मैंने हज़ार दफ़ा लिखा है कि अब सरकारों को नागरिकों के मुद्दे से फ़र्क़ नहीं पड़ता. जब आप अपनी नागरिकता धर्म से परिभाषित करते हैं और वो भी धर्म के नाम पर तमाम झूठ और अधर्म को गले लगाते हैं तब आप जनता होने का अस्तित्व खो देते हैं. सरकारें निश्चिंत हो गईं हैं. जनता समर्थक में बदल गई है. वह मतदाता नहीं रही. अचानक तकलीफ़ होने पर जागने से आपको अब जनता का दर्जा नहीं मिलेगा.
हमने अपनी क्षमता से बहुत लिखा. अब उस सत्य को घटित होते देख रहा हूँ. मेरे लिख देने से या बोल देने से सरकारों पर क्यों फ़र्क़ पड़ेगा? कोटा में पंद्रह साल के बिहार के बच्चे फँसे हैं. लेकिन उनके माता पिता के परिवारों में ही पता कर लें. वो राजनीतिक सवालों पर जनता की तरह नहीं समर्थक की तरह बात करते हैं. जनता ही जब जनता होने को ठुकरा दे तब आप क्या कर सकते हैं ? लिख सकते हैं. फिर?
बिहार के नियोजित शिक्षक पत्र लिखते रहते हैं. अब उनका दावा है कि पचास से अधिक शिक्षकों की असामयिक मौत हो चुकी है. यूपी में कई शिक्षामित्रों के साथ यही हुआ लेकिन वही लोग चुनाव में जनता कम समर्थक ज़्यादा बने रहे. सांप्रदायिक मीम में डूबे रहे. उनकी भी संख्या कई हज़ार और परिवारों की मिलाकर लाख थी. बिहार में चार लाख शिक्षकों का वर्ग है. बार-बार बताते हैं. आप याद करें प्राइम टाइम के पुराने एपिसोड, जिसमें मैं आपकी ही गालियाँ सुनता हुआ कहा करता था कि लोकतंत्र में संख्या ही सब कुछ है मगर अब संख्या का महत्व शून्य हो गया. जनता, जनता ही नहीं रही.
नियोजित शिक्षकों के परिवारों में भी उनके प्रति सहानुभूति नहीं होगी. सबकी निष्ठा बिना तथ्य और तर्क के स्थायी हो चुकी है. तो वो अब किस अख़बार और चैनल से इस खबर को दिखाने की उम्मीद रखते हैं ? क्या छपा हुआ देखना ही अंतिम लक्ष्य है? उनके ही परिवारों में और खुद शिक्षकों में से बहुत व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में चल रहे एक संप्रदाय के विरुद्ध मीम को पढ़ कर मगन होंगे.
याद रखिए. आपने राजनीति की हत्या कर दी है. राजनीति के नाम पर आपकी निष्ठा सांप्रदायिकता है. चूँकि ये सच स्वीकार नहीं कर सकते इसलिए ज़िंदा होने के झूठ के साथ जीने के लिए मजबूर होंगे .
मुझे नियोजित शिक्षकों से यही कहना है कि मुझे पत्र न लिखें. मैं अंतिम बार के लिए यहाँ लिख रहा हूँ. मैं अंतिम व्यक्ति होऊँगा, संसार में जब जनता को अस्तित्वहीन होते देखना चाहूँगा. अब बहुत देर हो चुकी है. कृपया इस पोस्ट को पढ़ने के बाद नियोजित शिक्षक मुझे शुक्रिया तक न लिखें. मुझे मैसेज डिलीट करने और पढ़ने में तकलीफ़ होती है. आप सभी जो लिखा है ध्यान से पढ़ें और विचार करें.
पत्र यहाँ पोस्ट कर कहा हूँ
रवीश जी
सर मैं बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले से ताल्लुक रखता हूँ..
मेरी माता एक नियोजित शिक्षिका है.
सर आपसे आग्रह है कि बिहार में नियोजित शिक्षकों के हड़ताल पर प्रमुखता से खबर चलाए. कोरोना संकट के पूर्व 17 फरवरी से लगभग 4 लाख नियोजित शिक्षकों की समान काम, समान वेतन को लेकर हड़ताल जारी है. सरकार ने इनके वेतन भुगतान पर रोक लगा दी है. अब तक लगभग 60 शिक्षकों की असामयिक मृत्यु हो चुकी है पर सरकार का तानाशाही रवैया खत्म होने का नाम नही ले रहा. शिक्षक असीमित परेशानियों का सामना कर रहे है.सरकार के उदासीन रवैये का शिक्षकों की मानसिक स्थिति पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. असहनीय तनाव के कारण कई शिक्षक दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से असमय ही काल के गाल में समा गए.
देश की आम नागरिकों की समस्याओं को मुख्यधारा में लाने के लिए आपसे बेहतर कोई और पत्रकार नही है. हम सबको आपसे काफी उम्मीद है. आपकी बहुत मेहरबानी होगी
प्रणाम सर!!
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