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This Article is From May 04, 2018

कैराना में सपा-आरएलडी का साथ बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती

Nidhi Kulpati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    May 04, 2018 23:19 IST
    • Published On May 04, 2018 23:19 IST
    • Last Updated On May 04, 2018 23:19 IST
यूपी में विपक्ष फूलपुर और गोरखपुर के बाद दो और सीटों पर अपनी ताकत तौलने जा रहा है. फूलपुर और गोरखपुर में सपा-बसपा एकता बीजेपी पर भारी पड़ी और दोनों सीटें बीजेपी के हाथ से निकल गईं. अब सवाल उठ रहा है कि क्या कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट पर भी ये विपक्षी एकता भारी  पड़ेगी? आज समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी के साथ मुलाकात की....कैराना में सपा का उमीदवार होगा और नूरपुर में आरएलडी का.....दोनों एक-दूसरे के उमीदवार को सपोर्ट करेंगे.....मायावती उपचुनाव नही लड़तीं, इसलिए विपक्ष की एकजुटता ठोस होती जा रही है.. नूरपुर से जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरणसिंह का भी नाता रहा है.

चुनाव आयोग ने  कैराना लोकसभा  और नूरपुर विधानसभा का उपचुनाव 28 मई को कराने का ऐलान कर दिया है. कैराना सीट बीजेपी के सांसद हुकुम सिह की 21 फरवरी को मृत्यु के बाद खाली पड़ गई थी. नूरपुर विधानसभा सीट बीजेपी के विधायक लोकेंद्र सिह की एक्सीडेंट में मौत होने पर खाली हो गई थी. वोटों की गिनती 31 मई को होगी. पिछले दो उपचुनावों की हार के बाद कैराना बीजेपी के लिए अहम हो गया है.

बीजेपी ने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है लेकिन हुकुम सिंह की बेटी या परिवार में से किसी को टिकट दिया जा सकता है. बीजेपी के पश्चिमी यूपी के नेता सक्रिय हो गए हैं. मुलाकातों और बैठकों का दौर शुरू हो गया है. बताया जा रहा है कि सपा-कांग्रेस-आरएलडी-बसपा की बैठकें हुई हैं. ये भी  कहा गया कि मायावती की आरएलडी से मुलाकात हुई है. लेकिन क्या पिछली बार की तरह मयावती अपना वोट ट्रांसफर कराएंगी.

बीजेपी ने 2014 में कैराना सीट 2.36 लाख वोट के मार्जिन से जीता था. हुकुम सिंह को 5.65 लाख वोट मिले थे. सपा को 3.29 लाख और बसपा को 1.60 लाख वोट. कैराना में 5 लाख मुस्लिम रहते हैं. करीब दो लाख दलित और जाट ...ठीकठाक संख्या में गुजर, अगड़ी जातियां और ओबीसी..खास है कि हुकुम सिंह गुर्जर थे और उन्होंने हराया था दो मुस्लिम उमीदवारों को.

गौरतलब है कि कैराना तब सुर्खियों में आया था जब सांसद हुकुम सिंह ने कहा था कि यहां से हिन्दु मुसलमानों के दबाव में पलायान कर रहे हैं. हालांकि बाद में उन्होंने कहा था कि ये गुंडागर्दी के कारण हुआ था.हिन्दु-मुसलमानों के झगड़े के कारण नहीं...

बहरहाल देखना होगा कि सपा-आरएलडी की एकजुटता कितनी ठोस रहेगी. आरएलडी कहीं पाला तो नहीं बदलेगी. उधर बीजेपी के लिए चुनौतियां सिर्फ विपक्षी एकजुटता की ही नहीं है. हुकुम सिंह के बाद उनकी बिटिया या परिवार का कोई और सदस्य का उतना ही प्रभावशाली हो पाएगा जितना कि वे थे....सभी समाजों को साथ लेकर चलने वाले....


निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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