विज्ञापन
This Article is From Feb 07, 2019

सबकी लापरवाही ने मिलकर ली थी अमृतसर में 58 लोगों की जान

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 07, 2019 14:43 pm IST
    • Published On फ़रवरी 07, 2019 14:41 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 07, 2019 14:43 pm IST

19 अक्‍टूबर 2018 को अमृतसर के धोबी घाट ग्राउंड के पास रेल दुर्घटना में 58 लोग मारे गए थे. 70 लोग घायल हुए थे. पंजाब सरकार ने बी. पुरुषार्थ की अध्यक्षता में मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे. पिछले साल दिसंबर में यह रिपोर्ट आ गई थी. मेरे व्हाट्स एप में बहुत दिनों से पड़ी थी. आज जब पढ़ रहा था तब लगा कि इसके बारे में बात होनी चाहिए. यह रिपोर्ट ऐसी सभाओं के आयोजक, पुलिस, नगरपालिका और पत्रकारों के लिए एक मैनुअल का काम कर सकती है. शायद इसीलिए इसकी बात कर रहा हूं जब इस दुर्घटना को ही पूरी तरह भुला दिया गया है.

बंगाल चिट-फंड के नाम पर हो रहे खेल को जानने के लिए इस खेल को समझें

रिपोर्ट की ईमानदारी बताती है कि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले वह उन प्रक्रियाओं को खोजती है जिससे छेडछाड़ करने के नतीजे में 58 लोग कटकर मर जाते हैं. क्या पता इन लापरवाहियों के कारण आज भी इसी तरह की ट्रेन दुर्घटनाएं हो रही हों. अगर आप इस रिपोर्ट में किसी एक को नाप देने की हेडलाइन खोज रहे हैं तो निराशा होगी लेकिन यह रिपोर्ट किसी एक को भी नहीं छोड़ती है. दुर्घटना के वक्त तो घंटों चर्चा हुई. रेल मंत्रालय बनाम पंजाब सरकार का विवाद बना मगर जब इस रिपोर्ट में दोनों ही कसूरवार पाए गए तो सबने उसे छोड़ दिया. 91 पन्नों की इस रिपोर्ट को बहुत हल्के में लिया गया इस रिपोर्ट को इस तरह के हर आयोजक, पुलिस, नगरपालिका और पत्रकारों को पढ़नी चाहिए. क्योंकि इस रिपोर्ट को पढ़ने से पता लगता है कि किसी को अपनी भूमिका का कुछ अता-पता नहीं है. अगर सबको अपना काम पता होता और वे अपना काम कर रहे होते तो 58 लोग नहीं मारे जाते.

बीमा का मतलब अस्पताल और इलाज नहीं होता है, कुछ और होता है

शुरुआत में ही यह रिपोर्ट चश्मदीदों के दावों को परखती है. 75 चश्मदीदों से बात करने के बाद लिखा गया है कि ज़रूरी नहीं कि जो चश्मदीद है उसे सारे तथ्य पता हों. जैसे दुर्घटना का समय क्या था इसे लेकर लोगों ने अलग-अलग बातें बताईं और मंच से कितनी बार घोषणा हुई थी कि ट्रैक पर खड़े लोग हट जाएं, ट्रेन आने वाली हैं. किसी ने कहा कि एक बार घोषणा हुई तो किसी ने कहा कि 10 से 15 बार हुई. यही हाल रावण के पुतले की ऊंचाई से लेकर ट्रेन की रफ्तार को लेकर था. यही नहीं नगरपालिका, पुलिस और रेलवे के अधिकारी भी सही जवाब नहीं दे रहे थे. इस रिपोर्ट में पटरी पर मौजूद लोगों को भी नहीं बख्शा गया है. लिखा है कि जब समाज ही मरने पर आमादा हो तो कोई व्यवस्था रोक नहीं सकती है. लोगों को खुद सोचना चाहिए था कि क्या रेल की पटरी खड़े होने की जगह है. मंच से सिर्फ एक बार घोषणा हुई कि वहां से हट जाएं. पुलिस ने हटाने का प्रयास किया तो एक व्यक्ति वहां सेल्फी लेने लग जाता है.

आगरा में रेंगती नागरिकता, पुणे में तेलतुम्बडे को लेकर चुप नागरिकता

 इतिहासकार ईएच कार और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का सहारा लेकर पुरुषार्थ ने लोगों के व्यवहार पर भी कड़ी टिप्पणी की है. लेकिन आप यह न सोचें कि जो मारे गए हैं, उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया गया है. हरिशंकर परसाई की रचना का अंश इस रिपोर्ट में कितना जायज़ हो जाता है. "मैं पूरी पीड़ा से, गहरे आक्रोश से बोल रहा था. पर जब मैं ज़्यादा मार्मिक हो जाता, वे लोग तालियां पीटते थे. मैंने कहा- हम लोग बहुत पतित हैं तो वे ताली पीटने लगे."

आयोजक दशहरा समिति की लापरवाही को तथ्यों के आधार पर पकड़ा गया है. उसके पहले बताया जाता है कि किसी आयोजन से पहले कितनी प्रकार की अनुमति ज़रूरी होती है. किन-किन संस्थाओं से अनुमति लेनी होती है. क्यों इन संस्थाओं को पता होना ज़रूरी है कि कोई सार्वजनिक कार्यक्रम हो रहा है. मैंने शुरू में इसीलिए कहा कि जब कोई पत्रकार और एंकर इस रिपोर्ट को पढ़ेगा तो उसके सवाल सही हो जाएंगे. अब रिपोर्ट को भुला दिया गया है लेकिन पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जाना चाहिए ताकि दुर्घटनाओं के वक्त हम अधिकारियों और आयोजकों की जवाबदेही को ठीक से प्रश्नांकित कर सकें. दशहरा समिति ने रावण दहन के आयोजन की अनुमति ही नहीं मांगी. सिर्फ सुरक्षा, आग बुझाने की गाड़ी और पानी के टैंक की गुज़ारिश की गई थी. आयोजकों ने रेलवे को भी नहीं बताया और न ही ट्रैक पर जमा लोगों को वहां से हटाने का इंतज़ाम किया. रेलवे की सीधे ज़िम्मेदारी नहीं बनती है मगर रेलवे की तरफ से ट्रेन के आने-जाने के समय का प्रचार किया जाता तो लोगों की जान नहीं जाती. यह जिम्मेदारी रेलवे की है कि वह अपने ट्रैक पर सुरक्षित आवाजाही की व्यवस्था रखे.

45 साल में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी की रिपोर्ट से डर गई सरकार

नगरपालिका और पुलिस की भूमिका की गहराई से जांच की गई है. पंजाब सरकार की तमाम कानूनी व्यवस्थाओं के अनुसार यह निगम की जवाबदेही है कि कार्यक्रम की अनुमति मिलने के पहले सभास्थल की सफाई करे और वहां से हर प्रकार की बाधा हटा दे ताकि भगदड़ की स्थिति में कोई फंसे नहीं. इस तरह का कोई काम नहीं हुआ था. आयोजन की ज़्यादातर अनुमति पुलिस को देनी थी. आयोजकों के पास पुलिस की एक ही अनुमति थी. लाउड स्पीकर लगाने की. शर्त के आधार पर अनुमति दी गई थी मगर पालन नहीं होने के कारण रद्द हो गई. पुलिस ने भी जांच नहीं की कि सुरक्षा के हिसाब से सभा स्थल सही है या नहीं. पुलिस ने भी रेलवे को कोई सूचना नहीं दी कि धोबी घाट मैदान पर इस तरह की सभा हो रही है. इस रिपोर्ट को ज़रूर पढ़िएगा. सरकारें तो भूल जाएंगी मगर आपकी जागरूकता सरकारों को बेहतर बना सकती हैं.

वीडियो: अमृतसर रेल हादसे पर लोगों का गुस्‍सा फूटा

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com