भारत की राजनीति में ऐसे कम ही मौके आते हैं, जब संसद और विधानसभा में एक ही मुद्दे पर किसी पार्टी का रुख अलग-अलग दिखा हो. 9 दिसंबर को ऐसा ही कुछ हुआ. एक तरफ संसद में कांग्रेस के सांसद गौतम अदाणी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुखौटा पहनकर हंगामा कर रहे थे, तो दूसरी तरफ तेलंगाना विधानसभा में जब विपक्षी पार्टी BRS के विधायक 'अदाणी-रेवंत भाई-भाई' लिखी टी-शर्ट पहनकर आए, तो उन्हें विधानसभा के बाहर ही रोक दिया गया. संसद में जहां कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में है, वहीं तेलंगाना में कांग्रेस सत्ता में है.
सवाल यह उठता है कि यदि मुद्दा गौतम अदाणी का है, तो तेलंगाना से लेकर संसद तक कांग्रेस का एक ही रुख होना चाहिए. लेकिन संसद में और तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस के अलग-अलग रुख से स्पष्ट है कि मुद्दा अदाणी का नहीं है, बल्कि कांग्रेस के लिए मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध का है. भारत की संसद के कामकाज को बाधित कर वह ऐसे एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती है, जिसके तार अमेरिकी डीप स्टेट से जुड़े हुए हैं.
अमेरिकी डीप स्टेट पर खुलासा
लोकतंत्र और मीडिया की स्वतंत्रता के लिए अमेरिका अपने आपको पूरी दुनिया में सबसे बड़ा पैरोकार मानता है. मीडिया के ज़रिये दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका कैसे अपना आधिपत्य स्थापित करता है, इसका दिलचस्प खुलासा अभी हाल ही में फ्रांस के समाचार पत्र मीडियापोर्ट ने किया है. इसने सनसनीखेज खुलासा किया है कि अमेरिकी सरकार मीडिया रिपोर्टों के ज़रिये पक्षपातपूर्ण खबरों को प्रकाशित करवाती है, जिससे दुनिया के कुछ विशेष देशों की लोकतांत्रिक सरकारों को अस्थिर किया जा सके.
मीडियापोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) को अमेरिका की जो बाइडेन की अगुआई वाली डेमोक्रेटिक सरकार से जबरदस्त वित्तीय मदद मिली है. फ्रांस के मीडियापोर्ट का यह खुलासा भारत के लिए इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि OCCRP ने पिछले तीन सालों में भारत के खिलाफ कई ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित की हैं, जिनसे न सिर्फ भारत की राजनीति प्रभावित हुई, बल्कि चुनावों पर भी इनका असर पड़ा.
अमेरिका का डीप स्टेट
आज विश्व में दो विचारधाराओं का संघर्ष दिख रहा है. इसमें एक तरफ लेफ्ट लिबरल विंग की विचारधारा है और दूसरी तरफ राइट विंग की विचारधारा है. अमेरिका में लंबे समय तक लेफ्ट लिबरल के सत्ता में रहने से इस विचारधारा का वहां एक ईकोसिस्टम विकसित हुआ और यही ईकोसिस्टम अमेरिका का डीप स्टेट है, जिसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं. इस डीप स्टेट में मीडिया, न्यायपालिका, सरकारी संस्था और व्यापार समूह का एक ऐसा गठजोड़ है, जो न सिर्फ अमेरिका में, बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी लेफ्ट लिबरल विचारधारा के लिए जमीन तैयार करने का काम करता है. इस डीप स्टेट को अमेरिका में जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक सरकार का पूरा संरक्षण मिला. हाल ही में 4 नवंबर को अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिका के लेफ्ट लिबरल ईकोसिस्टम के इस डीप स्टेट के चेहरे को बेनकाब कर दिया.
मीडिया में अमेरिकी डीप स्टेट
अमेरिका का ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) खोजी पत्रकारों की ऐसी संस्था है, जो विश्व के हर देश में मौजूद है. खोजी पत्रकारों की यह फौज किसी भी देश के बारे में रिपोर्ट OCCRP की वेबसाइट पर प्रकाशित करती है. इस संस्था को चलाने के लिए धन का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी सरकार से तो आता ही है, जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से भी आता है. पिछले साल, OCCRP ने पेगासस पर प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत सरकार पेगासस सॉफ्टवेयर के ज़रिये राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों की जासूसी कर रही है. लेकिन जब यह मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंचा, तो सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के पूरे मामले को ही बेबुनियाद बताया. सबसे मजेदार बात यह है कि इसी OCCRP की रिपोर्ट को आधार बनाकर 'द वॉशिंगटन पोस्ट', 'न्यूयॉर्क टाइम्स', 'द गार्डियन' जैसे समाचारपत्र रिपोर्टें प्रकाशित कर सनसनीपूर्ण माहौल पैदा करने का काम करते हैं.
न्यायपालिका में अमेरिकी डीप स्टेट
मीडिया के साथ-साथ अमेरिका की न्यायपालिका में भी लेफ्ट लिबरल ईकोसिस्टम की गहरी पैठ है. इस पैठ का खुलासा तब हुआ, जब नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति जो बाइडेन की उन नियुक्तियों पर सोशल मीडिया में सवाल खड़ा किया, जो वह न्यायपालिका में अपनी सरकार के अंतिम दौर में कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूथ सोशल के पोस्ट में लिखा - "The Democrats are trying to stack the Courts with Radical Left Judges on their way out the door... Republican Senators need to Show Up and Hold the Line - No more Judges confirmed before Inauguration Day...!"
चुनाव परिणाम आने के बाद से राष्ट्रपति जो बाइडेन 31 जजों की नियुक्ति कर चुके हैं. साल 2021 से जोड़ें, तो राष्ट्रपति बाइडेन ने अमेरिकी अदालतों में करीब 213 जजों की नियुक्तियां की हैं. अमेरिकी अदालतों की इन्हीं नियुक्तियों में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक नियुक्ति ब्रायन पीस की न्यूयॉर्क अदालत में की थी. न्यूयॉर्क की ब्रायन पीस की इसी अदालत ने पिछले महीने भारत के गौतम अदाणी पर अमेरिकी निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया है.
अमेरिकी डीप स्टेट और भारत
वैसे तो अमेरिका और भारत के बीच राजनीतिक, व्यापारिक और सामरिक संबंध पिछले एक दशक से लगातार बेहतर ही हो रहे हैं. लेकिन अमेरिका की संस्थाओं में मौजूद डीप स्टेट की हमेशा यही मंशा रहती है कि भारत में भी लोकतांत्रिक तरीके से वही सरकार चुनी जाए, जो लेफ्ट लिबरल विचारधारा की हो. इसलिए 2014 के बाद जब भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, तो अमेरिका के ही नहीं, भारत के भी लेफ्ट लिबरल ईकोसिस्टम को यह बदलाव अस्वीकार्य था. यही कारण है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब दूसरी बार प्रधानमंत्री मोदी जबरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में आए, तो अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने जनवरी 2020 में डावोस के विश्व आर्थिक मंच में मोदी के चुनाव को "the biggest and most frightening setback..." कहा.
अमेरिका का यही डीप स्टेट लगातार प्रधानमंत्री मोदी और भारत के हितों के खिलाफ कुचक्र रचता है. लेकिन जब अमेरिका में भी रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई, तो अमेरिका के डीप स्टेट ने गौतम अदाणी पर निशाना साधने के लिए न्यायपालिका का रास्ता चुना. क्योंकि गौतम अदाणी ने खुलकर डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन किया था और उनकी जीत को शक्ति देने के लिए अमेरिका के इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश करने की योजना बना रहे थे. अमेरिका के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने के लिए जिस दिन गौतम अदाणी ने अमेरिकी बाजार में 600 मिलियन डॉलर का बॉण्ड जारी किया, ठीक उसी दिन न्यूयॉर्क की ब्रायन पीस की अदालत ने उनकी कंपनी के खिलाफ आरोपपत्र जारी कर दिया.
एक तीर कई शिकार
अमेरिकी डीप स्टेट ने एक तीर से कई निशाने साधने का काम किया. गौतम अदाणी के ज़रिये न सिर्फ अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए चुनौतियां खड़ा करने का प्रयास किया गया, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ भी माहौल बनाने का मौका तैयार किया गया. इसी मौके का फायदा उठाने के लिए संसद में जिस मुद्दे पर कांग्रेस हंगामा और विरोध कर रही है, उसी मुद्दे पर तेलंगाना में अपना बचाव कर रही है. इससे साफ है कि अमेरिकी डीप स्टेट की जड़ें भारत में कहां-कहां तक फैली हुई हैं और उसका मकसद क्या है.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...
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