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This Article is From Jan 21, 2016

तेल की घटती कीमत का बड़ा फायदा न मिलने में क्या फायदा... आइए समझें

Sushant Sinha
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 21, 2016 18:15 pm IST
    • Published On जनवरी 21, 2016 17:20 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 21, 2016 18:15 pm IST
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 30 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा चुकी है, लेकिन आप जब भी पेट्रोल पंप पहुंचते हैं तो अब भी एक लीटर पेट्रोल के लिए करीब 60 रुपए चुका रहे हैं। एक आम आदमी के मन में पहला और सबसे अहम सवाल यह है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल थी तब भी उसे एक लीटर पेट्रोल के लिए करीब 70-75 रुपए चुकाने पड़ रहे थे और अब जबकि कच्चे तेल की कीमत पहले के मुकाबले करीब 90 डॉलर प्रति बैरल कम हो चुकी है तो भी उसे एक लीटर पेट्रोल खरीदते वक्त पहले के मुकाबले 10 से 12 रुपए ही कम क्यों देने पड़ रहे हैं? अगर पेट्रोल की कीमत करीब 70 फीसदी कम हुई है तो उसके जेब से जाने वाला पैसा 70 फीसदी कम क्यों नहीं हुआ? 70 फीसदी न भी हो पर 50 फीसदी भी तेल की कीमत कम हो जाती तो आम आदमी के कुछ तो अच्छे दिन आ जाते, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ है?

सरकार तेल की घटती कीमत का ज्यादा फायदा आम आदमी को क्यों नहीं दे रही है इसे समझने के लिए जो हो रहा है, वह क्यों हो रहा है और कैसे हो रहा है, यह समझना भी लाज़मी है। एक बार के लिए सोचिए कि आप पर कर्ज का बहुत बड़ा बोझ है और अचानक आपको बोनस मिलता है। ऐसे में आप बोनस के इस पैसे का क्या करेंगे? क्या आप सारे पैसे से सहूलियत की चीजें ले आएंगे और घर के सारे सदस्यों में पैसा बांट देंगे या फिर उस पैसे का बड़ा हिस्सा कर्ज को खत्म करने और बचत करने के लिए इस्तेमाल करेंगे ताकि भविष्य की पेरशानियों से निबटने के लिए भी तैयार रहा जा सके? दरअसल सरकार भी यही कर रही है। केन्द्र की मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो सरकारी खजाना लगभग खाली पड़ा था और फिसकल डिफ़िसिट काफी था। अब मौजूदा वक्त में सरकार तेल की कम कीमतों की वजह से हो रही कमाई का कुछ हिस्सा लंबे वक्त तक घाटे में रही तेल कंपनियों को बांट रही है, कुछ फायदा आम आदमी को भी दिया गया है और तेल की कीमत पहले के मुकाबले कम हुई है लेकिन इस कमाई का बड़ा हिस्सा सरकार इस वक्त फिसकल डिफ़िसिट कम करने या आम बोलचाल की भाषा में समझने के लिए यूं कह लीजिए की अपना खजाना भरने में इस्तेमाल कर रही है। इसको समझने के लिए मॉर्गन स्टेनले के इस रिसर्च डेटा को देखिए जिसके मुताबिक -
  • आपके लिए दिल्ली में पेट्रोल की कीमत- 59.35 रुपये/लीटर
  • तेल कंपनियों के लिए कीमत - 22.46 रुपये/लीटर
  • डीलर को एक लीटर के पेट्रोल के लिए चुकाने पड़ते हैं- 25.50रुपये/लीटर
  • एक्साइज़ ड्यूटी- 19.37 रुपये/लीटर
  • डीलर का कमीशन- 2.25 रुपये/लीटर
  • वैट- 11.87 रुपये/लीटर

यानि एक लीटर के लिए पेट्रोल के लिए जो कीमत हम चुकाते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा सरकार के पास टैक्स और एक्साइज़ ड्यूटी के तहत चला जाता है।

इसी तरह एक लीटर डीज़ल का हिसाब किताब भी समझ लीजिए-
  • आपके लिए दिल्ली में डीज़ल की कीमत- 45.03 रुपये/लीटर
  • तेल कंपनियों के लिए कीमत - 18.69 रुपये/लीटर
  • डीलर को एक लीटर के डीज़ल के लिए चुकाने पड़ते हैं- 23.11रुपये/लीटर
  • एक्साइज़ ड्यूटी- 13.83 रुपये/लीटर
  • डीलर का कमीशन- 1.43 रुपये/लीटर
  • वैट- 6.66 रुपये/लीटर

यानि यहां भी सरकार को अच्छी खासी कमाई हो रही है, पर सवाल यह कि तेल के सबसे बड़े आयातक देशों में से एक भारत को ऐसे में कितनी कमाई हुई? कुछ आंकड़ों के लिहाज़ से समझें तो -
  •  2012 में तेल आयात करने का कुल खर्च करीब 108 बिलियन डॉलर था
  • बीते 12 महीनों में तेल की खरीद में खर्च हुए करीब 61 बिलियन डॉलर
  • यानि कुल बचत 47 बिलियन डॉलर

लेकिन आम आदमी का सवाल फिर भी कायम रह सकता है कि सरकार के खजाने में हजारों करोड़ रुपये आ भी रहे हैं तो उसका फायदा उसे क्या? ऐसे में सरकार की इस कमाई का जो परोक्ष फायदा आप तक पहुंच रहा है या पहुंचेगा व कुछ यूं है-
  1. सरकार देश के मूलभूत ढांचे को मज़बूत करने में खुलकर खर्च कर पाएगी और उस बेहतर मूलभूत ढांचे का इस्तेमाल देश का आम नागरिक ही करेगा।
  2. सरकार ने जिन बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान किया है उन्हें पूरा करने के लिए पैसे कहां से आएंगे, उसे इस सवाल का जवाब ढूंढने पर मजबूर नहीं होना होगा और उन योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जा सकेगा।
  3. सरकार के खजाने में पैसा होने का एक मतलब यह भी है कि सरकार कुछ अहम सुविधाओं पर जो सब्सिडी देकर आम आदमी को परोक्ष राहत दे रही है, वह जारी रह सकेगी।
  4. अगर भविष्य में तेल की कीमतें फिर से बढ़ती हैं तो सरकार सीधे इसका बोझ आम आदमी पर डालने की बजाए एक्साइज़ ड्यूटी में कमी करके उस झटके को खुद तक सीमित रख सकती है। और ऐसे में तेल की कीमत बढ़ने पर भी आम आदमी को बढ़ी कीमत नहीं चुकानी होगी।
  5. तेल की कीमत अचानक बेहद कम हो जाने का एक असर यह भी होता है कि तेल की खपत बढ़ जाती है और लोग ज्यादा गाड़ियां खरीदना शुरू करते हैं जिसका सीधा असर बढ़ते प्रदूषण के स्तर के तौर पर दिखता है। अमेरिका और यूरोपीय देश 80 और 90 के दशक में इस दौर को बखूबी देख चुके हैं जहां तेल की बेहद कम कीमतों की वजह से बड़ी-बड़ी गाड़ियां सड़कों पर आती रहीं और प्रदूषण बढ़ता रहा। ऐसे में तेल की कीमतें अगर बेहद कम होती हैं तो भारत में भी कार की खरीद बढ़ेगी और पहले से ही प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे देश के लिए यह एक अच्छी खबर नहीं होगी। इसलिए कहा जा सकता है कि तेल की बेहद कम कीमत पर्यावरण के लिहाज से भी फायदेमंद नहीं है।

हालांकि तेल की कीमतें बहुत ज्यादा न घटाने के पीछे कोई राजनीति न हो ऐसा भी नहीं है। सरकार जानती है कि आने वाले वक्त में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें अगर अचानक तेजी से बढ़ीं और उसे भी तेल की कीमतें बढ़ानीं पड़ीं तो जनता की नाराजगी कम वोटों में भी तब्दील हो सकती है। ऐसे में सरकार उस वक्त जनता पर बोझ डालने के बजाए अपना मुनाफा कम करके चुनावी मुनाफा कमाने का रास्ता भी खुला रखना चाहती है।

हांलाकि तेल की कीमतों में हाल के दिनों में कोई बड़ा उछाल आने की गुंजाइश न के बराबर है। अमेरिका की खुद की तेल कंपनियों का तेल भंडार इस वक्त कुछ यूं भरा है कि अगर उसके खाली होने की नौबत भी आई तो उसमें कई महीने लगेंगे। इसके अलावा ईरान और सउदी अरब के बीच की तनातनी भी जल्द खत्म होती नहीं दिख रही और न ही चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव आने जा रहा है। ऐसे में तेल की कीमतें और कम होने की गुंजाइश ज्यादा है, बढ़ने की कम। ऐसे में सरकार फिलहाल आने वाले कुछ वक्त में भी आम जनता को सीधे तौर पर तेल की घटती कीमतों का फायदा पहुंचाने के बजाए खुद का खजाना भरकर देश के विकास पर उस पैसे को खर्च करने पर ज्यादा जोर देने की अपनी रणनीति पर चलती ही दिख सकती है।

(सुशांत सिन्हा NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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