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This Article is From Mar 05, 2016

सुशील महापात्रा का ब्लॉग - जब रात के अँधेरे में कन्हैया मांगे आज़ादी

Sushil Kumar Mahapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 05, 2016 10:47 am IST
    • Published On मार्च 05, 2016 10:05 am IST
    • Last Updated On मार्च 05, 2016 10:47 am IST

3 मार्च की रात, जेएनयू का एडमिन ब्लॉक, रात के आठ बजे होंगे, ब्लॉक के सामने छात्र- छात्राओं की भीड़ बढ़ती जा रही थी। किसी न किसी गली से कोई न कोई निकलकर इस ब्लॉक के सामने पहुंच रहा था। कोई बहुत बड़ी व्यवस्था नहीं था। बाहर की स्ट्रीट लाइट से यह जगह थोड़ा सा साफ दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था यह लोग कोई नाटक देखने जा रहे हैं जैसे गांव में जाते हैं। कोई पार्क से निकल रहा था तो कोई पेड़ की बीचोंबीच से निकलकर पहुंच रहा था। चारों तरफ से पेड़ से घिरे एडमिन ब्लॉक के सामने सब कुछ अलग लग रहा था।

पिछले कुछ दिनों से इस ब्लॉक की पहचान बदल गई थी। कुछ दिनों से रोज़ इस ब्लॉक के सामने राष्ट्रवाद की पाठशाला लगती थी। यहां टीचर्स बच्चों को राष्ट्रवाद की संज्ञा समझाते थे। पिछले कुछ दिनों से जिस तरह राष्ट्रवाद को लेकर बहस चल रही है उसी बहस ने इन टीचर्स को मजबूर कर दिया था अपने छात्रों को राष्ट्रवाद के बारे में समझाने के लिए। यहां कन्हैया आनेवाला था। वही कन्हैया जिसको देशद्रोह के मामले में जेल भेज दिया गया था। जमानत पर रिहा कन्हैया का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था। कोई झोला पकड़कर खड़ा था, तो कोई लुंगी पहनकर आ गया था, कोई साइकिल के ऊपर बैठ हुआ था तो कोई पेड़ में चढ़ने की कोशिश कर रहा था। ऐसा लग रहा था कोई फ़िल्म एक्टर आनेवाला हो ।

इस बच्चों की शक्ल में एक खुशी की लहर थी, जिसे भी देखो कन्हैया का बात कर रहा था। ऐसा लग रहा था पूरा जेएनयू कन्हैया का इंतज़ार कर रहा है। ब्लॉक के चारों तरह भीड़ बढ़ती जा रही थी। कई प्रोफेसर जिनको मैं जानता हूं वह भी बेसब्री से कन्हैया का इंतज़ार कर रहे थे। इन छात्रों में कई वह छात्र भी थे जो एबीवीपी की सोच से प्रभावित हैं लेकिन फिर वह कन्हैया को सुनने आए थे, उसका साथ देने आए थे, यही तो जेएनयू है, यही तो लोकतंत्र है।

धीरे-धीरे कन्हैया की फ़िल्मी अंदाज़ में एंट्री हुआ। लाल सलाम और जय भीम की नारों में बच्चे झूम उठे। कन्हैया पहुंचते ही चारों तरफ से ताली की आवाज़ सुनाई देने लगी। कन्हैया के हाथ में माइक थमा दिया गया। फिर यहां पर जो होता है वह बयां करना मुश्किल है। मुश्किल इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि कन्हैया की स्पीच शुरू होते ही सब स्पीचलेस हो गए। कन्हैया बोलते जा रहा था, बोलते जा रहा था। जो जहां पर खड़ा हुआ है वहीँ खड़ा है। बीच-बीच में तालियों  की गड़गड़ाहट सुनाई दे रहा थी। कभी कन्हैया तालियों पर हावी हो जाता था तो कभी तालियां कन्हैया के ऊपर।

कन्हैया ने क्या बोला आप सब ने सुना है। उसकी स्पीच शानदार थी या नहीं यह आप को तय करना है लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि जेएनयू में रात के अँधेरे में यह स्पीच एक दर्द की कहानी बयां कर रही थी। इसमें परियों की वह फ़र्ज़ी कहानी नहीं थी जो आप न्यूज़ चैनलों में देखते हैं। यह स्पीच बनाबटी कम हकीकत ज्यादा लग रही थी। स्पीच के दौरान कन्हैया कहीं रुका नहीं, किसी ने उसे टोका भी नहीं क्योंकि स्पीच में उन तमाम मुद्दों को सामने लाकर खड़ा कर दिया था जिसे मुद्दा बनाने में या बनने देने में हम सबका हाथ है।

रात के अंधेरे में कन्हैया आज़ादी मांग रहा था, जातीवाद से, मनुवाद से,भुखमरी से, तोड़फोड़ से, जेएनयू मांगे आज़ादी। सिर्फ कन्हैया नहीं यहां पर खड़े हुए सभी लोग कन्हैया के ताल से ताल मिलाकर आज़ादी की मांग कर रहे थे चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, बिहारी हो, बाहरी हो, मद्रासी हो, केरल के हो सब। इस पुरे मामले में एक बात तो साफ़ हो गई थी कि जेएयू को तोड़ना इतना आसान नहीं है। जेएनयू के इस एकता को देखकर खुशी हो रही थी।

सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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