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This Article is From Oct 21, 2016

कहीं अमरीका वाला ट्रंप, दिल्ली वाला मंकी मैन तो नहीं है !

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 21, 2016 10:02 am IST
    • Published On अक्टूबर 21, 2016 10:02 am IST
    • Last Updated On अक्टूबर 21, 2016 10:02 am IST
इस वक्त पूरी दुनिया में तलाशी चल रही है. आधुनिक अख़बारी पुरातत्ववेत्ता पता लगा रहे हैं कि कहीं उनके मुल्क में ट्रंप का वायरस तो नहीं हुआ है, कहीं अमरीका का ट्रंप वायरस उनके मुल्क में तो नहीं आने वाला है. ट्रंप उस एलियन की तरह देखा जा रहा है जो किसी साई-फाई फिल्मों की ‘डार्क रातों’में ग्रे किरणों के बाद धरती के क़रीब आ जाता है. ट्रंप देखते ही स्टार वॉर के वॉर रूम में खलबली मच जाती है. एक वैज्ञानिक होता है जो नासा की नौकरी छोड़ टीवी स्टूडियो के वॉर रुम में काम करने आया होता है. उसने परखनलियों में बहुतों के रक्त का संग्रह किया हुआ है. दुनिया के हर नेता के रक्त का सैंपल है उसके पास. वह तुरंत अध्ययन करने लगता है कि कहीं इस रक्तबीज़ से ही ट्रंप तो पैदा नहीं होते हैं. यह जो ट्रंप है उसके रक्त का सैंपल दुनिया भर के किस किस नेता से मिलता है. नेताओं को अपना रक्त सैंपल देने से डर लग रहा है.

आए दिन अख़बारों में छप रहा है कि उनके यहां ट्रंप हो चुके हैं. इटली में बीस साल पहले ट्रंप हो चुका था जिसका नाम बर्लुस्कोनी था. उसके बाद जो भी पार्टी है वो बर्लुस्कोनी के ही संस्करण हैं. इसका मतलब यह हुआ है कि एक बार जहां ट्रंप हो गया वहां आगे ट्रंप की ही सप्लाई होती रहेगी. ब्रिटेन वालों ने भी लीव कैंपेन चलाने वाले नाइजल फराज को ट्रंप के रूप में देखना शुरू कर दिया है. नाइजल फराज तो ट्रंप से पहले हुआ लेकिन ट्रंप का असर इतना है कि बैक डेट में जो नेता हुए हैं वो भी ट्रंप जीन से पहचाने जा रहे हैं. कोई लिख रहा है कि फ्रांस में 2002 में ही ट्रंप देखा गया था. धर्मांध, नस्लवादी एक नेता ज़ा मैरी ले पे भी राष्ट्रपति शिराक के सामने पहले दौर के फाइनल में पहुंच गया था. पूरी दुनिया इस वक्त अलर्ट पर लग रही है. कोई किसी में ट्रंप देख ले रहा है. ट्रंप एक भूत है जो लगता है कि पीछे पीछे आ रहा है लेकिन मुड़ कर देखने पर ग़ायब हो जाता है, सिर्फ गाना सुनाई देता है. कहीं दीप जले कहीं दिल. कहीं हिलेरी जले कहीं ट्रंप.

भारत में भी हर नेता को घूर रहे हैं, कहीं ये ट्रंप तो नहीं है, कहीं यही तो ट्रंप नहीं है लेकिन कैसे बोलें. आए दिन ट्रंप टाइप बयानों पर चैनलों की रातें रंगीन हो जाती हैं. क्या वो नेता ट्रंप हो सकता है जिसने कहा था कि जे एन यू में हर दिन हज़ारों शराब की बोतलें और कंडोम बिखरे मिलते हैं. बल्कि उसने गिन भी लिया था कि इस्तमाल किये हुए कंडोम की संख्या 3000 है. कब गिन लिया, कैसे गिन लिया पता नहीं लेकिन पूरी दुनिया में इस्तेमाल कर फेंके गए कंडोम का यह पहला राष्ट्रीय सर्वे होगा, जिसे एक विश्वविद्यालय के स्तर पर अंजाम दिया गया था. हमारे यहां का यह नेता ट्रंप का ज़िला संस्करण हो सकता है. एक वेबसाइट ने जब एक नेता के भाषणों से इतिहास के बारे में 11 ग़लतियों को खोजा तो लोगों को शक होने लगा कि कहीं ये तो ट्रंप नहीं. एक नेता ऐसा है जिसे देखते ही लोग शक करने लगते हैं कि ये भारत का ट्रंप है. ये हो चुका है और ये होने वाला है. इस तरह की बातें लोग फूल की पत्तियां तोड़ते हुए करने लगे हैं.

ट्रंप पुरानी घटनाओं और नेताओं का नया नाम है. मतलब, सेम टू सेम कंपनी ने सेम टू सेम ब्रांड का नया मॉडल लॉन्च किया है. भारत में किसने कहा था कि हिन्दुओं को ख़ूब बच्चे पैदा करने चाहिए. किसने कहा था कि ग़रीबी मानसिक अवस्था है. किसने कहा था कि डैम को पेशाब करके भर दें क्या. किसने कहा था कि गांव की औरतें आगे नहीं बढ़ सकती क्योंकि वे आकर्षक नहीं होती हैं. किसने कहा था कि इस तरह के बलात्कार नहीं होने चाहिए. ओह नो, तो किस तरह के होने चाहिए. किसने कहा था कि बिजली नहीं होती तो कुछ काम नहीं होता इसलिए बच्चे पैदा करते हैं. किसने कहा था कि लिप्सटिक और पॉउडर लगाने वाली औरतें जम्मू कश्मीर के आतंकवादियों जैसी हैं. किसने कहा था कि कितने करोड़ की गर्लफ्रैंड होती है, किसने कहा था कि बलात्कार भारत में नहीं होता है. इंडिया में होता है. किसने कहा था कि लड़के हैं, ग़लतियां हो जाती हैं.

क्या भारत में ट्रंप हादसा होते होते रह गया या भारत में इतने ट्रंप पैदा हो चुके हैं कि किसी को हैरानी भी नहीं होती है. भारत को डरने की ज़रूरत नहीं है. भारतीय राजनीति ने एक से एक ट्रंप देखे हैं. ये सारे ट्रंप अपने अपने दलों के ट्रंप कार्ड हैं. अब इन्हें बैक डेट में ट्रंप कहने से ट्रंप को बुरा लग सकता है. लेकिन आने वाले समय में कोई ट्रंप नहीं कहलाएगा, मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता. ट्रंप एक राजनीतिक दुर्घटना की तरह देखा जा रहा है. भारत में यह दुर्घटना रोज़ होती है इसलिए ट्रंप से डरने की ज़रूरत नहीं है. भारतीय मतदाता भी ट्रंप ही पसंद करने लगा है. उसने राष्ट्रीय से लेकर ब्लॉक स्तर पर एक से एक ट्रंप चुने हैं. ट्रंप न हो तो राजनीति का ट्रंक कैसे भरेगा. ट्रंप ने जबसे यह कहा है कि आई लव हिन्दूज़, तब से मैं चुप हूं. मैं ख़ुद को शक से कैसे देख सकता हूं.

दुनिया ट्रंप से ऐसे आतंकित है जैसे लैब के किसी सुपर रोबोट में इंसानी जान आ गई हो. वह अचानक सेब खाने लगा हो और तंदूरी चिकन मांगने लगा हो. ट्रंप आज की राजनीति का हकीकत है. राजनीति के पास ट्रंप के अलावा आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है. जो ट्रंप नहीं हैं वो ट्रंप से भी ज़्यादा शातिर हैं. उनके गुनाहों पर पर्दा ट्रंप के कारण डल जाता है क्योंकि दुनिया उस लैब वैज्ञानिक की तरह अरबों रक्त सैंपल को ट्रंप के रक्त सैंपल से मिलाने में व्यस्त है. जो ट्रंप नहीं है वो ट्रंप का लाभ उठाकर ट्रंप की जगह पर पहुंच रहा है. दरअसल वो भी ट्रंप ही है. हर दल में ट्रंप है. हर दिल में ट्रंप है.

अमरीका में ट्रंप नहीं हारेगा. चुनाव हार भी जाए लेकिन ट्रंप अजातशत्रु होते हैं. अमीबा होते हैं. हाईड्रा होते हैं. ये फिर से पैदा हो जाते हैं. कई बार ट्रंप सफल हो जाते हैं. कई बार असफल हो जाते हैं. क्या आपने कहीं ट्रंप देखा है, गाज़ियाबाद से लेकर अलवर तक में, कहीं भी ट्रंप दिखे तो किसी हेल्पलाइन पर फोन ज़रूर करें, अगर ट्रंप नहीं दिखता है तो टीवी चैनल ज़रूर देखें. वहां किसी एंकर में भी ट्रंप छिपा हो सकता है. ट्रंप नेता बनकर आए, ज़रूरी नहीं है. वो हमारे समय का रोबोटिक भगवान है. कोई भी अवतार ले सकता है. वो बिजनेस मैन बनकर आ सकता है वो न्यूज़मैन बनकर आ सकता है. आ रहा है, वो देखो, आ गया....हां हां दिख रहा है, मैंने भी देखा है...ट्रंप ही है न. कल रात को हम सबने सहारनपुर में देखा था. ट्रंप मंकी मैन है. याद है न दिल्ली में मंकी मैन का जलवा . तब पूरी दिल्ली को मंकी मैन दिख जाता था. आज पूरी दुनिया को कहीं भी ट्रंप दिख जा रहा है.

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