सुनो श्री, वो उस समय महज पांच साल की थी जब 'सदमा' दूरदर्शन पर दिखाई गई. काले-सफेद चलचित्रों में तुम्हारी नादानियों पर हंस रही थी, तुम्हारी तरह ही अपनी चोटी से खेल रही थी, जब तुम रोती तो रुआंसी होती, उन गुंडों को देखकर उसने भी अपनी भौंहें सिकोड़ कर मुट्ठी और दांत भींच लिए थे... ढाई घंटे की उस फिल्म में उसने अंत तक तुमसे प्यार किया. तुम्हारी एक-एक सांस के साथ वह भी सांस भरती और छोड़ती... तुम्हारे साथ उसने भी उस दिन जिंदगी से वादा किया था कि ठीक ऐसे ही हंसते-खेलते वह उसे गले से लगा कर रखेगी.
'सदमा' के बाद जैसे-जैसे तुम बढ़ रही थी वह तुम्हारे साथ-साथ बड़ी होती रही. कभी वह तुम्हारी तरह हंसती, नादानियां करती, तो कभी तुम्हारी तरह खयालों में ही सही गुंडों से अकेले अपने दम पर भिड़ जाती... तुम अपने किरदारों में बड़ी हो रही थी और वो इनके साथ-साथ अपने जीवन में. बचपन में उसने 'सदमा' से तुम्हारी नादानियों को समझा और उसी मासूमियत से जिया भी. जवानी में उसने चांदनी की तरह चुलबुलाहट ली, तो साथ ही मिस्टर इंडिया की सीमा सोनी की तरह हिम्मत भी तुमसे ही पाई... प्यार करना और उसे आत्मसात करना भी तो उस नादान ने तुम्हें देख-देख कर ही सीखा था...
उस लड़की के जीवन रंगमंच पर तुम हर जगह मौजूद हो. बचपन में मां के डांस करके दिखाने पर भी वह यह गाते हुए नाच उठती थी- 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़िया हैं.' तो स्कूल की नादान दुश्मनी में उसने यह भी कहा - 'मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा...' जब जवानी में कदम रखा, तो उसने भी कहा था- 'आज अभी यहीं...' किसी को उसने भी दिखाई थी अपनी - ' उंगली में अंगूठी और अंगूठी का नगीना...
तुम पर्दे पर बड़ी हो रही थी और तुम्हारे साथ-साथ वह जीवन के रंगमंच पर... जीवन और उम्र के हर पड़ाव को उसने तुममें खोज लिया था. और जाने कैसे तुम भी जानती थी कि वह अपने जीवन में किन-किन मुसीबतों का सामना कर रही है, तभी तो शायद तुमने हर उस परेशानी को विषय बनाकर फिल्म बना दी, जिससे वह दो-चार होती थी... तभी तो शायद तुमने रोमांटिक, तेज-तर्रार, निडर किरदारों के साथ-साथ की 'इंग्लिश-विंग्लिश' और 'मॉम' जैसी फिल्में... शायद तुम जानती थी कि तुम्हारी वह मासूम बच्ची अब बड़ी हो रही है और उसे अपने असल जीवन में यही किरदान निभाने हैं...
वो पांच साल की मासूम तो जवानी तक यही समझती थी कि तुम उसके साथ हो, उसे राह दिखाती हो, उसी के सवालों का जवाब देने के लिए ही तुम फिल्में करती हो. वो जानती थी, तुम हमेशा उसके साथ हो इसलिए उसने तुम्हें हमेशा अपने साथ रखा, अपने पास रखा, लेकिन तुम आज उसे अकेला छोड़कर चली गईं...
अब तक अपने जीवन में आने वाले हर पड़ाव को समझने या अपनी बात किसी और को समझाने के लिए उसे तुम्हारा सहारा था. वह अक्सर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाती. लेकिन श्री, तुमने उसकी भावनाओं को, उसके हकों को बड़े पर्दे पर खुलकर पूरी दुनिया के सामने रखा था. कितना सहारा था उसे तुम्हारा...
वह हर समय अपने मन में तुम्हें साथ लेकर चलती थी, हर डगर, पगडंडी और ऊंचे नीचे रास्तों पर तुम्हारा मुंह तका करती थी कि अब आगे क्या और कैसे करना है... लेकिन अब तुमने उसे अकेला छोड़ दिया... तुम अपने सफर पर निकल गई हो, लेकिन वह अब तुम्हें किसी नए रूप में देखने के लिए 70 एमएम की स्क्रीन की ओर नहीं, ऊपर अनंत आकाश की अंतहीन स्क्रीन की ओर देखेगी.
यह बात किसी एक लड़की की नहीं, उन तमाम लड़कियों की है, जिन्होंने श्रीदेवी को देखकर जीना सीखा. उनके साथ अपने जीवन में कई पहलुओं को जिया. श्रीदेवी के किरदरों से प्रेरणा ली. आज उनके जीवन में एक खालीपन आया है, जिसे शायद भर पाना उनके लिए मुश्किल है. श्री, (मैं उन्हें बचपन से श्री ही कहती थी) तुम्हारा यूं जाना कई दिलों में घुप्प अंधेरा कर गया है, लेकिन यकीन रखना इन्हें फिर रोशन करने के लिए तुमने खूब चराग जलाए हुए हैं... हम तुम्हें तुम्हारे किरदारों में जिंदा रखेंगे, तुम्हें जीएंगे और तुममें जिंदा भी रहेंगे... नम आंखों से श्रद्धांजलि...
साथ ही मैं बता देना चाहती हूं कि शायद आपको यह अजीब लगा हो कि मैंने श्रीदेवी जी के लिए 'तुम' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया, 'आप' का क्यों नहीं किया. तो इसकी वजह है कि इस लेख में मैं श्रीदेवी जी को अपने और उन सब महिलाओं से करीब और बिलकुल अपनेपन के साथ मिलाना चाहती थी. उनके लिए देश की तमाम महिलाओं के मन में बेहद सम्मान है और उनके जाने मेरी और मेरी मां की जनरेशन की कई महिलाओं के जीवन में आज जो खालीपन आया है वह कभी भर नहीं पाएगा...
(अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं)
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This Article is From Feb 25, 2018
श्रीदेवी, तुम उसे अकेला छोड़ गई, जिसने तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा...
Anita Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 25, 2018 18:03 pm IST
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Published On फ़रवरी 25, 2018 18:03 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 25, 2018 18:03 pm IST
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