नोटबंदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष, अलग-अलग मांग, मकसद भी जुदा

नोटबंदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष, अलग-अलग मांग, मकसद भी जुदा

देश में नोटबंदी का असर, एटीएम और बैंक के बाहर लगी लोगों की लाइनें...

अगर आप के पास समय हो और संसद में किसी बड़े मुद्दे को लेकर जब बहस हो रही हो तब आप को सांसदों का भाषण सुनना चाहिए. संसद में जब भी किसी मामले को लेकर बहस होती है तब हमारे सांसद शानदार तैयारी के साथ आते हैं और अपने स्पीच से मनमुग्ध कर देते हैं. कुछ दिन पहले नोटबंदी को लेकर जब राज्यसभा में एक घंटे के लिए बहस हुई थी तब कुछ सांसदों को बोलने के लिए मौक़ा मिला था, लेकिन इस थोड़े से समय में कुछ सांसदों ने शानदार स्पीच दी. ऐसा लग रहा था जैसे नोटबंदी का हर समाधान इनके पास है.

नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने ऐलान किया तब उनकी तारीफ होने लगी. उस वक्त लोग सिर्फ यही सोच रहे थे कि अब काला धन ख़त्म हो जायेगा. अमीर और गरीब के बीच फासला काम हो जाएगा और कई उम्मीदों के साथ प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय का लोगों ने दिल से स्वागत किया और काला धन रखने वालों के दिल की धड़कन ने जोर पकड़ लिया.

करीब दो दिन तक माहौल अच्छा रहा. सरकार की तारीफ हुई, विपक्ष भी चुप था, समझ नहीं पा रहा था कि इस निर्णय का कैसे विरोध किया जाए. अगर तुरंत विरोध होता तो लोगों के सामने विपक्ष विलेन बन जाता. लोग कहते कि राजनैतिक दल काला धन के खिलाफ लड़ना नहीं चाहते हैं.

फिर समय के साथ-साथ नोटबंदी की ख़ामियां सामने आने लगी. बैंक के सामने लोगों की लंबी कतार, समाज के अलग वर्ग के लोगों को हो रही परेशानियां ने विपक्ष को सरकार के खिलाफ कमर कसने में मदद की. सबसे पहले ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी सरकार के इस निर्णय का विरोध किया. फिर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में मोर्चा संभाला. उन्होंने बार-बार प्रेस कांफ्रेंस के जरिए सरकार पर हमले किए. फिर दूसरी दलों ने भी अपनी आवाज तेज की. राहुल गांधी ने भी एटीएम के सामने कतार में खड़े होते हुए अपना विरोध ज़ाहिर किया लेकिन गोवा में प्रधानमंत्री मोदी के इमोशनल स्पीच इन सब पर भारी पड़ी.

फिर धीरे-धीरे लगभग सभी बड़ी पार्टी नोटबंदी के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी और फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नोटबंदी के समर्थन में उतरे. नीतीश ने प्रधानमंत्री के इस निर्णय का स्वागत किया और बेनामी संपत्ति पर हमले की अपील की. नीतीश के इस कदम से सरकार को थोड़ी राहत मिली. लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के जो नेता नीतीश पर हमले कर रह थे वह भी नीतीश की तारीफ करने लगे.

संसद के शीत सत्र नवंबर 16 से शुरू हुआ. अब विपक्ष के पास एक मौका था सरकार को घेरना का. विपक्ष ने कमर कस ली. सरकार को संसद के अंदर घेरने की रणनीति तैयार करने के लिए राजनैतिक दलों के बीच मीटिंग भी हुई. संसद की कार्यवाही शुरू हुई फिर संसद में हंगामा होता गया. सभी बड़ी पार्टियां संसद में सरकार के खिलाफ खड़े होते हुए नज़र आईं.

प्रधानमंत्री की संसद में आने की मांग हुई, लेकिन सरकार यह बार बार कह रही थी कि जब जरूरत पड़ेगी तो प्रधानमंत्री संसद में आएंगे लेकिन विपक्ष सुनने के लिए तैयार नहीं था. अब कुछ पार्टियों ने भारत बंद किया तो कुछ ने देशभर में आक्रोश दिवस मनाया. लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि संसद के बाहर विपक्ष एकजूट नहीं था. लगभग सभी विपक्षी दल संसद के अंदर सरकार के खिलाफ एकजुट थे, लेकिन संसद के बाहर सभी का रास्ता अलग था.

इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है हर पार्टी का अपना वजूद. पार्टियां अपनी-अपनी पहचान को लेकर चिंता में हैं. एक-दूसरे पर हावी होने का भी डर है. इस मसले पर कभी ऐसा देखने को नहीं मिला कि विपक्ष ने एक साथ मिलकर कोई प्रेस कांफ्रेंस की हो. कांग्रेस अलग बोल रही है तो मायावती अलग. दूसरी दल भी अपने-अपने तरीके से बयान दे रहे हैं.

सुशील कुमार महापात्र  NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट को-ऑर्डिनेटर हैं...

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