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This Article is From Jul 28, 2015

जब मैं कलाम से अवार्ड लेते-लेते रह गई थी : स्वाति अर्जुन

written by Swati Arjun
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  • Updated:
    जुलाई 28, 2015 20:43 pm IST
    • Published On जुलाई 28, 2015 13:36 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 28, 2015 20:43 pm IST
कल रात जब रात नौ बजे किसी दोस्त से बातें कर रहीं थी तो उसने रोकते हुए कहा, रुक जाओ बड़ी बुरी ख़बर आ रही है।  डॉ कलाम नहीं रहे....आंखें तभी से नम हैं, आंसु गाहे-बगाहे पलकों की यात्रा कर.....लौट जा रहे हैं...

अभी-अभी टेलीविज़न पर देख रही हूँ कि भारत रत्न डॉ कलाम का पार्थिव शरीर दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पहुंचा तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, तीनों सेना के चीफ़ और अधिकारी सभी मौजूद थे।  

सोचने लग गई कि आख़िर आधुनिक भारत के इस ऋृषि में ऐसा क्या है, जिसने हम सभी को उनसे भावनात्मक स्तर पर जोड़ रखा है। मैं सोचने लग गई कि आख़िर इस शख़्स में ऐसा क्या था कि उनके जाने के बाद देश शोक में डूब गया और मेरे जैसी एक आम नागरिक के पास भी उनसे जुड़ी यादें हैं।

ख़बरों के कोलाहल में, बहुतेरे यादों के बीच मेरी आँखों के सामने 1998 का मार्च महीना घूम गया।  मैं ग्रैजुएशन कर रहीं थी, मेरे होम टाउन धनबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज आईएसएम में हर साल की तरह  'Spring Saturnalia Festival' यानि सालाना आयोजित किए जाने वाला तीन दिन का स्टूडेंट्स फेस्टिवल चल रहा था।

इस फेस्टिवल में आमतौर पर बिहार और झारखंड और बंगाल के इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र भाग लेते थे, लेकिन हमारे कॉलेज का सेंटर आईएसएम कैंपस के भीतर होने के कारण हमें भी इस फेस्टिवल में भाग लेने की इजाज़त मिल जाती थी।

....और मैं अपने कॉलेज के साथियों के साथ, इस फेस्टिवल के कई प्रतियोगिताओं में शामिल हुई। तीन दिन ख़त्म होते-होते हमने संयुक्त रुप से नाटक, बैडमिंटन और मैंने एकल रुप से एक्सटेंपोर प्रतियोगिता में अवॉर्ड जीता था। अवॉर्ड डिस्ट्रिब्यूशन फेस्टिवल के अंतिम दिन होना आधी रात के बाद....उससे पहले कल्चरल इवेंट थे, और हमारे चीफ़ गेस्ट थे तब भारत रत्न मिसाईल मैन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम।  

डॉ कलाम दोपहर 4 बजे एक नेवी ग्रीन फोर सीटर चौपर से आईएसएम के लोअर ग्राउंड में उतरे थे। तब हमारे शहर का हैलीपैड भी आईएसएम की ग्राउंड को चुनौती नहीं दे पाता था।  

चूंकि ये फंक्शन देर रात होनी थी और आईएसएम कैंपस मेरे घर से 15-20 किमी दूर था तो मुझे मन मसोस कर रात 9 बजते-बजते मुझे अपने पेरेंट्स के साथ घर लौटना पड़ा।

मुझे याद है कि मैं बहुत रोयी थी कि मुझे रात में वहीं छोड़ दिया जाए ताकि मैं अपना अवॉर्ड खुद डॉ कलाम से रिसीव करती, लेकिन घरवाले तैयार नहीं हुए और मेरा अवॉर्ड मेरे बदले मेरे कॉलेज के अन्य साथियों ने रिसीव किया।  

मैं बहुत दुखी थी, घरवालों को समझा पाने में असमर्थ थी कि मेरा क्या छूट रहा है लेकिन मेरे साथी मेरी इस मनोदशा से वाकिफ़ थे। डॉ कलाम अगले दिन आईएसएम के बी-टेक और एम-टेक स्टुडेंट्स के बीच एक लेक्चर देने वाले थे,  मैंने वहां के छात्रों से मदद मांगी और मैनेजमेंट से परमिशन लेकर अगले दिन वहां पहुंच गई।

लेक्चर के बाद जब कलाम हॉल से निकलने लगे तो मैं बड़ी मुश्किल से उनके पास पहुंची, अपने सर्टिफिकेट्स के साथ....और सर्टिफिकेट्स उनकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, 'सर, मैं स्वाति हूँ, कल के एक्सटेंपोर और वन-एक्ट प्ले कॉम्पिटीशन की विजेता, कल अपना अवॉर्ड लेने नहीं आ पायी थी इसलिए आज आपसे मिलने आयी हूं।'

मेरी इस बात पर दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते डॉ कलाम के कदम ठिठके, वो रुके फिर मेरी तरफ मुड़ते हुए अपना हाथ बढ़ाया और कहा....तभी मुझे लगा कि स्वाति नाम किसी लड़के का कैसे हो सकता है। क्योंकि जब तुम्हारा नाम पुकारा गया था तब एक छात्र ये अवॉर्ड लेने आया था। अगली बार, ऐसी चीज़ों से कंप्रोमाइज़ ना करें, अगर प्रतियोगिता आपने जीती है तो अवॉर्ड भी आपको ही ग्रहण करना चाहिए। किसी और को नहीं, ये आपका अधिकार है।'

कहना ज़रुरी नहीं कि डॉ कलाम की ये संक्षिप्त मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी की उन धरोहरों में से एक है, जिसपर मुझे अभिमान है।

अभिमान है कि मैं उस देश की वासी हूं जिस देश के कण-कण में 'कलाम' बसते हैं।

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