तकरीबन 1800 किलोमीटर का हमारा ये सफर दिल्ली से शुरू हुआ. तीन अलग-अलग शहर से आकर हम तीन दोस्त दिल्ली में मिले. दो बाइक में जरूरी सामान बांधकर हम चंडीगढ़ और शिमला के रास्ते से टपरी, छितकुल, नाको, काझा, किब्बर, चांगो, स्पैलो से होते हुए दसवें दिन दिल्ली वापिस लौटे. स्पीति (Spiti Valley) के रास्ते के क्या कहने. 3 पंचर, 2 खतरनाक एक्सीडेंट, कड़कती ठंड और रास्ते में मिले ढेरों लैंड स्लाइड्स ने बेशक जिंदगी की अहमियत सीखा दी. लेकिन बर्फ से ढके इन पहाड़ों ने हमें वो दिया, जो पब, क्लब और क्रेडिट कार्ड कभी न दे पाया.
वैसे लोग इस एरिया में गर्मी में जाने की सलाह देते हैं, क्योंकि उस वक्त बर्फ-बारी कम होती है और रास्ता खुला होने की वजह से सफर आसान. सर्दियों में जाना खतरनाक माना जाता है, लेकिन इन दिनों में कम से कम भीड़ होने की वजह से वादियों की खूबसूरती और भी ज्यादा निखर कर दिखती है. ऐसे में हम चल पड़े नवंबर की चिलचिलाती ठंड में. सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब ठंड के मारे काझा तक पहुंचते हुए हम में से एक गाड़ी से गिरकर बेहोश तक हो गया. लेकिन जैसे-तैसे उसे होश में लाया गया और सुबह का दृश्य देख पिछली रात की सारी थकावट-कड़वाहट छू-मंतर हो गई.
अकेली लड़की, 24 घंटे, टू व्हीलर और गोवा का सोलो सफर
चिलचिलाती ठंड, बर्फ से ढके रास्ते, पहाड़ों से गिरते पत्थरों से कहीं ज्यादा खूबसूरत वादियां, स्नो फॉल, बहती नदियां और पहाड़ियों का व्यवहार हमें याद रहा. इंसान से कहीं ज्यादा गूंगे जानवर हमारे साथ पहाड़ों में कदम से कदम मिलाते चले.
हो सकता है कि हम पहले से प्लानिंग करते तो सफर और भी बेहतरीन होता, लेकिन अब लगता है कि बगैर प्लान के ही हमारा सफर शानदार हो पाया. भारत के उस कोने में नए लोग मिले जिन्होंने बिना जानें हमारी मदद की. आमतौर पर शाम 6-7 के बाद कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकलता है. 10 बजे तक घाटी में पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहता है. बावजूद इसके आधी रात को भी गांव के लोगों ने हमें सहारा दिया, खाना भी खिलाया. वैसे रास्ते में हमें कई देशी और विदेशी घुमक्कड़ भी मिले. सबसे खास वो एक लड़की थी जो स्पीति (Spiti Valley) घूमने अकेले बैंगलुरु से आई थी. कहते हैं ऐसी जगहों पर ग्रुप के साथ जाना चाहिए, लेकिन उस लड़की ने न सिर्फ सोलो ट्रिप किया, साथ ही पूरा सफर बस में तय कर हमारे दिमाग के तार खोल दिए.
आखिर में बस इतना ही कहूंगा कि यदि स्पीति का असली मजा लेना हो तो अक्टूबर से मध्य दिसंबर आए. जब लोग कम और खूबसूरती दोगुनी होती है. हालांकि, इस मौसम में जाने का एक बड़ा नुकसान यह है कि भारी बर्फबारी और रास्ता बंद होने की वजह हम चंद्रताल और मुंद गांव नहीं पहुंच पाए. घाटी पर घूमना ज्यादा खर्चीला भी नहीं है, 10 दिनों में गाड़ी का किराया, पैट्रोल और तीन लोगों खाना-रहना मिलाकर तकरीबन 40-45 हजार रुपये खर्च हुए.
खैर कुछ गलतियां जो हमसे हुई हैं वो आपसे शेयर करना जरूरी है.
>> सुबह 9 से सफर की शुरुआत करें और 6 बजे तक खत्म. शाम ढलने के बाद गाड़ी चलाना जानलेवा हो सकता है. साथ ही तड़के सुबह बाइक रास्ते में फिसलती है, ऐसे में अंधेरे में सफर करने से बचे.
>> ऐसी जगहों पर हर वक्त लैंड स्लाइड्स का खतरा होता है, सतर्क रहें और बोर्ड पर लिखे नियमों को ध्यान से पढ़ें.
>> पहाड़ों में आप कभी भी फंस सकते हैं, ऐसे में वापसी की टिकट 1-2 दिन के बाद की करवाए तो बेहतर होगा.
>> यदि आप शिमला की तरफ से जाएं तो लौटते वक्त रोहतांग पास (मनाली) का रूट लेते हुए दिल्ली लौट सकते हैं. ऐसा करने पर ज्यादा से ज्यादा नजारे देखे जा सकते हैं. हालांकि, बर्फबारी की वजह से रोहतांग पास बंद होने की वजह से हमने काफी लंबा सफर तय किया.
>> हमने -20 में भी गाड़ी चलाई ऐसे में जैकेट के अलावा थर्मल्स 3-4 एक्स्ट्रा रखें, पंचर किट, गेयर बॉक्स, खाने का सामान आदि जरूरी समान बिल्कुल न भूलें.
>> छितकुल (chitkul), किब्बर (chibber) और की मोनेस्ट्री (key monastery) ये वो तीन जगह हैं, जिन्हें निहारे बिना आपका ट्रिप अधूरा रहेगा.
(पूजा साहू Khabar.NDTV.com में सीनियर सब एडिटर हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.