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This Article is From Mar 04, 2016

सिन्धु सूर्यकुमार के नाम रवीश कुमार का पत्र

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 04, 2016 12:01 pm IST
    • Published On मार्च 04, 2016 03:14 am IST
    • Last Updated On मार्च 04, 2016 12:01 pm IST
सिन्धु सूर्यकुमार,

हम भाषा और भूगोल के कारण बहुत दूर हैं, मगर हमपेशा होने के कारण करीब हैं। मुझे मलयालम आती तो मैं आपकी भाषा में यह ख़त लिखता। मैं कुछ दिनों से ख़बरें पढ़ रहा हूं कि केरल में सिन्धु सूर्यकुमार नाम की एंकर हैं, जिसे 'इंटरनेट हिन्दू' कहे जाने वालों का दल गालियां दे रहा है। मारने की धमकी दे रहा है। जिस नाम के मूल से 'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' निकला है, उस सिन्धु को ये 'इंटरनेट हिन्दू' ही गालियां दे सकते हैं। उन्हें न तो नाम की कद्र है, न आपके काम की। दुनिया की किसी अज्ञात नारी को देवी-सेवी बताने वाले ये लोग आपके नारी होने की भी परवाह नहीं करते।

भारतीय राजनीति बिना गुंडों और लठैतों के नहीं चलती है। वह हर समय अलग-अलग प्रकार के गुंडे ले आती है। पहले लठैत आए, फिर डाकू, फिर बाहुबली और अब आई-टी सेल। आई-टी सेल नए किस्म के गुंडों और लठैतों का अड्डा है, जहां से वे अपने आका के इशारे पर किसी पर भी हमला कर देते हैं। बदनाम करते हैं और अफवाह फैलाते हैं। हम लोग उत्तर भारत की ज़मीन पर पिछले दो साल से झेल रहे हैं। उन्होंने मुझे 'सौ फीसदी रंडी की औलाद' कहा है, जबकि मेरी मां ही मेरे लिए भारत माता है।

सिन्धु, आप अकेली नहीं हैं। उत्तर भारत में कई महिला पत्रकारों को खुलेआम गालियां दी जा रही हैं। उनके ट्विटर या फेसबुक की टाइमलाइन पर शर्मनाक बातें लिखीं जा रही हैं। ये सब एक खास विचारधारा के लोग हैं। सत्ता ने इन्हें सहारा दिया है, जिसके कारण इनके हौसले बुलंद हैं। आप जानती हैं कि आप जैसी कई लड़कियां अभी-अभी घरों से निकल रही हैं। केरल में स्थिति बेहतर होगी, लेकिन उत्तर भारत और उससे सटे इलाके की लड़कियों ने तो अब कदम बढ़ाया है। इस पूरी कवायद का मकसद संस्कृति का ठेकेदार बनकर लड़कियों को वापस घर में बंद करना है। जिन ठेकेदारों की भाषा गालियों की हो, उन्हें संस्कृति का ठेका जो भी समाज देगा, उसका बेड़ा गर्क होने वाला है।

इसलिए सिन्धु, घबराइएगा नहीं, इन्हें यही आता है। पूरे केरल में ये व्हाट्सऐप के जरिये आपको बदनाम करेंगे। जैसा ये लोग मुझे या कई महिला पत्रकारों को दिन-रात करते हैं। लोगों पर भरोसा रखिए। लोग ऐसे प्रपंचों को समझ लेते हैं। ये जब भी आपको गाली देंगे, आप इनके परिवारों को याद कीजिएगा। पता नहीं, किस मजबूरी में इन्हें यह काम करना पड़ता होगा। भला कौन चाहेगा कि वह किसी को गंदी गाली दे, मारने की धमकी दे।

उसके बारे में सोचिएगा कि वह बेचारा किसी नेता के प्रभाव में, किसी विचारधारा के प्रभाव में किसी दल के आई-टी सेल में गया होगा। गुलाम की तरह वह आका के कहने पर तरह-तरह की आईडी बनाकर गाली देने के लिए मजबूर हुआ होगा। मैं यकीन के साथ कह सकता हूं, जिसने भी आपको गाली दी होगी, वह अपनी पत्नी, मां-पिता या भाई को नहीं बता पाता होगा। उसकी कुंठा को समझिए। पहले वह सामाजिक कुंठा से बचने के लिए राजनीतिक दल में गया होगा, फिर वहां भी लठैत बनकर कितना कुंठित हो गया होगा। कुछ लोगों को भले ही ठेके वगैरह मिल गए होंगे, लेकिन बाकी तो इन्हीं के ठेके पर गालियां देने की मजदूरी कर रहे हैं।

इसलिए दोस्त, चिन्ता मत करना। मीडिया की इस मंडी में हम और आप यूं भी बहुत आसानी से ठिकाने लगा दिए जायेंगे। उनकी ताकत अकूत है। फिर भी समाज को बताते चलिए। समाज को तय करना होगा कि सवाल उठाने वालों को गालियां देने वाले कौन हैं। किनके बीच के हैं और किसके लिए हैं। आप गाली खाते रहिए और लड़ते भी रहिए। हर गाली को जमा कीजिए। यह बहुत ज़रूरी है, ताकि पोल खुले दुनिया के सामने कि 21वीं सदी के इस साल में कैसे पत्रकारों और महिला पत्रकारों को गंदी गालियां दिलवाकर कुछ लोग नैतिक शिक्षा की दुकानें चला रहे हैं।

एक दिन सबको पता चलेगा। यह समाज उस दिन पूछेगा, जिस दिन हम नहीं होंगे। जब लोग जयकारे से थक जाएंगे, जब विज्ञापन का रंग उतर जाएगा और साइबर सेल के नौजवान थक जाएंगे। एक दिन वही उठेंगे और अपने उन आकाओं के कॉलर पकड़ लेंगे, जिन्होंने उनसे गालियां दिलवाईं। इसलिए कोई गाली दे तो बस इतना ही कह दीजिएगा कि भाई देखो, मैं सिन्धु हूं और तुम मुझसे हो न कि मैं तुमसे। मेरे नाम के 'स' अक्षर को 'ह' न पुकारा जाता तो तुम क्या होते? आर्य।

रवीश कुमार

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