इस सवाल पर लौट आइये इससे पहले कि हम जवाब देने के बजाए नज़रें चुराने लगें. राम का नाम साधना और अराधना के लिए है या इसके नाम पर हत्या करने के लिए है. अभी भले लगता हो कि हमारी ड्राइंग रूम से दूर शायद दिल्ली से बहुत दूर कुछ लोगों का यह काम है और भारत जैसे देश में अपवाद हैं तो आप गलती कर रहे हैं. इनके पीछे की सियासी खुराक कहां से आ रही है, आप इतने भी भोले नहीं है कि सब बताना ही पड़े. अगर इसे नहीं रोका गया, ऐसे लोगों को राजनीतिक सिस्टम से बाहर नहीं किया गया तो आप ड्राइंग रूम में उतने शरीफ़ नहीं लगेंगे. जिन लोगों ने तबरेज़ को मारा है या सुबोध कुमार सिंह को मारा है उन्हें हत्यारा बनने से बचाया जा सकता था. एक तबका है जो दिल्ली मुंबई में बैठकर टीवी चैनलों और ट्विटर व्हाट्सएप के ज़रिए इन लोगों को उकसा रहा है. खुराक दे रहा है. मान्यता दे रहा है. हमें भीड़ की हत्याओं की जांच और गहराई से करनी चाहिए. हत्यारे को पकड़ने के साथ यह पता लगाना चाहिए कि क्या इन्हें किसी तरह की सियासी सोच ने ऐसा करने के लिए मजबूर किया. वे किन लोगों की सोहबत में थे, उनके दोस्त कौन थे, उनकी बातें क्या थीं. यह बीमारी ड्राइंग रूम देखकर रास्ता नहीं बदलती है बल्कि कहीं से भटकती हुई ड्राइंग रुम में आ जाती है जहां आपका टीवी सेट लगा है.
झारखंड के सरायकेला खरसावां में तबरेज़ अंसारी की हत्या की जांच की एक रिपोर्ट से कुछ बातें पता चली हैं. दो तरह की कमेटियां जांच कर रही हैं इनमें से एक कमेटी की जांच से पता चल रहा है कि डाक्टरों की लापरवाही ने तबरेज़ अंसारी की जान ले ली. 23 जून की सुबह तबरेज़ अंसारी की मौत हुई थी.
सूत्रों से जो पता चला है कि उसके अनुसार 18 जून की सुबह 6 बजे के आस-पास तबरेज़ अंसारी जब अस्पताल लाया गया तब उसकी बेसिक जांच तक नहीं की गई. न तो ब्लड प्रेशर लिया गया और न ही अल्ट्रासाउंड हुआ. उस वक्त अस्पताल में डॉ. ओ पी केसरी ने तबरेज़ को देखा था. डॉ. ओ पी केसरी ने देखा और बिना जांच के मल्टीपल इंजरी लिखकर जेल ले जाने दिया. किसी की हेड इंजरी में ब्रेन हेमरेज को पकड़ना कोई मुश्किल बात नहीं होती है. मगर डॉ. ओ पी केसरी ने मल्टीपल इंजरी लिखने के बाद भी इसकी आशंका पर विचार नहीं किया. सिर्फ घुटने का एक्सरे लिख गए. उसके बाद तबरेज़ अंसारी को जेल ले जाया गया.
शाम को उसे वापस लाया गया ताकि मज़िस्ट्रेट के सामने पेश होने से पहले मेडिकल हो सके. तबरेज़ को तब डॉ. शाहिद अनवर ने देखा और घुटने का एक्सरे कराया. डॉ. शाहिद अनवर भी समझ सकते थे कि मल्टीपल इंजरी है तो स्थिति गंभीर हो सकती है. ब्रेन हैमरेज के लक्षण को समझ सकते थे. उनसे भी चूक हुई और तबरेज़ को वापस ले जाने के लिए फिट लिख दिया. तबरेज़ अंसारी को 18 जून से 23 जून की सुबह तक रखा गया था. जेल में भी तबरेज़ को मेडिकल वार्ड में ही रखा गया था. वहां डॉ. प्रदीप कुमार ने तबरेज़ को देखा और छुट्टी पर चले गए. उनकी जगह डॉ. ओ पी केसरी ने जेल जाकर तबरेज़ को देखा. क्या तब भी डॉ. ओ पी केसरी तबरेज़ की बिगड़ती हालत को नहीं समझ पाए.
डॉ. ओ पी केसरी, डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. शाहिद अनवर, इन तीन डॉक्टरों की नज़र तबरेज़ अंसारी 18 जून से 22 जून की रात तक गुज़रा और तीनों यह नहीं समझ सके कि इसकी हालत इतनी गंभीर है. जबकि उसे रात भर की पिटाई के बाद लाया गया था. तबरेज़ ने हालत खराब होने की शिकायत भी की थी. इन तीन डॉक्टरों में से एक डॉ. शाहिद अनवर जेल में हैं. क्या बाकी दो डॉक्टरों पर कोई कार्रवाई होगी. यही नहीं जांच में यह भी निकल कर बात सामने आई है कि स्थानीय पुलिस ने अपने सीनियर को घटना के बारे में नहीं बताया. घटनास्थल से सबूत तक इकट्ठे नहीं किए. 17-18 जून की रात 1-2 की घटना है. पुलिस के पहुंचने में सुबह के 6 बज गए.
झारखंड सरकार ने घटना के बाद ही एसआईटी और एसडीओ की टीम बना दी थी. एसडीओ की टीम में अस्पताल के सिविल सर्जन भी थे जिसके बारे में अभी बता रहा था. तबरेज़ की मौत की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट अभी नहीं आई. शुरूआती रिपोर्ट के अनुसार ब्रेन हैमरेज से उसकी मौत हुई है. उस पर बाइक चोरी का इल्ज़ाम था यह अभी तक साफ नहीं है कि बाइक उसकी थी या चोरी की. चोरी की भी होती तो भी उसकी हत्या का इजाज़त देश का कोई कानून नहीं देता है. अगर तबरेज़ अंसारी की मौत इस वजह से हुई कि अस्पताल के डाक्टरों ने इलाज नहीं किया, तो उसकी हत्या दो दो बार हुई. एक सड़क पर और दूसरी बार अस्पताल में.
18 लोग आखिर किन बातों के असर में हत्या के आरोपी बन गए. उनके भीतर इतनी नफरत कहां से आई, चैनलों से नेताओं के भाषण से या व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से. इन लोगों को यह आइडिया कहां से आया कि तबरेज़ अंसारी से जय श्री राम बुलवाना चाहिए और न बोलने पर मार देना चाहिए. पप्पू मंडल गिरफ्तार हुआ है. उसके फेसबुक पेज पर तलवारों के साथ यह तस्वीर बता रही है कि अपराध के पीछे की वैचारिक पृष्ठभूमि का जानना बहुत ज़रूरी है. हथियारों से साथ आने वाला यह गौरव भाव न जाने किन किन भावी हत्यारा बना रहा है. पवन मंडल के अलावा कमल महतो, सुमंत महतो, प्रेमचंद मेहली, सोनाराम मेहली, सत्यनारायण नायक, मदन नायक, भीम मंडल, महेश मेहली. सोनामू प्रधान, चामू नायक. इनमें से पांच लोग हैं जिन्होंने दसवीं तक ही पढ़ाई की है. कोई बेरोज़गार है, कोई मज़दूर है. सबकी उम्र 30 साल से कम ही है. क्या ऐसी ही भीड़ नहीं थी जिसने बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को मारा था. इसलिए कह रहा हूं कि यह घरों में हत्यारा पैदा करने का प्रोजेक्ट है. इस विचारधारा को रोकिए.
उन्नाव से भी एक ऐसी घटना सामने आई है. आरोप है कि वहां क्रिकेट खेल रहे बच्चों को इसलिए मारा गया है क्योंकि उन्होंने जय श्री राम नहीं बोला. पुलिस इसकी जांच कर रही है. घटना गुरुवार की है. उन्नाव के एक मदरसे के बच्चे इस मैदान पर क्रिकेट खेल रहे थे तभी कुछ नौजवान आए और उनसे जय श्री राम बोलने के लिए कहने लगे. न बोलने पर, उनके हाथ से बल्ला छीना और मारने लगे. गुरुवार को 10 से 15 साल के ये बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. मदरसे के लोगों का कहना है कि इनसे जय श्री राम बोलने के लिए कहा गया. न बोलने पर मारा गया. पुलिस ने दो लोगों का गिरफ्तार किया है. एक का नाम आदित्य शुक्ला है. इसके फेसबुक पेज पर बजरंगी लिखा है. दावा करता है कि बीजेपी के लिए काम करता है मगर पार्टी की स्थानीय इकाई ने इसकी पुष्टि नहीं की है. गिरफ्तार किए हुए लोगों को रिहा कराने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए. आखिर जब यह किसी पार्टी का सदस्य नहीं है तो फिर इतने लोग कहां से आ गए इसके लिए. पुलिस मामले की जांच कर रही है मगर अभी जय श्री राम वाले प्रसंग की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन बच्चों की हालत बता रही है कि उन्हें मारा गया है. एक बात यह भी सामने आ रही है कि खेल के मैदान को लेकर झगड़ा हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कर्नाटक का बवाल
कर्नाटक में बागी विधायकों का मामला मुंबई के होटल से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर कांग्रेस और जेडीएस के 10 बागी विधायकों से नहीं मिल रहे थे. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शाम 6 बजे तक स्पीकर से मिलें. विधायक तो मुंबई के होटल में थे. अचानक अफरा तफरी मच गई. दो विशेष विमानों से उड़कर मुंबई से बेंगलुरू आए. आप देख सकते हैं कि विधायक जी दौड़ते ही भाग रहे हैं ताकि 6 बजे से पहले स्पीकर रमेश कुमार से मिल लें. 4 मिनट की देरी हो गई. इतने दिनों से होटल में आराम के कारण भी विधायक जी दौड़ कर 4 मिनट कवर नहीं कर सके. स्पीकर रमेश कुमार ने बेंगलुरू में कहा कि उन्हें फैसला लेने में वक्त चाहिए. उनकी उम्र 70 साल की है और वे बिजली की गति से काम नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सांवैधानिक प्रावधनों के तहत अंतरात्मा की आवाज़ पर निष्पक्ष फैसला लूंगा. जिन 18 विधायकों ने बगावत की है, उनमें से 6 विधायकों के खिलाफ दलबदल कानून के तहत पहले से मामला चल रहा है जिसका फैसला स्पीकर को लेना है. इस बगावत से बीजेपी 107 पर पहुंच गई है. सरकार के लिए 104 विधायक चाहिए और कांग्रेस जेडीएस 100 पर अटक गए हैं.
इसी मामले की शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई कि स्पीकर से मुलाकात हुई, और क्या हुआ. मुकुल रोहतगी ने कहा कि स्पीकर ने प्रेस कांफ्रेंस कर ठीक नहीं किया है. स्पीकर ने कहा कि विधायकों को मेरे पास आना चाहिए था न कि सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था. स्पीकर ने तुरंत फैसला नहीं दिया.
बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी स्पीकर पर आरोप लगाते रहे. कहा कि यह मामला केवल इस्तीफे का है. दूसरी तरफ अभिषेक मनु सिंघवी ने वीडियो रिकार्डिंग दी कि स्पीकर ने विधायकों से मुलाकात की है. कोर्ट ने पूछा कि स्पीकर का फैसला क्या है तो बताया गया कि स्पीकर ने फैसला नहीं दिया है. यह बात आई कि संविधान में पूरी प्रक्रिया है कि विधायक के इस्तीफे को मंज़ूर करने से पहले क्या क्या करना होता है. मुकुल रोहतगी ने कहा कि कांग्रेस ने व्हीप जारी किया है ताकि विधायक अयोग्य घोषित हो जाएं. सिंघवी के तर्क हैं कि इस्तीफा देकर दलबदल के प्रावधानों से नहीं बचा जा सकता है. विधायकों का इस्तीफा भी सही फार्मेट में नहीं था. ये सब अदालत में बहस के दौरान बातें कही गईं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले को 5 न्यायधीशों की संविधान पीठ को भेजा है. मंगलवार को फिर सुनवाई होगी. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में समयबद्ध फैसला देने का निर्देश दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला है कि अगर स्पीकर को निजी तौर पर इस्तीफे की सूचना मिलले तो स्पीकर की जिम्मेदारी है कि वो उसके पीछे के कारणों की जांच कराए. वकील राजीव धवन ने भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को आदेश नहीं देना चाहिए था कि विधायक स्पीकर से मिलें. ये एक राजनीतिक घटनाक्रम है.