तालिबान का क़ब्ज़ा, भारत की समस्या

अब अफ़ग़ानिस्तान पर पूरी तरह तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका है. महज़ 12 घंटों में विकल्प और सेना को मज़बूत बनाने की बात कर रहे राषट्रपति अशरफ़ गनी चुपचाप अपने कुछ सहयोगियों के साथ देश से निकल गए.

तालिबान का क़ब्ज़ा, भारत की समस्या

अब अफ़ग़ानिस्तान पर पूरी तरह तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका है. महज़ 12 घंटों में विकल्प और सेना को मज़बूत बनाने की बात कर रहे राषट्रपति अशरफ़ गनी चुपचाप अपने कुछ सहयोगियों के साथ देश से निकल गए. अशरफ़ गनी के देश छोड़कर निकल जाने की पुष्टि ख़ुद उनकी सरकार का हिस्सा रहे चीफ़ एग्जीक्यूटिव ऑफ़िसर अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कर दी है. उन्होंने बताया कि गनी ने अपना इस्तीफ़ा क़तर में तालिबान को भेज दिया है. इस ख़बर के आने के बाद तालिबान की तरफ से ऐलान हुआ कि उन्होंने अपने लड़ाकों को जाने की इजाज़त दे दी है. अब फौरी तौर पर चुनौती ये है कि बाक़ी देश अपने राजनयिकों और नागरिकों को वहां से कैसे निकालेंगे. अमेरिका ने पांच हज़ार, यूके और कनाडा ने कुछ सौ सैनिक इस काम के लिए भेजे हैं. भारत के आगे भी यही चुनौती है. ये लिखने तक सूत्रों के हवाले से यही जानकारी है कि दिल्ली में बैठकों का दौर चला. फिर ये मान कर चलना चाहिए कि अपने दूतावास और नागरिकों को निकालने के विकल्पों पर विचार हुआ होगा. लेकिन हो सकता है ये विकल्प क्या था ये तभी सामने आए जब वहां से भारत अपने नागरिक निकाल ले. भारत की काबुल दूतावास से जारी एडवाइज़री को अगर देखें तो साफ है कि भारतीय होना वहां ख़तरे में डालने वाली पहचान है.

भारत के लिए अगली चुनौती होगी पाकिस्तान के तरफ झुकी हुई अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार और अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन  का इस्तेमाल भारत में आतंकी हमलों के लिए करने की कोशिश. हालांकि तालिबान ने कहा है कि वो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी और देश के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा लेकिन इस पर भरोसा करना बड़ी ग़लती होगी. और तो और अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद पाकिस्तान लौटे लड़ाकों का इस्तेमाल भी पाकिस्तान कश्मीर में आतंक के लिए कर सकता है. हालांकि कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का क़ब्ज़ा पाकिस्तान को भी भारी पड़ सकता है.

भारत के सामने एक सवाल ये भी है कि क्या वो तालिबान की सरकार को मान्यता देगा? अब तक सीधे तौर पर उसने नहीं माना है कि तालिबान से बातचीत हुई है. लेकिन क़तर में बातचीत में दूसरे 11 देशों के साथ शामिल रहा है. इस बार ज़ब तालिबान अपनी सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाह रहा है तो क्या भारत अपना रुख़ बदलेगा? और अगर भारत ये रुख़ बदलता है तो क्या पाकिस्तान के असर को कम करने में कोई कामयाबी मिलेगी?

इन सभी सवालों के जवाब में शायद थोड़ा वक्त लगे लेकिन इसका कुछ अंदाज़ा इससे भी होगा कि भारत का फ़ौरन अफ़ग़ानिस्तान से अपने नागरिकों को निकालने का मिशन कैसे चलता है.

कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...

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