ये टाइटल मैंने इसलिए दिया क्योंकि मैं एक रिपोर्टर हूं और रिपोर्टर का काम होता है परिस्थितियों और हालात को मद्देनज़र रखते हुए वो रिपोर्ट करना जो वो देख रहा है, सुन रहा है और महसूस कर रहा है। निर्णय सुनाना या फैसला करना रिपोर्टर या मीडिया का काम नहीं है।
ये बात अलग है कि हम सब कभी-कभी अपनी इस रेखा को लांघकर आगे निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन देर सवेर इस बात का एहसास हो ही जाता कि पत्रकारिता का मूल सिद्धांत ही आज भी प्रासंगिक है कि रिपोर्ट करें ना कि जजमेंट दें। इसलिए मैंने भी जो देखा सुना समझा और महसूस किया वो बता रहा हूं।
22 अप्रैल बुधवार को मैं सुबह ही जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी की किसान रैली कवर करने पहुंच गया। सुबह से ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी और फिर जब दोपहर होने लगी थी तो मेरी नज़र नीम के पेड़ पर चढ़े एक शख्स पर पड़ी। मुझे वो थोड़ा अलग इसलिए लगा क्योंकि आमतौर पर जंतर मंतर पर जो लोग पेड़ पर चढ़कर रैली या धरने प्रदर्शन का आनंद लेते हैं वो उतनी ऊंचाई पर नहीं जाते जितनी पर वो चला गया था।
अब दोपहर का समय था, मंच पर आप के नेता बारी-बारी से भाषण दे रहे थे कि अचानक जब मैं मीडिया एनक्लोजर में था तो एक आदमी ने मेरा ध्यान पेड़ पर दिलाने की कोशिश की लेकिन मुझे समझ नहीं आया और उसने कहा 'अपना देश भी कमाल है, यहां एक से एक हैं' (उसने इशारा तो किया लेकिन मुझे ना कुछ समझ आया और ना कुछ दिखाई दिया)।
लेकिन थोड़ी देर बार मेरी नज़र उसी शख्स पर पड़ी जिसको मैने पेड़ के ऊपर चढ़ते देखा था। अब मेरी समझ में वो बात भी आई कि कुछ क्षण पहले एक शख्स मुझे क्या कह रहा था, इसी पेड़ के ऊपर चढ़े शख्स के बारे में('अपना देश भी कमाल है, यहां एक से एक हैं)।'
मैंने पेड़ पर नज़र फोकस की और देखा कि उस किसान ने गले में एक फंदा डाल रखा है और लग रहा था कि वो शायद कुछ नारे लगा रहा था। कुछ देर तक मैंने उस पर नज़र बनाए रखी और मुझे लगा कि शायद ये अपनी तरफ ध्यान खींचना चाहता है या कुछ कहना चाहता है या हो सकता है इसकी मानसिक स्थिति ठीक ना हो(क्योंकि अक्सर रैलियों या प्रदर्शनों में ऐसे मामले देखे जाते हैं जो बाद में कोई गंभीर मसला नहीं दिखते)।
अब मैने अपनी नज़रें उसी पेड़ के ठीक नीचे लगाई तो वहां पर गेस्ट टीचर अपने प्रदर्शन में व्यस्त दिखे लेकिन फिर मैने और ठीक से फोकस किया तो देखा कि उसी इलाके में यानी पेड़ के ठीक नीचे ज्यादातर लोग जो गेस्ट टीचर थे, वो बैनर या पोस्टर हाथ में लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। दूसरे कुछ लोग ताली बजाकर या मंच की ओर हाथ हिलाकर उस फांसी लगाए शख्स की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश कर रहे थे।
(अभी तक रैली में गेस्ट टीचरों पर ही सबका ध्यान केंद्रित था)
अब मंच पर कुमार विश्वास बोलने आए और उन्होंने सबसे पहले गेस्ट टीचरों को संबोधित किया और उनको कहा कि इस तरह से प्रदर्शन करने से कुछ नहीं होगा, शिक्षा मंत्री आपसे पहले भी मिले हैं और आगे भी मिलेंगे और किसान रैली में जमीन अधिग्रहण जैसे गंभीर मुद्दे के बीच इस तरह के प्रदर्शन का कुछ मतलब निकाला जाएगा। इसके ठीक बाद कुमार विश्वास ने उस आदमी से अपील की जो पेड़ पर चढ़कर फांसी का फंदा गले में डाले हुए था। कुमार ने उस आदमी से अपील की कि कृपया नीचे आ जाएं और जो बात कहना चाहते हैं कहिए और पुलिस से अपील की कि कृपया इसको नीचे उतारिए।
मैंने अपनी नज़रें वापस उस आदमी पर लगाई तो देखा कि उसने गले में फंदा डालकर अपने दोनों हाथों से उसी डाली को पकड़ा हुआ है जिससे उसने फंदा बांधा था और उसके बाएं पैर के पास भी एक टहनी है जिससे उसको सपोर्ट मिल रहा है।
जब पुलिस हरकत में नहीं आई तो कुमार विश्वास ने पुलिस पर किसी के इशारे पर योजनाबद्ध तरीके से काम करने का आरोप लगाया।
जहां पर मैं खड़ा था और जहां तक मैं देख पाया, मुझे पुलिसवाले मूकदर्शक बने दिखाई दिये। कहीं ऐसा नहीं दिखा कि पुलिस कोई कोशिश कर रही हो पेड़ पर चढ़कर उस आदमी को बचाने की।
इसके बाद कुछ लोग पेड़ पर चढ़े और उस आदमी को उतारने की कोशिश करने लगे और उनकी कोशिश से लगा कि ये कोई एक्सपर्ट नहीं, इस तरह के हालात से निपटने के। उस आदमी को जैसे तैसे पेड़ से उतारा गया, अस्पताल के लिए रवाना किया गया। उसके बाद मैंने लोगों को पेड़ से नीचे उतरते देखा जिसमें एक सफेद कपड़ों में नीचे आता बंदा पेड़ पर ही रोने लगा तो बाकी लोगों ने उसको गले लगाकर शांत किया। (हालांकि वो रोया क्यों और वो है कौन ये मुझे बाद में पता चला। वो 'आप' का वालंटियर था जिसने उस आदमी को बचाने की कोशिश की और मैने उसका इंटरव्यू भी किया।)
कुछ देर के लिए सभा रुकी हुई थी। इस पूरी घटना के दौरान और जब उसको अस्पताल भेज दिया गया तो सभा फिर शुरू हुई। मैं अपनी जगह पर वहीं मीडिया के लिए बनाए गए स्टेज पर रहा और अपने कैमरापर्सन को भी वहीं रखना सुनिश्चित किया क्योंकि मेरे और उस नीम के पेड़ के बीच हज़ारों लोग थे और वहां जाकर मैं करता क्या, भीड़ बढ़ाता और किसी संभावित कोशिश में बाधा बनता? क्योंकि मुझे तो पेड़ पर चढ़ना भी नहीं आता और साथ में बात ये भी कि जब कोई आत्महत्या के प्रयास में होता है तो उसको रिझाना और मनाना पड़ता है वर्ना मामला खराब भी हो सकता है, इसलिए ये काम कोई एक्सपर्ट ही कर सकता है।
इस बीच वहां मौजूद लोगों में बस यही चर्चा चलती रही कि वो आदमी बच गया या मर गया। मेरे पास जो खबर आई वो ये थी कि हालत बेहद खराब है। मेरे अनुभव ने कहा कि वो ज़िंदा है या नहीं ये डॉक्टर बताएंगे, हम कैसे बताएं(क्योंकि जब तक मैं रैली में मौजूद रहा कभी खबर आई कि वो बच गया तो कभी खबर आई कि वो नहीं रहा)।
जब सभा आगे बढ़ी तो अब मेरा ध्यान दो बातों पर था। एक तो गेस्ट टीचर जो बड़ी संख्या में सुबह से ही प्रदर्शन करने आए थे और कर रहे थे और अब दूसरा वो आदमी जो आत्महत्या का प्रयास कर रहा था वो अब जीवित है या नहीं।
जब आखिरी में अरविंद केजरीवाल बोलने आए तो पहले उन्होंने उस आदमी के बारे में बोला और फिर किसानों के मुद्दे पर करीब दस पंद्रह मिनट भाषण दिया। लेकिन इस दौरान जो सुबह से आशंकित था, गेस्ट टीचरों ने अपना प्रदर्शन तेज किया और काले झंडे दिखाने लगे और इन सबके बीच रैली समाप्त हुई। सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम सिसोदिया अस्पताल के लिए रवाना हुए।
आगे की कहानी और विश्लेषण अगले हिस्से में...
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This Article is From Apr 26, 2015
शरद शर्मा की खरी-खरी : बुधवार, 22 अप्रैल, जंतर मंतर
Sharad Sharma
- Blogs,
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Updated:अप्रैल 26, 2015 00:32 am IST
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Published On अप्रैल 26, 2015 00:26 am IST
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Last Updated On अप्रैल 26, 2015 00:32 am IST
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