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This Article is From May 11, 2019

तेज बहादुर : क्या अब सुप्रीम कोर्ट से भी सवाल पूछे जाएंगे?

Amit
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 11, 2019 08:47 am IST
    • Published On मई 11, 2019 00:20 am IST
    • Last Updated On मई 11, 2019 08:47 am IST

कई बार विरोधियों की आलोचना में इतने आगे बढ़ जाते हैं कि सत्य बहुत पीछे छूट जाता है और बस झूठ पर आधारित नैरेटिव आगे बढ़ता जाता है. ऐसी आलोचना में तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया जाता. हम तनिक रुककर यह नहीं सोचना चाहते कि विरोधी की आलोचना में उस तीसरे पक्ष का क्या होगा, जो बेवजह इन सबमें अपनी विश्वसनीयता खो रहा है, पिस रहा है. यह सही है कि इन चुनावों में चुनाव आयोग ने अपनी पूरी ताक़त नहीं दिखाई और कई जगह उसके कार्य संदेह के घेरे में रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह पूरा का पूरा ही खराब हो गया. लेकिन वाराणसी लोकसभा के मामले में ऐसा ही हुआ दिखता है. वाराणसी से तेज बहादुर का नामांकन रद्द होने के बाद तुरंत सोशल मीडिया पर यह चलने लगा कि मोदी ने हार के डर के कारण नामांकन रद्द करावाया. चुनाव आयोग पूरी तरह सरकार के इशारों पर काम कर रहा है. चुनाव आयोग पूरी तरह बिक गया है. बगैरह-बगैरह लेकिन किसी ने उन कारणों के बारे में नहीं जानना चाहा कि जिनकी वजह से नामांकन रद्द किया गया. 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने तेज बहादुर की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उनके नामांकर रद्द करने को चुनौती दी गई थी.

अब देखिए और समझिए मामला था क्या, बिंदुओं में-
किसी भी सरकारी नौकरी के लिए जब आप आवेदन करते हैं तो इसका उत्तर देना होता है, इसी तरह चुनाव लड़ने के इच्छुक से यही सवाल पूछा जाता है; "क्या आपको सरकारी सेवा से भ्रष्टाचार या देशद्रोह के आरोप में कभी बर्ख़ास्त किया गया है?"

पहला नामांकन
24 अप्रैल को जो पहला (निर्दलीय उम्मीदवार) नामांकन पत्र भरा गया, तेज बहादुर ने उसमें इसका उत्तर दिया गया 'हां.' अब जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत हर वो केंद्र या राज्य सरकार का कर्मचारी जिसकी सेवा किसी भी आरोप में बर्खास्त की गयी हो, वो पांच सालों तक चुनाव नहीं लड़ सकता. इसके आधार पर उनका पहला नामांकन रद्द हुआ. (विवाद की कोई गुंजाइश नहीं. स्वयं तेज बहादुर ने कहा कि इसमें उन्होंने 'गलती' से 'हां' लिख दिया था.)

दूसरा नामांकन
29 अप्रैल को दूसरा (सपा उम्मीदवार) नामांकन पत्र भरा तो इस बार उन्होंने इस सवाल का उत्तर दिया 'नहीं.' जब इसका जवाब 'नहीं' होता है औऱ आप सरकारी सेवा से निर्धारित समय से पहले निकलते या बर्खस्त किए जाते हैं तो चुनाव आयोग के एक निर्धारित फॉर्मेट के अनुसार अपने विभाग (BSF से लाना था) से एक तरह की NOC (अनापत्ति प्रमाण-पत्र) नामांकन के समय ही देनी होती है. तेज बहादुर ने यह भी नहीं दी थी. यह पूर्व निर्धारित प्रक्रिया है. यानी तेज बहादुर और उनके सहयोगियों की जिम्मेदारी थी कि वे इन औपचारिकताओं को बहुत सावधानी से पूरा करें. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

खैर... 29 अप्रैल को जो नामांकन दायर किया गया, उसके लिए जो भी कागज कम होंगे, चुनाव अधिकारी (रिटर्निंग ऑफीसर) अगले दिन ही उम्मीदवार से कहेंगे. 30 अप्रैल को संबंधित अधिकारी ने वही पत्र तेज बहादुर से मांगा और समय दिया 1 मई यानी अगले दिन का, यह नामांकन प्रक्रिया का अंतिम दिन था. यहां किसी को लग सकता है कि यह तो व्यवहारिक ही नहीं है. तो निष्कर्ष निकालने से पहले जान लीजिए कि ये तारीख़ें पहले से ही तय होती हैं. चुनाव आयोग को इसमें क्यों फेरबदल करना चाहिए था या तेज बहादुर को कोई छूट देनी चाहिए थी... क्यों? क्या ये हाई-प्रोफाइल सीट है, इसलिए? इतने महत्वूर्ण चुनाव में विपक्ष को कोई उम्मीदवार नहीं मिला, तो ऐसे में तेज बहादुर ही सही विकल्प थे, इसलिए? ऐसे सवाल भर पूछना कितना हास्यास्पद लगता है, जवाब तो होंगे ही क्या!

लेकिन फिर भी हम बिना सोचे-विचार यूं ही सवाल पूछते रहते हैं और संस्थाओं को बदमाम करते हैं, लोगों में उनके विश्वास को कम करते हैं. चलते-चलते... ध्यान रखिए कि वाराणसी लोकसभा की सीट से कुल 101 नामांकन दाख़िल किए गए थे जिनमे से 71 नामांकन पत्रों को रद्द कर दिया गया था. किसी ने इस तथ्य पर ध्यान देना उचित नहीं समझा. चुनावों का समय है. चुनाव आयोग सवालों के घेरे में लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ख़ारिज की है तो इसे सवाल नहीं किए जाएंगे? सोचिए तो जरा!

और हां, एक बात और... तेज बहादुर ने खाने की गुणवत्ता का जो मसला उठाया था, उसमें मेरा मानना है कि जिस घटिया स्तर पर शिकायत निवारण सिस्टम काम करता है, उसमें तेज बहादुर की शिकायत का निवारण ठीक तरह से नहीं हुआ है.

ऐसे में एक सवाल और उठता है कि जिस विभाग ने तेज बहादुर को शिकायत करने के कारण निकाला हो, क्या वह उसे आसानी से NOC जारी कर देता? शायद हां, शायद नहीं. ऐसे में एक सवाल और बनता है कि क्या हमारी चुनाव व्यवस्था उस अंतिम व्यक्ति के लिए उतनी ही सहज और आसान है, जितने दावे किए जाते हैं? आख़िर तेज बहादुर तो बस अपने अधिकारों के तहत ही चुनाव लड़ने जा रहे थे? तो इस तरह सवाल बहुत हैं. हम यहीं विराम देते हैं. फिलहाल तो इतना समझिए कि वर्तमान समय में चुनाव आयोग ने नियमानुसार ही कार्य किया है. इसलिए इस मामले में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाना बेमानी होगा.

(अमित एनडीटीवी इंडिया में असिस्टेंट आउटपुट एडिटर हैं)  

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