उत्तराखंड के पिथौरागढ़ महाविद्यालय में एक शानदार आंदोलन चल रहा है. यहां की लाइब्रेरी में नई किताबें नहीं हैं. 90 के दशक की किताबें हैं. ज़माने बाद किताब को लेकर आंदोलन की बात सुन रहा हूं. छात्रों के माता-पिता को भी होश आया है. वे भी छात्रों के समर्थन में पोस्टर बैनर लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रयोगशाला की हालत ख़राब है. यहां सात हज़ार विद्यार्थी पढ़ते हैं. 120 प्राध्यापकों के पद हैं लेकिन तीस चालीस अध्यापक नहीं हैं. छात्र वहां से मेसेज कर रहे हैं.
बेतिया मेडिकल कॉलेज (बिहार) के छात्रों ने लिखा है कि उनके साथ भेद-भाव किया जाता है. छात्र छात्राएं धरने पर बैठे हैं. मुझे मैसेज किया है.
हल्द्वानी और देहरादून मेडिकल कॉलेज में फ़ीस बढ़ गई है. ऐसा उत्तराखंड सरकार की नीति के कारण हुआ है. पहले बॉन्ड के साथ पांच लाख फ़ीस थी. अब हर साल चार लाख फ़ीस होगी. यानी बीस लाख फ़ीस ही हो जाएगी. छात्र छात्राओं ने इस उम्मीद से मैसेज किया है कि मेरे दिखाने से फ़ीस में कमी हो जाएगी.
नेशनल लॉ स्कूल की फ़ीस बढ़ा दी गई है. हर साल की फ़ीस 50 हज़ार महंगी हो गई है. डिजिटल इंडिया के छात्रों को इंटरनेट फ़ीस साढ़े बारह हज़ार देने होते हैं और लाइब्रेरी फ़ीस के लिए दस हज़ार. 27 फ़ीसदी वृद्धी हुई है. पांच साल की पढ़ाई ढाई लाख और महंगी हो गई है. छात्रों ने मुझे मैसेज किया है.
झारखंड में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की मान्यता रद्द कर दी गई है. इससे तीन हज़ार छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है. राज्य के कई प्राइवेट पॉलिटेकनिक कॉलेजों की मान्यता रद्द कर दी गई है. तीन हज़ार छात्रों के भविष्य पर संकट है. कई छात्र कोर्ट गए हैं. 17 जुलाई को सुनवाई है. मुझे मैसेज किया है.
मगध यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिला है. ऐसा मैसेज आया है.
मैंने नौकरी और यूनिवर्सिटी सीरीज़ बंद कर दी है. कारण कि यह अंतहीन समस्या है. इसका समाधान छात्रों के पास है. इसे कवर करने के लिए मेरे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. सैकड़ों मैसेज से गुज़रना बस की बात नहीं इसलिए बिना पढ़े डिलिट कर देता हूं. डेढ़ साल तक गहराई से कवर करने के बाद लगा कि दस-बीस (ठीक में इतने ही) छात्रों के अलावा किसी को दिलचस्पी है नहीं.
छात्र कभी इन सवालों को लेकर ईमानदार नहीं रहते. ख़ुद दिन भर हिन्दू मुस्लिम देखते हैं और जब फ़ीस बढ़ जाती है तो समझ नहीं आता. फ़ीस हर जगह महंगी हुई है लेकिन हर जगह चुप्पी है. बोलने का जोखिम उठाइये.
अब मैं पर्यावरण के सवालों पर ज्ञान बढ़ा रहा हूं. इस विषय के बारे में मेरी मदद करें. मेरा फ़ोकस जलवायु परिवर्तन है. फिर भी यहां लिख रहा हूं. क्या करें. आपकी हालत देखी भी तो नहीं जाती. लेकिन यह न कहें कि मुझसे उम्मीद है. आपने जिन नेताओं को वोट किया है उनसे भी तो कुछ उम्मीद की होगी. उन्हें थोड़ा तकलीफ़ दीजिए. कुछ अच्छे भी होते हैं. क्या पता काम हो जाए.
इस बीच छात्र आपस में सर्वे करें. अपने परिवार में भी सर्वे करें. किसी न्यूज़ चैनल में इन विषयों पर स्पीड न्यूज़ के अलावा चर्चा होती है? क्या उनके अभिभावक इन विषयों को महत्व देते हैं? वो टीवी में क्या देखते रहे हैं? इसका जवाब ईमानदारी से दें. जिन विषयों को आप ख़ुद नहीं देखते हैं, अब जब परेशानी आपके पास आई है तो क्यों चाहते हैं कि लोग आपकी परेशानी देखें? क्या आपने इसके पहले किसी कॉलेज या संस्थान की हालत की ख़बर देख उस पर लिखा है, चर्चा की है? जब आपको ही इन सवालों से फ़र्क़ नहीं पड़ता तो दूसरों को कैसे पड़ेगा?
मेरा एक सुझाव है. नौजवान हैं, थोड़ा स्वाभिमान होना चाहिए. गांधी को पढ़ें. सत्याग्रह के रास्ते पर चलें और बग़ैर मीडिया के यह सब करें. दूसरे राज्यों के छात्रों से संपर्क करें. कई जगहों पर छात्र कोर्ट जा रहे हैं. वहां से लड़कर जीत भी रहे हैं और हार भी रहे हैं. फिर भी ऐसे छात्रों के प्रति मेरे मन में गहरा सम्मान है. कम से कम से वे लड़ रहे हैं. उन्हें पता चल गया है कि अख़बार में छपने और टीवी में दिखने से नहीं होता. आप भी यही करें. कोर्ट जाएं. हो सके तो घरों से न्यूज़ चैनलों का कनेक्शन कटवा दें या ग़ौर से देखें कि कैसे उनमें जनता ग़ायब होती जा रही है. न्यूज़ चैनल न देखने का आंदोलन चलाइये.
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This Article is From Jul 07, 2019
फ़ीस वृद्धि का दौर शुरू हो गया, चुनाव ख़त्म हो गया है...
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 07, 2019 18:56 pm IST
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Published On जुलाई 07, 2019 18:46 pm IST
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Last Updated On जुलाई 07, 2019 18:56 pm IST
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