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This Article is From Dec 14, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : किरेन रिजीजू के जूते मारने की बात पर सवाल

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 14, 2016 21:37 pm IST
    • Published On दिसंबर 14, 2016 21:37 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 14, 2016 21:37 pm IST
'जो न्यूज प्लांट कर रहे हैं वो हमारे यहां आयेंगे तो जूता खायेंगे.' भारत के गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू का यह बयान है. संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से न्यूनतम उम्मीद की जाती है कि उसकी भाषा शालीन हो. शालीन न भी हो तो कम से कम लोकतांत्रिक हो. सामान्य लोग भी सचेत और अचेत रूप से जूता मारने की बात कर देते हैं, इसलिए कि जातिगत और सामंती भाषाई संस्कार हम सबमें घुल मिल जाते हैं. होना यह चाहिए कि ऐसे संस्कारों से मुक्ति पाने के लिए सभी जीवन भर अभ्यास करते रहें. लेकिन जब आप मंत्री पद पर बैठकर किसी को चुनौती देते हैं कि हमारे यहां आएंगे तो जूता खायेंगे तो इसे विशेष रूप से नोटिस लेना चाहिए, क्योंकि तब यह धमकी भी होती है. बाकी भारत का तो नहीं कह सकता लेकिन उत्तर भारतीय भाषाई संस्कार से आने के कारण बता सकता हूं कि जूता मारना, जूता खिलाना नियाहत ही सामंती और जातिवादी ग़ुरूर का शब्द है. इसका इस्तेमाल ग़रीब और जातिगत ढांचे में कमज़ोर लोगों के ख़िलाफ़ होता है. फिर इसका इस्तेमाल आपस में भी एक-दूसरे से ताकतवर होने का अहसास दिलाने के लिए किया जाता है. मगर पूर्वोत्तर से आने वाले एक मंत्री की भाषा में ये तत्व कैसे आ गए.

गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू उस मंत्रालय में राजनाथ सिंह का हाथ बंटाते हैं, जिसका काम है कि भारत की आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था का संचालन करना. यह मंत्रालय भारतीय पुलिस बल से लेकर अर्ध सुरक्षा बलों का भी एक तरह से शीर्ष मंत्रालय है. चाहे जैसी छवि हो लेकिन पुलिस हमारे मोहल्ले में संवैधानिक अभिभावक है. कम से कम हम पुलिस पर सवाल उठा सकते हैं कि वह संविधान और नियमों के अनुसार क्यों नहीं चल रही है. ज़ाहिर है यह सवाल हम राज्यों में मुख्यमंत्री और पुलिस प्रमुख से करेंगे और केंद्र में केंद्रीय गृहमंत्री और गृह राज्य मंत्री से करेंगे कि पुलिस की व्यवस्था क्यों ख़राब है. अब इस मंत्रालय के मुखिया का सहयोगी ही पुलिस पर भरोसा न करके यह कहे कि जो लोग न्यूज़ प्लांट कर रहे हैं वो हमारे यहां आएंगे तो जूता खायेंगे तो इसका क्या मतलब है. आख़िर रिजीजू का जो 'हमारे यहां है' क्या वो संविधान व्यवस्था से सर्वोच्च है जहां आपत्ति होने पर कानून से नहीं जूतों से निपटारा किया जाता है.

'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर से गृह राज्य मंत्री को बिल्कुल आपत्ति हो सकती है, लेकिन अगर वे अपने मंत्रालय पर ही भरोसा जताते तो केस करते. नियमों की बात करते. जूता खिलाने के लिए आमंत्रित नहीं करते. मंत्री जी के इस वाक्य से दो समस्याएं हैं. उन्हें संवैधानिक पद पर रहते हुए सामंती और जातिगत शब्दावली का प्रयोग करने से बचना चाहिए. ऐसी ग़लती हम सबसे हो जाती है, बेहतर है कि हमें इस ग़लती का अहसास हो. 'हमारे यहां आएंगे जूता खायेंगे', बोलना मंत्री का नहीं, मोहल्ले का दादा टाइप सुनाई देता है. क्या मंत्री इस ख़बर की प्रतिक्रिया में किसी भीड़ को उकसा रहे हैं जो उनके यहां की है, जहां जाने पर जूते पड़ेंगे. दुनिया की सरकारें, विरोधी नेता न्यूज़ प्लांट कराते हैं. मंत्री खुद न्यूज़ प्लांट कराते हैं. सूत्र भी न्यूज़ प्लांट कराते हैं. किसी भी न्यूज़ को आसानी से प्लांट घोषित किया जा सकता है. ज़रूरी नहीं कि प्लांट किया हुआ न्यूज़ ग़लत ही हो, मगर ठीक से चेक न करें तो ग़लत हो सकता है. कायदे से इसकी शिकायत प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में हो सकती है या फिर अख़बार के संपादक को की जा सकती है, लेकिन सवाल पूछने पर जूता खिलाने की बात क्या आपको ठीक लगी.

क्या मंत्री जी 'इंडियन एक्सप्रेस' के पत्रकार को कह रहे हैं कि उनके यहां गया तो जूता खिलायेंगे या उसे कह रहे हैं कि जो न्यूज़ का सोर्स है. तो क्या मंत्री रिजीजू को पता है कि यह ख़बर कौन प्लांट करवा रहा है. अगर पता है तो भी क्या उसका तरीका जूता है. यह बात सिर्फ किरेन रिजीजू के लिए नहीं, बल्कि ख़ुद मेरे लिए, हम सबके लिए है कि सामंती और जातिगत शब्दों से रोज़ाना मुक्ति का श्रम करें. उम्मीद करता हूं कि मंत्री जी अफसोस ज़ाहिर करेंगे. 'इंडियन एक्सप्रेस' के पत्रकार दीप्तिमान तिवारी की खबर सोमवार को छपी और फिर मंगलवार को भी.

संक्षेप में बता रहा हूं कि अरुणाचल प्रदेश में नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NEEPCO) के कई अधिकारियों के खिलाफ़ चीफ विजिलेंस अफसर ने 129 पन्ने की रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में चेयरमैन, प्रबंध निदेशक और ठेकेदारों पर 450 करोड़ के घोटाले में शामिल होने का आरोप है. एक सब कांट्रेक्टर जिन्हें रिजीजू के रिश्ते का भाई बताया जाता है, उस पर स्कूटर, कार, बाइक से पत्थर के टुकड़े की ढुलाई की रसीद देकर ट्रक से ढुलाई का बिल बनाने के आरोप हैं. यह रिपोर्ट जुलाई महीने में ही केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सीबीआई को भेजी जा चुकी है. सीबीआई ने तफ्तीश भी की लेकिन एफआईआर नहीं हुई, मगर रिपोर्ट तैयार करने वाले गुजरात काडर के आईपीएस अफसर सतीश वर्मा का वहां से तबादला हो गया. निपको ने ठेकेदार का पेमेंट रोक दिया, तो 'एक्सप्रेस' के दावे के अनुसार 4 नवंबर, 2015 यानी इस साल की नोटबंदी के ठीक एक साल पहले किरेन रिजीजू ने ऊर्जा मंत्रालय को पत्र लिखा कि ठेकेदार का पेमेंट कर दिया जाए. कांग्रेस पार्टी ने मंगलवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में ऑडियो रिकार्डिंग पेश की, जिसमें मंत्री जी के भाई सतीश वर्मा को फोन पर दिलासा दे रहे हैं कि भैया आपकी मदद कर देंगे. इस ख़बर को आप विस्तार से 'इंडियन एक्सप्रेस' की साइट पर देख सकते हैं.

भारतीय समाज में मुमकिन है कि रिश्तेदार और भाई किसी के नाम का दुरुपयोग कर सकते हैं. यह भी समझना चाहिए, लेकिन उस भाई की कंपनी के पेमेंट के लिए गृह राज्य मंत्री ने ऊर्जा मंत्रालय को पत्र क्यों लिखा. राजनीतिक आरोपों की समस्या यह है कि कभी अंजाम तक ठीक से नहीं पहुंचते. गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू और पावर मंत्री पीयूष गोयल ने इस ख़बर का खंडन कर दिया है.

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