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तुर्की में सत्ता बनाम जनता: अर्दोआन के खिलाफ इमामोलू की गिरफ्तारी ने भड़काया जनाक्रोश

Naghma Sahar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 24, 2025 20:02 pm IST
    • Published On मार्च 24, 2025 20:00 pm IST
    • Last Updated On मार्च 24, 2025 20:02 pm IST
तुर्की में सत्ता बनाम जनता: अर्दोआन के खिलाफ इमामोलू की गिरफ्तारी ने भड़काया जनाक्रोश

तुर्की में शहर शहर बगावत की लहर है. इस्तांबुल हो या अंकारा, सड़कों पर विरोध का शोर गूंज रहा है. इस्तांबुल के मेयर एकरेम इमामोलू को गिरफ्तार कर लिया गया है. ये गिरफ्तारी वो चिंगारी साबित हुई जिसने मौजूदा राष्ट्रपति अर्दोआन के खिलाफ आग को हवा दे दी है. अर्दोआन के खिलाफ ये अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन है. रेचप तैयब अर्दोआन एक तरह से 23 सालों से तुर्की की सत्ता में किसी न किसी तौर पर शामिल रहे हैं. 2014 से अब तक वो तुर्की के राष्ट्रपति बने हुए हैं, उससे पहले 2003 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.

इमामोलू इस वक्त अर्दोआन की इस बेरोकटोक ताकत के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उभरे हैं. आने वाले चुनावों में वो विपक्ष के उम्मीदवार थे, लेकिन इससे पहले ही उन्हें जेल में डाल दिया गया. लंदन में टर्किश इंस्टीट्यूट में रिसर्च स्कॉलर बेहजाद फातमी बताते हैं कि इमामोलू के हक में सबसे बड़ी बात ये है कि उन्हें इस्लाम के मानने वालों से लेकर उदारवादी और कमाल पाशा के समर्थक सभी पसंद करते हैं. यानी अलग-अलग तबकों में और विचारधाराओं को मानने वालों में इमामोलू को लेकर सहमति है. जबकि अर्दोआन पर लगातार तानाशाही का आरोप गहराता गया है. साथ ही जिन आरोपों पर वो इमामोलू को जेल में डाल रहे हैं, उतना ही भ्रष्टाचार खुद अर्दोआन के खिलाफ भी है.

जब अर्दोआन की पार्टी सत्ता में आई थी, तब सत्ता की बागडोर कमाल अतातुर्क के हाथों में थी, जिन्हें कमाल पाशा के नाम से भी जाना जाता है. तब तुर्की उदारवादी था और यूरोप के करीब, बल्कि तुर्की को यूरोपियन यूनियन में शामिल करने की बात थी. लेकिन इसे तुर्की की 80 फीसदी आबादी इस्लामोफोबिया के तौर पर देखती थी. इसलिए अर्दोआन चुने गए, जिन्होंने धर्म और उदारवाद के बीच संतुलन बनाने का वादा किया था. सत्ता में जमे रहने के बाद अर्दोआन तानाशाह बनते गए और तानाशाही और आजादी के बीच का संतुलन बिगड़ता गया.

इसी दौरान अर्दोआन की ताकत को चुनौती देने वाला नाम सामने आया एकेम इमामोलू का. वो इस्तांबुल के मेयर भी हैं और उदारवादियों से लेकर कट्टरपंथियों को स्वीकार्य भी. लेकिन इमामोलू पर भ्रष्टाचार के अलावा कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी की मदद का भी आरोप है. कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी को तुर्की की सरकार और अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित किया है. अदालत ने राष्ट्रविरोधी आरोपों को तो खारिज कर दिया है, लेकिन भ्रष्टाचार और कॉलेज की फर्जी डिग्री के मामले में केस बरकरार हैं. ऐसे में इमामोलू के चुनाव में उम्मीदवारी की संभावनाएं तो खत्म सी हो गई हैं.

लेकिन फिर भी तुर्की में विरोध की आग तेज हो रही है. लाखों लोग इस्तांबुल, अंकारा और इज्मीर की सड़कों पर हैं. लोगों का हुजूम 2013 के गेजी पार्क विरोध की याद दिला रहा है. 2013 में गेजी पार्क में सरकार के खिलाफ हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन ने अर्दोआन की सरकार को हिला दिया था. तब मामला पर्यावरण से जुड़ा था, जो बाद में सरकार की तानाशाही के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन बन गया. आज भी ऐसा लगता है कि इमामोलू की गिरफ्तारी एक गंभीर समस्या का लक्षण भर है. समस्याएं कई हैं इकॉनमी से लोग असंतुष्ट हैं, न्यायपालिका पर अविश्वास है और प्रेस की आजादी पर बड़े सवाल हैं.

विरोध करते लोग अर्दोआन के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं. इमामोलू की गिरफ्तारी ने विपक्ष को एकजुट कर दिया है. उनकी पार्टी CHP ने देश भर में एक प्रतीकात्मक वोटिंग करवाई है—“solidarity ballot”. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस गिरफ्तारी को गलत बताया गया है. जानकार कहते हैं कि पश्चिमी सहयोगियों के साथ तुर्की के रिश्ते और बिगड़ सकते हैं. वैसे तो राष्ट्रपति चुनाव 2028 में हैं, लेकिन इमामोलू की गिरफ्तारी ने तुर्की के सियासी परिदृश्य को काफी बदल डाला है. अगर सड़कें यूं ही विरोध के नारों से गूंजती रहीं, तो चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं. तुर्की में विरोध की ये गूंज बहार ए अरब की याद ताजा कर रही है.

(नगमा सहर एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर, सीनियर एंकर हैं.)

(डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)

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