गांव मूसापुर की कांशीराम की सभा ने अमरगढ़ गांव के एस एस आज़ाद की ज़िंदगी बदल दी. आज़ाद कांशीराम के आंदोलन की यात्रा में शामिल हो गए. बारहवीं की पढ़ाई पूरी की और इलेक्ट्रिकल में आईटीआई डिप्लोमा के बाद मन कांशीराम के आंदोलन में रम गया. वे नाटकों के ज़रिये सामाजिक चेतना फैलाने में लग गए. लेकिन तमाम कार्यक्रमों के दौरान महसूस किया कि उनके रविदासी समाज का युवा अपनी पहचान को लेकर बेचैन है. मायूस है. उनसे बातचीत में लड़के कहते थे कि सभी समाजों के गाने हैं लेकिन हमारे समाज के गाने नहीं हैं. आज़ाद के दिल में यह बात उतर गई.
2005-06 के दौरान एस एस आज़ाद अपने मंचों से संत रविदास गुरु जी की वाणी के आधार पर एक गाने को आज़माया. 2009 में उसी को म्यूज़िक वीडियो के रूप में शूट किया और लांच कर दिया. नाम था 'अनखी पुत चमारा दे.' आप यू ट्यूब पर 'अनखी पुत चमारा दे' टाइप करेंगे तो इसके अनेक रूप मिलेंगे लेकिन इसे पहली बार म्यूज़िक वीडियो में उतारने वाले एस एस आज़ाद ही थे. आज़ाद ने बताया कि उस साल उन्हें खूब गालियां पड़ी थीं. म्यूज़िक वीडियो वाले घबरा गए कि गाने में चमार का इस्तमाल करेंगे तो मुकदमा हो जाएगा. कुछ म्यूज़िक चैनलों ने चलाने से इंकार कर दिया कि इसे चलाएंगे तो समाज में झगड़ा शुरू हो जाएगा. इसके बाद भी आज़ाद ने हार नहीं मानी. अनखी पुत चमारा दे लांच कर दिया. अनखी पुत्त चमारा दे सुपर हिट हो गया. ये मुख्यधारा के गानों में एक समाज की अनुपस्थिति का जवाब था. मुख्यधारा का प्रतिकार था.
उत्तर प्रदेश में कांशीराम के आंदोलन का असर विशुद्ध राजनीतिक है. उनकी बनाई पार्टी की नेता चार चार बार मुख्यमंत्री बनीं. पंजाब के होते हुए भी कांशीराम वहां के दलितों को राजनीतिक सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंचा सके जबकि सबसे अधिक दलित पंजाब में ही हैं. दलितों ने पंजाब में सांस्कृतिक सत्ता को चुनौती दे दी. म्यूज़िक वीडियो के दौर में पंजाब के गानों की जट किसानों की अमीरी, शानोशौकत और विदेश यात्राओं की भरमार थी. रविदासी समाज के लोगों ने अपना म्यूज़िक वीडियो बनाकर शादी समारोहों में बजाना शुरू कर दिया. चमार गीत पहचान का गीत बन गया. समाजशास्त्रियों ने सांस्कृतिक क्षेत्र में आए इस भूचाल को नोटिस में ही नहीं लिया. पंजाब में उभरा चमार गीत कांशीराम के आंदोलन का एक नतीजा है.
आप यू ट्यूब पर जायेंगे तो चमार गीत खूब मिलेंगे. गायक भी और तराने भी. पंजाब के दलित भी विदेश गए लेकिन वे अमेरिका और लंदन की बजाय पहले खाड़ी के देश गए. आर्थिक स्थिति के कारण यहीं तक जा सके लेकिन वहां समृद्धि आई तो दलितों ने इटली और ऑस्ट्रिया की तरफ उड़ान भरी. ये सब बातें रवीश की रिपोर्ट के दौरान लोगों ने ही बताई थीं. 2010 के साल में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में रविदासी समाज के एक प्रतिष्ठित संत की हत्या हुई थी जिसे लेकर खूब बवाल हुआ था. उन आंदोलनों में ये गाने खूब बजा करते थे.
आज़ाद ने कहा कि हमने इन गानों में संत रविदास जी के संदेशों को ही रखा. लेकिन जब मंचों पर इन गीतों के साथ नोट उड़ाये जाने लगे तो बिजनेस वालों को समझ आ गया कि इसमें काफी पैसा है. आज चमार सांग बिजनेस का भी हिस्सा है. मुझे चिन्ता इस बात की है कि ये गीत अपनी पहचान न खो दें और मुख्यधारा के गानों की तरह न हो जाएं. आज़ाद ने कहा कि शुरुआत में काफी कुछ झेलना पड़ा. म्यूज़िक वीडियो बनाने वाली कंपनियों ने अपना हाथ पीछे ले लिया कि चमार शब्द के इस्तेमाल के कारण कहीं मुकदमों में न फंस जाएं. आप पाठकों को भी पता होना चाहिए कि चमार का इस्तेमाल अगर आप ग़लत मंशा से, किसी को कमतर बताने, अपमानित करने के लिए करते हैं तो कानूनी अपराध है. 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया था. किसी को भी जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. लेकिन इस अपराध से पहले यह देखना होगा कि किस मकसद से चमार कहा गया है. जस्टिस अल्तमस कबीर और जस्टिस मार्कंडेय काटजू का यह फैसला था.
आज़ाद की मानें तो इस गाने ने रविदासी समाज के युवाओं को पूरी तरह से बदल दिया है. अनखी पुत्त चमारा दे के तीन किरदार थे. एक सेना में जाता है, एक खिलाड़ी बनता है जो नशा नहीं करता है और एक गायक बनता है जो समाज को जगाता है. आज़ाद का संदेश था कि मेले में क्या जाना है, वहां जाकर जवानी ख़राब नहीं करनी है. गुरुओं के मिशन को आगे बढ़ाना है.
इन गानों के बोल और भाव का विश्लेषण होना बाकी है. ज़्यादतर गानों में बेग़मपुरा बनाने का सपना है. आज़ाद ने बताया कि संत श्री रविदास जी ने अपनी वाणी में कहा है कि बेग़मपुरा शहर बसाना है जहां किसी से कोई भेदभाव नहीं होगा. कोई बड़ा छोटा नहीं होगा. जहां कोई किसी को डराता न हो और न डरता हो. ये भाव आपको हर दूसरे चमार गीत में मिलेंगे. आज़ाद कहते हैं कि अब भाव ही है मगर बाज़ार भाव कहां समझता है.
पंजाब के दलित जातिगत भेदभाव को चुनौती देना चाहते थे. उन्होंने इन गानों के सहारे अपनी पहचान को सीने से लगा लिया. यह एक बड़ी चुनौती थी. आज़ाद कहते हैं कि आज भी उन यातनाओं के गर्भ से ही हमारे गीत निकलते हैं. मेरे गांव में अनुसूचित जाति के लिए अलग श्मशान क्यों है. जब मैंने यह सवाल किया तो मेरे ही ख़िलाफ़ आवाज़ उठी कि इसे गांव में मत बुलाओ. जबकि मेरा गाना पूरी दुनिया में सुपर हिट है. आज़ाद की लगाई हुई फसल लहलहा रही है. चमार गीत गाने वाले कई गायक हो गए हैं. गिनी भी उनमें से एक है. गिनी के गीतों में भी बग़ावत है लेकिन इस बग़ावत को हमें उस संदर्भ में देखना चाहिए जिसकी बुनियाद जाने अनजाने में कांशीराम के विचारों से पड़ी थी.