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This Article is From Jul 28, 2015

अलविदा कलाम! हम तुम्‍हें भी जल्‍दी ही भूल जाएंगे...

Reported By Dayashankar Mishra
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  • Updated:
    जुलाई 30, 2015 10:28 am IST
    • Published On जुलाई 28, 2015 18:52 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 30, 2015 10:28 am IST
किसी ने कहा वह जनता के राष्‍ट्रपति थे। किसी ने कहा वह बच्‍चों के राष्‍ट्रपति थे। सारी पार्टियों के नेताओं ने कहा, वह हमारे अजीज राष्‍ट्रपति थे। दोस्‍त थे, बेहद शानदार इंसान थे। कोई यहां तक कह गया कि वे तो हमारे बनाए राष्‍ट्रपति थे। सबने याद किया! सोशल मीडिया पर तो ट्रेंड का मेला लगा है। लेकिन कलाम चाहते क्‍या थे?

कोई बताएगा कि वह करना क्‍या चाहते थे। उनके बाद उनके काम का क्‍या होगा? हम एक भावुक देश हैं और भावुकता पर ही मरते-मिटते हैं। हमने उन्‍हें तुरंत नेहरू और गांधी की बराबरी पर ला दिया, क्‍योंकि हम अच्‍छे लोगों को कैटेगरी विशेष में डाल देते हैं। ताकि कभी कोसने की जरूरत पड़े, तो तुरंत गूगल कर लिया जाए!

कलाम सर! आपने हमें राष्‍ट्रपति भवन की ऊंची दीवारों के भीतर झांकने की अनुमति दी। प्रोटोकॉल को मिसाइल पर रवाना कर दिया। देशभर के बच्‍चों को उस बुनियादी शिक्षा में ढालने की कोशिश की, जिसका पहला सबक सवाल करना था।
कलाम हमारी राजनीति की एक सुखद भूल थे। जिन्‍हें अन्‍य-अन्‍य कारणों से बनाया गया था, लेकिन वह तो बस बच्‍चों और विज्ञान के राष्‍ट्रपति बनकर रह गए।

कलाम बच्‍चों को सवाल करने की प्रेरणा देते और आगे बढ़ने की ऊर्जा। उन्‍होंने अपनी गरीबी और आगे बढ़ने को उस तरह से बेचने की कोशिश कभी नहीं की, जिस तरह से हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार रहे एक नेता ने की थी। वह यहीं नहीं रुके, प्रधानमंत्री बनने के बाद भी गरीबी की दीवार पर खड़े होकर वह इमेज की मीनार को ग्‍लोबल बनाने में जुटे हैं। इसके उलट कलाम ने बस अपने मन के काम किए। वह राष्‍ट्रपति बनने से पहले भारत रत्‍न बन चुके थे। सारे सम्‍मानों से ऊपर और राजनीति से भी।
हमें लीक पर चलने वालों से प्‍यार है। हम अधिक से अधिक 'हां' कहने वालों को सपोर्ट करने के लिए विख्‍यात देश हैं। इसलिए उन्‍हें दूसरा ‘टर्म’नहीं दिया गया। उनकी जगह विश्‍वसनीयता और ‘अपने’ को तरजी‍ह दी गई।

जो राजनेता आज उनके कसीदे पढ़ रहे हैं, ये वही हैं, जिन्‍होंने दलगत आधारों पर जीनियस और जनता के राष्‍ट्रपति के दूसरे टर्म का पुरजोर विरोध किया था। हम ऐसे लोगों को सिस्‍टम और शक्ति देने के खिलाफ रहते हैं, जो कुछ नया करना चाहते हैं, जो दलगत राजनीति से परे होते हैं, जो नवाचार और आविष्‍कार के सपनों के साथ उड़ते हैं। हमें तो लीक पर चलने वालों से प्‍यार है। हम तो बस अधिक से अधिक 'हां' कहने वालों को सपोर्ट करने के लिए विख्‍यात देश हैं। इसलिए जब कलाम राष्‍ट्रपति बनने के लिए तैयार हुए, तो खतरा था कि घाघ राजनेता उन्‍हें अपने चक्रव्‍यूह में फंसा सकते हैं।

लेकिन, कलाम यहां भी कमाल के निकले। वह राष्‍ट्रपति भवन में वैसे नहीं आए थे, जैसे ज्ञानी जैल सिंह आए, जैसे प्रतिभा पाटील आईं। वह न तो बुढ़ापा काटने आए थे और न ही परिवारवाद को संवारने।

कलाम हमारी राजनीति की एक सुखद भूल थे। जिन्‍हें अन्‍य-अन्‍य कारणों से बनाया गया था, लेकिन वह तो बस बच्‍चों और विज्ञान के राष्‍ट्रपति बनकर रह गए। शायद इसलिए दूसरी बार उनके नाम पर विचार नहीं करके हमने पहली बार किसी महिला को राष्‍ट्रपति बनने का अवसर दिया, क्‍योंकि हमें महिला सशक्तिकरण के पोस्‍टर गिनीज बुक को भेजने थे।

हम श्रद्धांजलि देने में उस्‍ताद और मूल सबक को कब्र में दफनाने में माहिर लोग हैं। कलाम हम तुम्‍हारी बातों को मानूसन सत्र में ही बारिश में बहा देंगे। बस, खतरा उन बच्‍चों से है, जिनमें तुम आगे बढ़ने की ललक और सवाल करने का जज्‍बा भर गए हो, उसे मिटाना जरा मुश्किल काम है!

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