. इस लाभ के लिए जो लोग पहले से नौकरी में थे वही ज़्यादातर जुड़े हैं. इससे पता नहीं चलता है कि नई नौकरियां बढ़ी हैं या पहले से काम कर रहे लोग ही योजना का लाभ लेने के लिए जुड़े हैं.

ईशान ने लिखा है कि ज़्यादातर 15000 से कम की सैलरी वाले लोगों को PMRPY का लाभ मिलता है. इससे भी पता चलता है कि किस लेवल की औपचारिक नौकरियों का सृजन हो रहा है. यह भी देखना होगा कि तीन साल बाद जब सरकार अपना हिस्सा जमा करना बंद कर देगी तब क्या कंपनियां इन कर्मचारियों को EPFO में इनका हिस्सा जमा कराएंगी या फिर इन्हें काम से हटा देंगी. आप जानते हैं कि सरकार ने तीन साल तक कंपनियों के हिस्से को जमा करने का नियम बनाया है. जो हिस्सा कंपनियों को देना है, वो सरकार दे रही है. एक तरह से सरकार जनता का पैसा देकर, जनता के लिए आंकड़े खरीद रही है, रोज़गार नहीं दे रही है.

अगस्त 2016 में PMRPY लॉन्‍च हुई थी. पहले साल में इसे लेकर खासा उत्साह नहीं था. मात्र 425,636 नए लाभार्थी EPFO से जुड़े. सितंबर 2017 से सितंबर 2018 के बीच यह संख्या तेज़ी से बढ़ी है. करीब 80 लाख लाभार्थी जुड़े हैं. नए डेटा से पता चलता है कि PMRPY के तहत नए लाभार्थी की संख्या 74 लाख है. जबकि इस एक साल में EPFO से जुड़ने वालों की संख्या करीब 80 लाख ही है.

अक्टूबर 2018 तक PMRPY के तहत पंजीकृत संस्थानों की संख्या है 1,27,122 है. 74 लाख नए लाभार्थी जुड़े हैं. तो औसतन एक संस्थान में 62 कर्मचारी जुड़ते हैं. एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्री (ASI) के आंकड़ों में जो औसत कर्मचारियों की संख्या निकलती है वो PMRPY में पंजीकृत संस्थानों में काम करने वाले लोगों के बराबर ही है. आप हिन्दी के अखबारों में ऐसी पड़ताल नहीं देखेंगे. बेहतर है आप भी इस रपट को देखें और इसकी कमियों या खूबियों पर विचार विमर्श करें.

मुझे कई दिनों से एक दर्शक मित्र इस बारे में समझा रहे हैं. हम लोग हर विषय को नहीं समझ सकते हैं मगर जो उन्होंने लिखा है और मुझे बताया है मैं आपके सामने रख रहा हूं. उन्होंने एक उदाहरण दिया कि मध्य प्रदेश में नियम है कि सरकारी टेंडर में वही ठेकेदार हिस्सा लेगा जिसने 20 लोगों का EPFO में पंजीकरण कराया है. इससे हुआ यह कि ठेकेदार टेंडर लेने के लिए दोस्त रिश्तेदारों को कर्मचारी की जगह दिखाने लगे. उनका एक महीने का वेतन जमा कर दिया. EPFO का नियम है कि एक महीने का वेतन जमा करने के बाद उसका खाता 36 महीने तक सक्रिय रहता है. भले आप उसके बाद कुछ न जमा करें. इससे आंकड़े तो बढ़ गए लेकिन रोज़गार नहीं बढ़ा. एक ज़िले में औसतन 300 प्रकार के ठेकेदार होते हैं. आंकड़ों में इस तरह 6000 रोज़गार पैदा हो गया लेकिन असल में कितना हुआ, इस पर संदेह है.

कई बार संस्थान 15 दिन की ही सैलरी देते हैं और काम देना बंद कर देते हैं मगर उसका पंजीकरण EPFO में रहता है. डेटा में आपको दिखेगा कि एक को रोज़गार मिला है और व्यवस्था औपचारिक हो रही है मगर यह औपचारिक कहां हुई. मज़दूरी मिली 20 दिनों की और आंकड़ों में एक रोज़गार बढ़ गया. हम पत्रकारों को यह भी देखना चाहिए ऐसे कितने संस्थान हैं जो 1 या 2 कर्मचारियों की वृद्धि के कारण EPFO के दायरे में आए, तब वास्तविक वृद्धि 1 है या 20. आप जानते हैं कि 20 से अधिक कर्मचारी होने पर EPFO में पंजीकरण कराना पड़ता है. 19 कर्मचारी हैं तब आपने पंजीकरण नहीं कराया. मगर एक नया आया तो आपको कराना पड़ गया. खाते में यह 20 रोज़गार दिखेगा लेकिन वास्तविकता तो यही है कि 19 तो पहले से ही काम कर रहे थे.

हर संस्थान को हर महीने कर्मचारियों का हिस्सा जमा कराना होता है. इसे ECR REMITTENCE कहते हैं. एक तरह की प्राप्ति रसीद हुई. लेकिन जब आप IWU.EPFINDIA.GOV.IN/CAIU/defWebList क्लिक करेंगे तो वहां उन संस्थानों की संख्या दिखेगी जिन्होंने ताज़ा जानकारी नहीं दी है. देश भर के भविष्य निधि संगठन के 120 कार्यालय हैं. 100 से अधिक कार्यालयों ने उनके कार्यक्षेत्र में आने वाले संगठनों की ताजा जानकारी ही नहीं दी है. ये तो हाल है जबकि ऐसा करना अनिवार्य है. तो आप नहीं जांच पाएंगे कि किसी कंपनी में अक्टूबर महीने में 20 लोग थे तो नवंबर में 20 ही हैं या कम हो गए. तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि कितना रोज़गार पैदा हुआ. कई कंपनियां ऐसी होती हैं जो एक ही महीने का डेटा जमा करती हैं.

उनकी बातचीत को इस पोस्ट में इसलिए शामिल कर रहा हूं ताकि आपमें से कोई इस विषय का जानकार हो या क्षमता रखता हो तो वेबसाइट पर जाकर चेक करे. कंपनियों की सूची में जाकर देखे कि कितने लोग पिछले महीने काम कर रहे थे और कितने लोग इस महीने काम पर हैं. तभी जाकर हम सरकार के दावों को ठीक से समझ पाएंगे.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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