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This Article is From Jul 27, 2017

कश्मीर पर बढ़ी मध्यस्थता की गूंज के बीच कब तक तीन तिगाड़ा काम, बिगाड़ा पर चलेंगे हम?

Richa Jain Kalra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 27, 2017 09:30 am IST
    • Published On जुलाई 27, 2017 09:13 am IST
    • Last Updated On जुलाई 27, 2017 09:30 am IST
तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा. भारत कश्मीर को लेकर यही नीति अपनाता रहा है. भारत ने हमेशा तीसरे देश की मध्यस्थता खारिज की, लेकिन इस साल अमेरिका से लेकर चीन और तुर्की तक कश्मीर पर मध्यस्थता में दिलचस्पी दिखा चुके हैं, जो मुद्दा सदियों से हल नहीं हुआ क्या उस पर नए सिरे से सोचने की ज़रूरत है? तभी तो कभी-कभी सांड को सींगों से पकड़ना पड़ता है... जैसे बयान दे रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक अब्दुल्ला का " भारत के दुनिया में बहुत दोस्त हैं जो कश्मीर पर मध्यस्थता कर सकते हैं..." बयान कश्मीर में मध्यस्थता के संदर्भ में किसी प्रमुख कश्मीरी नेता का पहला बयान है. अब्दुल्ला अमेरिका और चीन की मध्यस्थता की तरफ इशारा कर रहे हैं. राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर सुझाव खारिज कर दिया कि अमेरिकी दखल से सीरिया और अफगानिस्तान तबाह हो गए. ये सही है, लेकिन क्या कश्मीर नासूर की तरह गहरा और गहरा ज़ख्म देता रहेगा. 

गौर करने वाली बात है कि कश्मीर में मध्यस्थता पर बीते चार पांच महीनों में अमेरिका समेत कई देशों ने मध्यस्थता की पेशकश की. हाल में ही चीन ने कश्मीर को लेकर तनाव से भरे भारत पाक रिश्तों को सुधारने में सकारात्मक भूमिका निभाने की बात कही थी. भारत इस तरह के प्रयासों को हमेशा खारिज करता रहा है, लेकिन बीते दिनों से चीन की भारत पाक मामलों में बढ़ती दिलचस्पी के पीछे कई कारण हैं. दरअसल- चीन का कश्मीर को लेकर काफी कुछ दांव पर है. चार महीनों में दूसरी बार चीन से कश्मीर पर मध्यस्थता के सुर गूंजे हैं. इससे पहले चीनी मीडिया के ज़रिए इशारा हुआ था, जिसे चीन सरकार ने तवज्जो नहीं दी लेकिन अब तो सिक्किम में डोकलाम विवाद के चलते चीन खुलकर मध्यस्थता की बात कहने लगा है. वैसे जम्मू-कश्मीर के 35000 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने लंबे अर्से से अवैध तौर पर कब्ज़ा कर रखा है. इसे अक्साई चीन भी कहा जाता है. चीन के आर्थिक हित पाकिस्तान के रास्ते बन रहे वन बेल्ट वन रोड के चलते जुड़े हुए हैं. वन बेल्ट बन रोड चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जहां चीन एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक सड़कों, रेल और बंदरगाहों का एक ऐसे गलियारा बनाना चाहता है, जो कि अलग-अलग देशों की सीमाओं में निर्बाध आवाजाही देगा और देशों के बीच कारोबार को नई दिशा मिलेगी. इसके लिए चीन अरबों डॉलर खपा रहा है. इसी वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा है सी-पेक या चीन पाक इकोनॉमिक कॉरीडोर जो कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हो कर गुज़रेगा. भारत ने इस पर आपत्ति जताई और वन बेल्ट वन रोड पर बुलाए चीन के सम्मेलन का बहिष्कार भी किया. ये भी कहा जा रहा है कि इस सीपेक कॉरिडोर से पाकिस्तान चीन का गुलाम बन जाएगा. चीन बड़े पैमाने पर पाक अधिकृत कश्मीर में निवेश कर रहा है. कश्मीर के इससे सटा होने के चलते यहां चीन के आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं. चीन बांग्लादेश और म्यांमार के बीच रोहिंग्या मुसलमानों पर मध्यस्थता का हवाला देता है. अपने प्रभाव के विस्तार के चीन की ये कोशिश भी वन बेल्ट वन रोड के रास्ते में पड़ने वाले म्यांमार में अपने हित साधने से जुड़ी है और भारत पाक के बीच मध्यस्थता की कोशिश को भी इसी चश्मे से देखा जाना चाहिए.

चीन से पहले दुनिया पर दादागिरी करने वाले अमेरिका ने लंबे अर्से बाद कश्मीर पर मध्यस्थता में दिलचस्पी दिखाई. ट्रंप प्रशासन ने सत्ता संभालने के बाद ही इस पर बयान में कह दिया था कि वो भारत-पाकिस्तान के बीच कुछ होने का इंतज़ार नहीं करेंगे. इसे ट्रंप की निजी सोच मान लेना शायद मामले को कमतर आंकना होगा. कश्मीर में बढ़ी हिंसा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा है. पथराव करने वालों पर पैलेट गन का इस्तेमाल और इससे बड़े पैमाने पर ज़ख्मी हुए युवा और बच्चों की स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार गुटों का ध्यान खींचा है. यूएन के मानवाधिकार आयोग ने हाल ही में इस पर संज्ञान लिया था. यहां पथराव में शामिल स्कूली बच्चे लड़कियां एक चुभता हुआ सवाल खड़ा करते हैं कि क्या भारत की नीतियों के चलते कश्मीरी भारत से और ज्यादा कट गए हैं? इसके पीछे पाकिस्तान के उकसावे पर कोई दो राय नहीं हो सकती लेकिन इस दुष्प्रचार का मुकाबला कर इसे नाकाम करना भी तो हमारी ज़िम्मेदारी है.

कश्मीर पर मध्यस्थता के मामले में कुछ समय पहले तुर्की ने भी भारत पाकिस्तान के इस विवाद में दखल देने की मंशा दिखाई. अपने पहले भारत दौरे पर आए तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने खुलकर मध्यस्थता की पेशकश की थी, जिसे भारत ने खारिज कर दिया. तुर्की के इस रवैये को पाकिस्तान के पक्ष में लामबंदी के तौर पर देखा जा रहा है. तुर्की और पाकिस्तान के बीच बेहद अच्छे कूटनीतिक संबंध हैं. कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ा रही है तुर्की सरकार.
                                                      
भारत मध्यस्थता की हर कोशिश को खारिज करता रहा है और करेगा, लेकिन कश्मीर विवाद से और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से कैसे निपटें इसका कोई खाका सामने नहीं दिखता. आए दिन हो रही आतंकी मुठभेड़, सीमा पर शहीद हो रहे भारतीय जवान और भारतीय मुख्यधारा से और कटते जा रहे आम कश्मीरी. हमारी कश्मीर नीति पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं.

ये सही है कि अमेरिकी मध्यस्थता ने किसी देश का भला नहीं किया चीन अपने हित साध रहा है, लेकिन जो मुद्दा 2 देशों से हल नहीं हुआ और न होगा उसे नासूर की तरह सड़ने के लिए छोड़ दिया जाए या तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा से ऊपर उठकर सोचें ... नहीं तो आने वाली कई नस्लें कश्मीर में जारी खून खराबे की गवाह बनती रहेंगी.

ऋचा जैन कालरा NDTV इंडिया में प्रिंसिपल एंकर तथा एसोसिएट एडिटर हैं...​

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