राष्ट्रपति का यह चुनाव काफी दिलचस्प मोड़ लेता रहा है। सबसे पहले ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मिलने के बाद कांग्रेस उम्मीदवारों के नामों को सार्वजनिक कर दिया।
मगर ममता ने मीडिया को यह नहीं बताया कि तृणमूल की तरफ से उन्होंने केवल एक नाम सोमनाथ दा का बताया था। कांग्रेस को इस पर सफाई देने में 16 घंटे लग गए तब तक राजनैतिक गलियारों में न जाने क्या क्या कयास लगाए गए।
ममता और मुलायम के तीनों उम्मीदवारों में से सबसे चौंकाने वाला नाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का था। ममता ने एक ही साथ सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी तीनों को हैसियत दिखा दी। जाहिर है तीनों सुन्न और अपमान से गुस्से में थे।
हांलाकि राजनीति की नब्ज समझने वाले लोगों को मनमोहन सिंह का नाम चकित नहीं कर रहा था। कांग्रेस को अधिकतर सांसद दबी जुबान में कह रहे थे कि मनमोहन सिंह को रायसीना हिल भेजना चाहिए और प्रणब या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए। मगर यह हो न सका।
कहा यह भी जा रहा है कि देश में एक बड़ी लॉबी है जो प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्रालय से बाहर देखना चाहती है। यह बिजनेस लॉबी है। और यह भी कहा जा रहा है कि नए वित्तमंत्री वोडाफोन पर सरकार के निर्णय को पलटने वाले हैं।
कांग्रेस ने साफ किया कि मनमोहन सिंह 2014 तक प्रधानमंत्री बने रहेगें। चलो किसी चीज में तो पार्टी की तरफ से साफ बात कही गई। अब मनमोहन सिंह के जाने और राहुल गांधी के आने पर कयास लगने बंद हो जाएंगे।
अब शुरू होती है असली राजनीति... जिस दिन ममता और मुलायम सिंह साझा प्रेस कॉफ्रेंस करते हैं उसी दिन साढ़े 11 बजे रात को सोनिया गांधी और मुलायम सिंह की मुलाकात होती है और वह कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने का वादा सोनिया गांधी से करते हैं। अब सवाल यह है कि मुलायम सिंह छह घंटों में ममता को दी जुबान से पलट कैसे गए। कुश्ती के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह राजनीति में भी कभी चित तो कभी पट में यकीन रखते हैं।
प्रेस क्लब की गॉसिप पर यदि यकीन किया जाए तब शायद मुलायम सिंह को डीए केस की फाइल दिखाई गई। तब किसी की थ्योरी है कि प्रणब दा के पक्ष में एक बड़ा औद्योगिक घराना काफी सक्रिय हुआ। जबकि उसी से जुड़ा दूसरा पक्ष जो मुलायम के काफी नजदीक है। और यहीं से दबाव बना और नेताजी धोबी पछाड़ में हार गए और मैडम के सामने रात के अंधेरे में पिछले दरवाजे से हाजिर किए गए। खबर दो दिन बाद ही लीक हो पाई। राजनीति में साम, दंड, भेद सबका इस्तेमाल करना कांग्रेस से अच्छा कोई नहीं जानता।
अब ममता अकेले कलाम के नाम पर अड़ी रहीं। दरअसल जैसे ही ममता−मुलायम ने कलाम, मनमोहन और सोमनाथ दा का नाम लिया था कांग्रेस को मानो सांप सूंघ गया था। नेताओं के मोबाइल बंद हो गए थे। प्रणब दा जब उस रात अपने दफ्तर से निकले तो उदास और खामोश दिख रहे थे। हम सब में से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई कुछ पूछे। यदि सूत्रों की माने तो प्रणब दा ने उसी रात कांग्रेस आलाकमान को यह जता दिया था कि पार्टी ने उनके नाम का समर्थन नहीं किया तो वह राजनीति के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन से भी संन्यास ले लेगें। तब जा कर पार्टी हरकत में आई। कई लोग 13 तालकटोरा रोड की तरफ भागे। प्रणब दा को मनाया गया और कई महत्वपूर्ण नेताओं के मोबाइल ऑन हो गए।
खबरें आने लगी कि कांग्रेस प्रणब दा के नाम की घोषणा करेगी और यह सब रात के ढाई बजे हो रहा था। अगले दिन 10 बजे सोनिया गांधी से प्रणब दा मिले फिर कैबिनेट की बैठक में पहुंचे जहां राष्ट्रपति पद के दो उम्मीदवार आमने-सामने थे। यानि मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी। इसके तुरंत बाद सोनिया गांधी ने यूपीए की बैठक बुलाई। सिवाए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सभी सहयोगी मौजूद थे। सोनिया गांधी ने प्रणब दा के नाम की घोषणा कर दी और प्रणब दा को टीआर बालू ने शॉल उढ़ा कर बधाई दी।
प्रणब दा जब वित्त मंत्रालय पहुंचे तो वहां मिठाई बंट रही थी। दादा के लिए शुगर फ्री मिठाई मंगाई गई थी और पत्रकारों के लिए बर्फी और लड्डू। काफी गहमागहमी थी प्रणब दा को लगातार फोन आ रहे थे जिसमें अधिकतर मुख्यमंत्री, राज्यपाल और दादा के कोलकाता के पुराने दोस्त थे। कुछ फोन लैंड लाईन पर आ रहे थे तो कुछ मोबाइल पर। दादा का मोबाइल उनके सहयोगी प्रदुयत गुहा के पास था। उन्होंने मोबाइल एनडीटीवी के मनोरंजन भारती को पकड़ा दिया उस मोबाइल में प्रणब दा के लिए 68 मिस्ड कॉल और 64 अनरेड मैसेज थे।
पूरा मीडिया प्रणब दा के परिवार के पीछे पड़ा था। उनकी बेटी शर्मिठा ने कहा कि उन्हें दुख है कि बंगाल की ही एक पार्टी ने बंगाल के सबसे काबिल उम्मीदवार को अपना समर्थन नहीं दिया। ईशारा ममता की तरफ था। दादा की पत्नी ने कहा कि सब नसीब का खेल है और जब प्रणब मुखर्जी अपने दफ्तर से निकले तो सबको धन्यवाद कहा और बहन ममता बनर्जी से भी अपील की कि वह भी अपना समर्थन उन्हें दें। इस तरह पिछले 48 घंटे तक चला राजनैतिक नाटक पर थोड़ी देर के लिए इंटरवल हो गया। आगे एनडीए का ड्रामा होना बाकी था।
This Article is From Jun 21, 2012
रायसीना की रेस : यूपीए के अंदर की कहानी
Manoranjan Bharti
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Updated:नवंबर 20, 2014 15:20 pm IST
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Published On जून 21, 2012 21:27 pm IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2014 15:20 pm IST
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