हालिया वक्त के सबसे ताकतवर गृहमंत्री और दिल्ली में निःसंदेह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रचार अभियान का चेहरा रहे अमित शाह ने कबूल किया है कि दिल्ली में जीतने के लिए अपनाई गई नकारात्मक, बांटने वाली और साम्प्रदायिक राह ही पार्टी की करारी हार का कारण बनी हो सकती है.
गुरुवार को 'टाइम्स नाओ' समिट के दौरान अमित शाह ने कहा कि वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर जैसे उनके सहयोगियों द्वारा की गई टिप्पणियों से 'संभवतः BJP को नुकसान हुआ...' एक रैली में मुख्य वक्ता के तौर पर मंच से अनुराग ठाकुर ने भीड़ से नारे लगवाए - 'देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को...' नफरत फैलाने वालों की फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे, जिन्होंने चुनावी रैलियों में बार-बार कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ शाहीन बाग में धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को 'बिरयानी' खिलाई जा रही है.
शाह ने खुद भी बार-बार मतदाताओं से BJP के पक्ष में 'इतनी ज़ोर से EVM पर बटन दबाने के लिए कहा, ताकि करंट शाहीन बाग में महसूस हो...' अब इसी समिट में वह आत्मावलोकन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि विशेष रूप से यह टिप्पणी आक्रामक नहीं थी.
लेकिन इससे भी बड़ा बयान वह था, जो उन्होंने CAA के बारे में बात करते हुए दिया, यानी राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) के बारे में. इस टिप्पणी ने तो उनकी अपनी पार्टी को ही असमंजस में डाल दिया था, जिसने पहले ट्वीट किया कि उन्होंने कहा है कि NRC वास्तव में लागू होगा. BJP ने अमित शाह के हवाले से कहा, "NRC पर कोई भी फैसला नहीं किया गया है... यह हमारी पार्टी के घोषणापत्र में है, और यह होगा... यहां तक कि प्रधानमंत्री भी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि NRC पर कोई फैसला नहीं किया गया है..." लेकिन कुछ ही मिनट बाद ट्वीट फिर किया गया, लेकिन इस बार उसमें 'NRC होगा' वाला हिस्सा नदारद था.
चूंकि NRC का डर ही देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों की वजह है, एक के बाद एक किए गए ट्वीट इस कोशिश के रूप में देखे जाने चाहिए, जिससे CAA का समर्थन करने वाला BJP का मतदाता भी खुश रहे, और नीतीश कुमार जैसै सहयोगी भी, जो कह चुके हैं कि उनके राज्य में NRC की अनुमति नहीं दी जाएगी.
इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में एक फिर चुने जाने की ख्वाहिश रखने वाले नीतीश कुमार की पहचान सियासी फायदे के हिसाब से सहयोगी बदलने की रही है, और वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को परख रहे हैं कि क्या CAA और NRC का विरोध बढ़ रहा है. राजनैतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि दिल्ली में BJP को खारिज कर दिए जाने के चलते नीतीश 'धर्मनिरपेक्ष कैम्प' में लौट सकते हैं. वैसे ऐसा होने के आसार नहीं हैं, नीतीश जानते हैं कि लोकप्रियता के मामले में प्रधानमंत्री को चुनौती देने वाला कोई नहीं है, और दोनों पार्टियों के मिलकर लड़ने पर बिहार में उनकी जीत के बेहतरीन अवसर हैं.
लेकिन चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जिन्हें नीतीश कुमार ने कुछ ही सप्ताह पहले अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड या JDU से निष्कासित किया है, का दावा है कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बार-बार अपमानित किए जाने से परेशान हो चुके हैं और वह अपने विकल्प तलाशने के उद्देश्य से ममता बनर्जी और गांधी परिवार के साथ संपर्क में हैं.
आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार की कमान संभालने वाले प्रशांत किशोर की अमित शाह से 'दुश्मनी' किंवदंतियों की तरह मशहूर है, और उन्होंने ट्वीट किया कि दिल्ली में BJP की हार ने "देश की आत्मा को बचा लिया..." इस विडम्बना को आसानी से महसूस किया जा सकता है कि प्रशांत किशोर वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के लिए ही बैकरूम मैनेजर का काम कर रहे थे, और बिहार में निभाई भूमिका के तहत वह BJP-नीतीश गठजोड़ का भी हिस्सा रह चुके हैं.
माना जाता है कि नीतीश कुमार मीडिया में मौजूद अपने चहेते स्तंभकारों के ज़रिये 'लाउड थिंकिंग' किया करते हैं, और इस बात पर सभी एकमत हैं कि दिल्ली का परिणाम नीतीश को हिम्मत देगा, ताकि वह बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अमित शाह से 'बेहतर' सौदा हासिल कर सकें. निश्चित रूप से अमित शाह की गुरुवार को की गई टिप्पणी उन्हें 'दोस्ती' को बनाए रखने में बहुत मदद देगी. नीतीश कुमार अब दावा कर सकते हैं कि नफरत-भरी टिप्पणियों को BJP ने नकार दिया है, भले ही BJP ने ये भद्दी टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है, इसलिए उनके पास BJP से अलग जाने का कोई कारण नहीं है. NRC की धमकी की तलवार का हटा दिया जाना भी उनके और उनके मुस्लिम मतदाताओं के लिए चुनावी तोहफा ही है.
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों को पदोन्नति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसला भी नीतीश के लिए सही नहीं है, सो, वह उस फैसले का इस्तेमाल BJP पर हमले के लिए कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि सरकार सार्वजनिक रूप से आश्वासन दे कि वह इस फैसले को संसद में पलट देगी.
NRC को लेकर शाह खुद भी अगले साल होने वाले बंगाल चुनाव तक बेहद सावधानी से फूंक-फूंककर कदम रखेंगे. अमित शाह के लिए दिल्ली का प्रचार अभियान बंगाल के लिए किया गया प्रयोग था, जहां वह मुस्लिमों को दुश्मन के रूप में चित्रित कर हिन्दू वोटों को एकजुट करने की कहीं बड़ी और कहीं कम ढकी-छिपी कोशिश करने वाले हैं.
अमित शाह अब बिहार और फिर बंगाल को जीतने के लिए काफी बेचैन हैं. सूत्रों ने मुझे जानकारी दी है कि बिहार से पहले CAA और NRC पर हल्के पड़ जाने, यहां तक कि शाहीन बाग में मौजूद महिलाओं से बात करने (अमित शाह ने गुरुवार को ऐसी पेशकश भी की थी), और कश्मीर में सामान्य स्थिति दिखाने की योजना बनाई गई है. फिर, बंगाल के लिए रणनीति में होगा व्यापक बदलाव, जिसमें अमित शाह का जाना-पहचाना रूप सांमने आएगा. NRC फिर भाषणों में वापस आ जाएगा, और अगले साल की शुरुआत में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की घोषणा कर दी जाएगी, ताकि शादी-विवाह जैसे मामलों में धार्मिक समुदायों की स्वायत्तता खत्म हो जाए.
बेहद अहम पहलू यह है कि शाह ने फिलहाल अपने सार्वजनिक पहलू को कम करना फैसला किया है, और बिहार में शाह ज़्यादा दिखाई नहीं देंगे, लेकिन फिर बंगाल पूरी तरह शाह का ही खेल होगा.
मोदी का दूसरा कार्यकाल, यानी मोदी 2.0, अब तक मोदी-शाह को पूरी तरह जोड़कर ही देखा जा सकता है. इसे कुछ हल्का कर दिया जाएगा. मोदी ही पूरी तरह जनता के सामने होंगे. लेकिन BJP के एक वरिष्ठ मंत्री का कहना है, "शाह जी बहुत रणनीतिक शख्सियत हैं... वह जानते हैं कि विपक्ष को कब और कैसे बिजली का झटका देना है..."
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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