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This Article is From May 17, 2018

कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट वही कहेगा जो 2005 में झारखंड मामले में कह चुका है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 17, 2018 20:21 pm IST
    • Published On मई 17, 2018 20:21 pm IST
    • Last Updated On मई 17, 2018 20:21 pm IST
कर्नाटक राज्यपाल के फैसले और वहां सरकार बनाने की दावेदारी के संदर्भ में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है. इसके पहले आपको 2005 में झारखंड मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच के फैसले और बहस के दौरान मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी की दलील को पढ़ लीजिए, आप तीन दिनों तक बिस्तर से नहीं उठेंगे कि नेता और वकील कैसे वक्त आने पर अपने ही कहे के खिलाफ मज़बूती से तर्क करते हैं. 2005 में हिन्दू अखबार के रिपोर्टर जे वेंकटेशन ने इतनी स्पष्ट कापी लिखी है कि आप उसे पढ़ते हुए समझ जाएंगे कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट क्या कह सकता है.

2005 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अर्जुन मुंडा के पास बहुमत है या मुख्यमंत्री सोरेन के पास, इसका सदन के भीतर कंपोज़िट परीक्षण हो. व्यापक बहुमत परीक्षण. बेंच ने कहा था कि अगर याचिकाकर्ता का दावा सही है तब राज्यपाल का कदम (शिबू सोरेने को मुख्यमंत्री बनाना) संविधान के साथ फ्रॉड है. इसके आगे और फ्रॉड न हो, हम इसे रोकना चाहते हैं. चीफ जस्टिस आर सी लाहोटी, जस्टिस वाई के सबरवाल, जस्टिस डी एम धर्माधिकारी की बेंच थी. इस बेंच ने राज्यपाल सिब्ते रज़ी पर एंग्लो इंडियन सदस्य की नियुक्ति करने से भी रोक दिया. कहा कि वैधानिक रूप से सरकार बन जाने तक नियुक्ति न हो. सिर्फ चुनाव में चुने गए सदस्य ही बहुमत परीक्षण में शामिल होंगे.

उस वक्त राज्यपाल सिब्ते रज़ी ने पांच दिन का समय दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने घटा कर दो दिन कर दिया. एक दिन विधायकों की शपथ विधि हो और उसके अगले दिन बहुमत परीक्षण. जजों ने चेतावनी दी कि सदन की कार्यवाही शांतिपूर्वक चलनी चाहिए. अदालत कुछ भी होने को गंभीरता से देखेगी. कार्यवाही का क्या नतीजा निकला, वीडियो रिकॉर्डिंग सब सुप्रीम कोर्ट में जमा करने को कहा गया.

मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया गया कि सुनिश्चित करें कि सभी निर्वाचित सदस्य विधानसभा में आएं और बिना किसी गड़बड़ी के वोट हो. कर्नाटक में विधायकों के अनुपस्थित होने की बात हो रही है, इसे रोकने की व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट पहले भी दे चुका है. 2005 का यह आदेश उत्तर प्रदेश के मामले में 1998 के आदेश की परंपरा में था. क्या 2018 के आदेश में भी यही सब देखने को मिलेगा?

उस वक्त जो वकील बहस कर रहे थे, कर्नाटक मामले में भी यही दोनों बहस कर रहे हैं. मगर इस बार दोनों के पाले बदले हुए थे और दलीलें भी बदल गई थी. इस वक्त मुकुल रोहतगी कर्नाटक के राज्यपाल का बचाव कर रहे हैं, 2005 में झारखंड के राज्यपाल पर सवाल उठा रहे थे. इस वक्त सिंघवी कर्नाटक के राज्यपाल पर सवाल कर रहे हैं, उस वक्त झारखंड के राज्यपाल का बचाव कर रहे थे. तब सिंघवी हार गए थे, इस बार देखना है कि कौन जीतता है.

अर्जुन मुंडा की तरफ से पेश होते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा था कि राज्यपाल सिब्ते रज़ी ने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को बहुमत साबित करने के लिए काफी लंबा समय दिया है. इससे ख़रीद फरोख़्त को बढ़ावा मिलेगा. राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर संवैधानिक मर्यादाओं की हत्या की है. जबकि एनडीए यानी अर्जुन मुंडा के पास 36 सीट है. बहुमत है. कांग्रेस जेएमएम के पास 26 सीट है. मुकुल रोहतगी चाहते थे कि रिटार्यट जज की निगरानी में सदन की कार्यवाही संचालित की जाए.

अभिषेक मनु सिंघवी झारखंड सरकार की तरफ से बहस कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इस वक्त कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है. सदन में बहुमत के वक्त पर्यवेक्षक नियुक्त करना उचित नहीं होगा. क्या अदालत को यह बात पसंद आएगी कि संसद कोर्ट की कार्यवाही पर नजर रखने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त करे. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अदालत को राज्यपाल को मिले संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. तब सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी की दलील को खारिज कर दिया था.

2005 के झारखंड मामले में तीन जजों की बेंच के फैसले को पढ़ेंगे तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला किस दिशा में हो सकता है. अदालत बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन को घटाकर 36 घंटे कर सकती है, कंपोज़िट बहुमत परीक्षण के आदेश दे सकती है, कह सकती है कि पहले विधायकों की शपथ विधि होगी और फिर उसके बाद बहुमत परीक्षण होगा.

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