जो लोग ज़िन्दगीभर अपने बच्चों की शादी के लिए तिनका तिनका जोड़ कर कमाते हैं आजकल वही लोग बैंकों के बाहर अपना ही पैसा अपने ही अकाउंट से निकालने के लिए लाइन में लगे पाते हैं. शुक्रवार को मैं दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर ग़ाज़ियाबाद ज़िले के मुरादनगर के रावली गांव गया. सिंडिकेट बैंक के अंदर घुसा ही था और बैंक के माहौल का अंदाज़ा लगा ही रहा था कि मेरे सामने बहुत सारे लोग फरियादी की तरह आकर खड़े हो गए. मैंने पूछा, हां जी क्या समस्या है? मैंने पूछा ही था कि सब एक साथ शुरू हो गए.
एक शख्स ने बताया कि मेरे दो बच्चों की 20 नवम्बर को शादी है और घर में नमक तक नहीं है. मैं यहां पैसे निकालने आया हूं लेकिन ये लोग सिर्फ 2,000 रुपये दे रहे हैं. मैंने पूछा कि भाई सरकार ने गुरुवार को आप जैसे ज़रूरतमंद लोगों के लिए जिनके घर शादी है उनको ढाई लाख रुपये निकालने देने का फैसला किया है. क्या आपने बोला बैंक वालों से? वह बोला, हां जी बोला, लेकिन वो कह रहे हैं दो हज़ार से ज़्यादा नहीं मिलेंगे. फिर अपने बच्चों की शादी का कार्ड दिखाया,
मैं उनपर ध्यान देता इतने में एक मिथलेश नाम की महिला ने अपनी समस्या बतानी शुरू कर दिया. बोलीं, मेरी बेटी की शादी है 4 दिसम्बर को, अब बताओ दो हज़ार में क्या होगा? मैंने उनसे पूछा कि आप लोगों को पता है ना कि सरकार ने आप लोगों के लिए 2.5 लाख रुपये तक निकालने के लिए इजाज़त दी है. वह बोली हां, पता है लेकिन ये मना कर रहे हैं और बस 2 हज़ार दे रहे हैं अब बताओ दो हज़ार में शादी कैसे होगी?
एक के बाद एक शादी के लिए पैसे निकालने आये लोग मुझे अपनी समस्या बताये जा रहे थे और शादी के कार्ड दिखाये जा रहे थे. हर कोई चाह रहा था मैं उससे बात करूं, उसकी तस्वीर अपने कैमरा पर लूं. मैंने एक एक करके सबसे बात की. बात करते हुए मुझे उन लोगों की लाचारी पर बहुत बुरा लग रहा था.
मेरे मन में आ रहा था कि जीवनभर इन लोगों ने अपने बच्चों की शादी पर खर्च करने के लिए कमाया और आज वही पैसे ये अपने ही खाते से निकालने के लिए मेरे सामने फ़रियाद लगा रहे हैं कि शायद मुझसे बात करने से या मुझसे शिकायत करने से वो अपनी समस्या से निजात पा लेंगे.
ये क्या लाचारी है? ये कैसा दर्द है जिसको ये लोग झेलने को मजबूर हैं. शादी में पैसे का क्या रोल होता है ये कह तो हर कोई सकता है. हां, हम समझते हैं कि पैसा बहुत ज़रूरी है लेकिन सच बात ये है कि जो खुद शादी कराने की प्रक्रिया में सीधा जुड़कर खर्च करता है और ज़िम्मेदारी उठाता है केवल वही समझ सकता है कि पैसा कितना ज़रूरी है.
मैं बैंक मैनेजर से बात करने गया. उसने बताया भाईसाहब हमको रोज़ाना करीब 5-6 लाख ही कैश दिया जा रहा है. ऐसे में अगर हम सबको उतना दे देंगे जितना वो मांग रहे हैं, तो कुछ ही लोगों को पैसा मिल पाएगा. इसलिये हम 2-2 हज़ार दे रहे हैं जिससे काफी लोगों को कुछ पैसा तो दिया जा सके. आप ही सोचिये अगर शादी के लिए ढाई लाख रुपया दे दिया तो 2-3 लोगों को ही पैसा मिल पाएगा और बाकी सारे लोग ऐसे ही रह जाएंगे. हम देना चाहते हैं लेकिन हमारे पास है नहीं.
बैंक मैनेजर की बात भी सही है. असल में समस्या यही है कि सरकार बस बड़े ऐलान कर रही है लेकिन उसके लिए कोई प्लान नहीं कर रही. शादी के ढाई लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया सरकार ने लेकिन उसको लागू कराने के लिए बैंकों के पास पैसा ही नहीं है तो मिलेंगे कहां से?
शादी के ढाई लाख रुपये छोड़िये सरकार ने अपने खाते से एक बार में 24,000 रुपये तक निकालने देने का ऐलान किया था वो भी लागू नहीं क्योंकि कैश है ही नहीं. बैंक में ही एक किसान भाई मिले, बोले मुझे दिल का ऑपरेशन कराना है, किसान हूं, न तो मुझे नार्मल तरीके से 24,000 रुपये मिल रहे हैं और न मुझे किसान के तौर 25,000 रुपये मिल रहे हैं जिसका गुरुवार को सरकार ने ऐलान किया. एक आदमी 10,000 रुपये बैंक से निकालना चाहता था क्योंकि उसकी पत्नी प्रेग्नेंट है और निजी अस्पताल में भर्ती है लेकिन क्या करें किसको समझाएं? किसको मनाएं?
मैं बैंक मैनेजर से बात करके आया तो सभी लोगों ने मुझे फिर पूछा 'साहब हमें पैसा मिल जाएगा ना?' मैंने उनको समझाया कि पैसा ही नहीं है तो वो दे कहां से? वो बोले सर ये रोज़ाना यही बोल रहे हैं. इस बीच एक बेहद वृद्ध महिला आई और बोली 'ए भैया मुझे तो 17,000 रुपये दिलवा दे इनसे मेरी नातिन (बेटी की बेटी) की शादी है उसमें हमें भात देना है. इन सब लाचारों के बीच मैं खुद को बहुत लाचार महसूस कर रहा था.
बैंक के बाहर लोग मुझे अपनी समस्या बहुत गुस्से में आकर बता रहे थे और बता रहे थे कैसे ये बैंक का ATM चलता ही नहीं. इसी बीच एक शख्स जो कि उस बैंक वाली लाइन और भीड़ का हिस्सा नहीं था वो आया और कुछ बोलने का इच्छुक दिखा. मैं माइक लगाया तो वो बोला 'ऐसा है मोदी जी का ये फैसला बहुत अच्छा है, हां, लोगों को परेशानी हो रही है क्योंकि लागू ठीक तरीके से नहीं किया गया लेकिन योजना बहुत अच्छी है और मोदी ज़िंदाबाद'. मैंने सोचा पता नहीं अगर लोग अपनी समस्या बता रहे है और मीडिया लोगों की समस्या दिखा रहा है तो कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि पीएम या केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है या नाम खराब हो रहा है?
अरे मीडिया समस्या दिखाता है क्योंकि लोकतंत्र में ये उसका काम होता है. समस्या दिखाकर सरकार को किसी योजना को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलती है. क्योंकि सरकार कोई एक व्यक्ति नहीं पूरा सिस्टम होता है ऊपर के स्तर पर क्या कहा गया है और नीचे ज़मीन पर आते आते अक्सर किसी योजना के लागू होने में समस्या आती है. समस्या दिखाकर सरकार और आम जनता की असल में मदद ही होती है क्योंकि सरकार उसका संज्ञान लेकर आम जनता को समस्या से निजात दिलाती है.
खैर, अब मैं मुरादनगर के खिमावती गांव की ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स पहुंचा. मैं करीब 1 बजे पहुंचा. 2 मिनट बैंक के बाहर लगी लाइन का जायज़ा ले रहा था कि अंदर से खबर आई कि पैसा ख़त्म हो गया. लोगों ने भारी नाराज़गी में बोलना शुरू रोज़ का यहां यही तमाशा है रोज़ ये सुबह 10 बजे शुरू करके 3 घंटे में ख़त्म कर देता है.
मैं बैंक के अंदर गया वाकई पैसा ख़त्म हो गया था. यहां भी लोगों को दो हज़ार देकर ही निपटाया जा रहा था और नोट बदली तो यहाँ हो ही नहीं रही थी. बैंक मैनेजर ने बताया केवल 4 लाख रुपये आये थे. बैंक मैनेजर ने बताया शादी वालों के लिए 2.5 लाख रुपये तो नहीं 10,000 रुपये देने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन, 10,000 भी कितनों को मिल पा रहे हैं. एक सज्जन जिनके बेटे की शादी थी बताने लगे मैं तीन दिन से आ रहा हूँ और एक भी पैसा नहीं मिल पा रहा. हमारा नंबर आने से पहले ही कैश ख़त्म हो जाता है और ये बैंक वाले पर्ची फाड़ देते हैं. आम लोग बैंक वालों पर गुस्सा ज़ाहिर कर रहे थे और बैंक वाले पर्ची दिखा रहे थे कि देखो आज चार लाख रुपये ही आये हैं हम क्या करें?
ऐसी तस्वीर या ऐसे हालात केवल इस एक जगह के नहीं बल्कि मैं जिस ग्रामीण इलाके में जा रहा हूं वहां यही सब दिख रहा है. ना एक बार में 24,000 रुपये सामान्य रूप से अपने खाते से कोई निकाल पा रहा है और ना शादी के लिए के लिए सरकार के ऐलान के बावजूद किसी को ढाई लाख रुपये मिल पा रहे हैं. किसान को गेहूं बुवाई के लिए उसके अपने खाते से 25,000 रुपये नहीं निकालने नहीं दिए जा रहे बावजूद केंद्र सरकार की घोषणा के. व्यापारी को अपने करंट अकाउंट से पचास हज़ार रुपये निकालने की इजाज़त की घोषणा हुई लेकिन वो भी नहीं मिल रहे.
सरकार और RBI लगातार कह रहे हैं कि 'कैश की कोई कमी नहीं' लेकिन ज़मीनी स्तर पर गांव और छोटे शहर में जाकर पता कर लीजिए हर कोई बस यही कह रहा है 'कैश है नहीं तो दें कहाँ से'. सरकार के सारे दावे और वादे दिल्ली से बाहर निकलते ही बेमतलब से लगते है. मीडिया भी बस बड़े शहरों पर ज़्यादा ध्यान देता है इसलिये सरकार भी ज़्यादातर ध्यान वहीं है.
हालांकि इस योजना के ख़िलाफ़ लोग नहीं हैं क्योंकि लोगों को उम्मीद है इससे दो नंबर का पैसा या काला धन वालों का नुक्सान होगा ईमानदार लोगों का नहीं लेकिन इसके चलते जो परेशानी ईमानदार लोगों को ही ज़्यादा होती दिख रही है क्योंकि घंटों लाइनों में लगकर ज़्यादातर लोग 2-4 हज़ार बदलवा रहे हैं या हज़ार-लाख रुपये खातों में जमा करा रहे हैं. करोड़ों रुपये काला धन रखने यहां लाइनों और बैंकों में क्या करेंगे.
शरद शर्मा एनडीटीवी इंडिया में वरिष्ठ संवाददाता हैं.
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This Article is From Nov 19, 2016
बड़े ऐलान, बिना पुख्ता प्लान
Sharad Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 19, 2016 11:03 am IST
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Published On नवंबर 19, 2016 11:03 am IST
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Last Updated On नवंबर 19, 2016 11:03 am IST
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