देश भर में चल रहे धरना प्रदर्शनों को आप देखेंगे तो लोकतंत्र की अलग तस्वीर दिखेगी. कई बार हम प्रदर्शनों को विपक्षी दलों के हिसाब से देखते हैं. जो लोग विपक्ष को खोज रहे हैं उन्हें इन प्रदर्शनों में जाना चाहिए ताकि पता चले कि विपक्ष के नेताओं के बगैर भी प्रदर्शन होते हैं. लोगों ने विपक्ष का रास्ता देखना भी बंद कर दिया है. इसे इस तरह से भी देखिए कि एक ज़माना था जब कोई नेता बनने के लिए इन प्रदर्शनों से जुड़ता था, इस्तेमाल करता था, मगर अब वो भी बंद हो गया है. लेकिन प्रदर्शन बंद नहीं हुए हैं. ज़्यादातर प्रदर्शनों का नतीजा भले ज़ीरो हो लेकिन सब अगले प्रदर्शन के लिए अपनी तरफ से एक नंबर छोड़ जाते हैं और यह सिलसिला चलता रहता है.
इतनी मुश्किलों को पार कर देश के कोने कोने से दिल्ली आने के इरादे को कोई माप नहीं सकता. अलग-अलग राज्यों से तीस तीस घंटे की यात्रा कर जब दिल्ली आए तो सब पहली बार एक दूसरे से मिल रहे थे. यहां आने से पहले भी चिट्ठी पत्री करके देख ली, ट्वीट करके देख लिया और कोर्ट जाकर देख लिया और जब कुछ नहीं हुआ तो सब आ गए. सरकार इन्हें दिव्यांग कहती है, बहुत से दिव्यांग शब्द से खुश नहीं हैं मगर इससे भी बड़ा मसला है कि चाहे आप इन्हें विकलांग कहें या दिव्यांग, उससे इनकी परेशानी कम नहीं हो जाती है. वर्ना तो रेल मंत्रालय का कोई इनके बीच आकर आश्वासन दे रहा होता या ठोस जवाब दे रहा होता. आज कल सारी संवेदनशीलता ट्विटर और फेसबुक के पोस्ट में ही नज़र आती है, ज़मीन पर नहीं. 2018 में रेलवे भर्ती बोर्ड के ग्रुप डी की परीक्षा में जिन विकलांगों का हुआ है, वो सब अपनी शिकायतों को लेकर दिल्ली के मंडी हाउस आए जहां पर विकलांग व्यक्तियों के लिए आयुक्त का कार्यालय है. यहां इसलिए आए क्योंकि यही पर इन छात्रों ने शिकायत की है कि रेलवे उनके सवालों का जवाब नहीं दिया है. बुधवार को यहां रेलवे को अपना पक्ष रखना था मगर रेलवे की तरफ से कोई नहीं आया. छात्रों का यह समूह आयुक्त के दफ्तर के बाहर जमा हो गया. नारे लगाने लगा. इंसाफ मांगने लगा. कोई नहीं आया लेकिन ये किसी के भरोसे नहीं, अपने इरादे के भरोसे दिल्ली आए हैं. सुनिए कि कहां कहां से आए हैं और कैसे कैसे आए हैं. मामला यह है कि रेलवे ने जब ग्रुप डी का रिज़ल्ट निकाला तो विकलांग श्रेणी में प्रदर्शन में शामिल छात्र पास हो गए. रिज़ल्ट में उनका नाम था और उनसे कहा गया कि आप सभी के दस्तावेज़ों की जांच होगी. ज़ाहिर है पास होने की खुशी किसी ने नहीं होगी. ये छात्र डाक्यूमेंट बनवाने में जुट गए. लेकिन कुछ दिन के बाद रेलवे इस परीक्षा में सीट बढ़ा देती है.
सीट बढ़ाने के साथ एक नई कैटेगरी जोड़ती है. मल्टीपल डिसेब्ल्ड. इसमें विकलांगता की 14 श्रेणियां बढ़ाई जाती हैं. जबकि फार्म भरते समय सात श्रेणियां थीं. जैस ओ एल, यानी वन लेग एक पांव वाली श्रेणी में 95 सीटें थीं. अहमदाबाद बोर्ड में. वहां घटाकर 61 कर दिया गया. ज़्यादातर छात्रों ने अहमदाबाद बोर्ड का विकल्प भरा था क्योंकि वहां पर 95 सीटें थीं. ज़ाहिर है जहां ज़्यादा सीटें होंगी वहीं ज़्यादा विकल्प होगा. छात्र ज़्यादा फार्म भी भरेंगे. मल्टीपल डिसेबल्ड की 14 श्रेणियां जोड़ दी गईं. जब फार्म भरते समय 7 ही श्रेणियां थीं तो 14 नई श्रेणियों के छात्र कहां से आ गए. जब अहमदाबाद बोर्ड में सीट घटाई गई तो इन छात्रों को दूसरे बोर्ड का विकल्प क्यों नहीं दिया गया. यही नहीं पहले जिस बोर्ड में विकलांगों के लिए कोई सीट नहीं थी, फार्म भरने के समय, वहां रिज़ल्ट निकलने के बाद सीट बढ़ा गई है और पास हुए छात्रों को नए बोर्ड में भरने का विकल्प भी नहीं दिया. मान लीजिए कोलकाता बोर्ड है. वहां पर किसी विकलांग ने फार्म नहीं भरा तो रिज़ल्ट के पास वहां सीट कैसे बढ़ी, जब किसी ने अप्लाई ही नहीं किया तो सीट कैसे बढ़ाई गई और बढ़ी हुई सीटों के लिए छात्र कहां से लाए गए. यही नहीं विकलांगों से रेलवे ने अलग फार्मेट में सर्टिफिकेट मांगा जिससे काफी परेशानी हुई. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी फार्मेट में सर्टिफिकेट हो, उसे मानना होगा. इन छात्रों की एक और बड़ी शिकायत है. जब रिज़ल्ट निकला तो जनरल से लेकर आरक्षित वर्ग का कटऑफ निकला लेकिन विकलांगों के लिए कटऑफ क्यों नहीं निकला.
ये छात्र मंडी हाउस पर शाम को भी जमे हुए थे. इन्हें इंसाफ़ चाहिए. मीडिया चाहिए और विपक्ष भी चाहिए. कम से कम रेलवे के किसी अधिकारी को इनके बीच आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी. संवाद से बेहतर ही होता है. हमें भी दिखाने का मौका मिलता कि रेलवे का क्या पक्ष है. छात्रों का दावा है कि विकलांगों के लिए आयुक्त के कार्यलय में रेलवे ने अपना पक्ष रखना ज़रूरी नहीं समझा.
चार चार बार तारीख थी. जबकि केंद्र सरकार का कानून है 2016 का विकलांगों के साथ अन्याय होने पर, उनके मामले में कदाचार होने पर अफसर को 3 साल की जेल हो सकती है या 6 लाख का जुर्माना होगा. छात्रों का कहना है कि आयुक्त कार्यालय की तरफ से और सात दिनों का समय मांगा गया है. छात्र तैयार नहीं हैं. देर शाम तक मंडी हाउस के गोलंबर पर जमा रहे. नारे लगाते रहे. छात्रों का कहना है रात यहीं गुज़ारेंगे. रेल मंत्री से मिले बिना नहीं जाएंगे.
केंद्र सरकार ने BSNL-MTNL को बचाने की योजना पेश की है. टेलिकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि BSNL और MTNL का विलय किया जाएगा. एमटीएनल बीएसएनल की सहायक कंपनी के तौर पर काम करेगी. सरकार को उम्मीद है कि दो साल में दोनों कंपनियां मुनाफे में आ जाएंगी. मीडिया में दोनों के घाटे के बारे में कई खबरें छपी हैं. बीएसएनल का ही घाटा 14000 करोड़ बताया जाता है. रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि दोनों कंपनियां 15000 करोड़ के बान्ड जारी करेंगी और अगले चार साल में अपनी संपत्तियों से 38,000 करोड़ की राशि का बंदोबस्त करेंगी. कैबिनेट में कर्मचारियों की संख्या भी कम करने का फैसला किया गया है. इसके लिए सेवा के जितने साल बचे होंगे उसकी सैलरी, ग्रेच्युटी और पेंशन का 125 प्रतिशत दिया जाएगा. इस तरह से आधे से ज़्यादा कर्मचारी वीआरएस के ज़रिए रिटायर कर दिए जाएंगे. लाइव मिंट की रिपोर्ट में बताया है कि मार्च 2018 तक BSNL के पास 70,000 करोड़ की ज़मीन ही थी. 3760 करोड़ की इमारत थी. MTNL पर 40,000 करोड़ की देनदारी हो गई है. बीएसएनएल को 2016 की कीमत पर 4जी भी दिया जाएगा जिसके लिए सरकार 4000 करोड़ देगी. बीएसएनएल और एमटीएनएल के कर्मचारी यूनियनों के नेता ने स्वागत किया है.
झारखंड में विधानसभा का चुनाव करीब आ रहा है. आज तीन अलग-अलग दलों के पांच विधायक भाजपा में शामिल हो गए. करीब आधा दर्जन रिटायर अधिकारी भी भाजपा में शामिल हो गए. इनमें से एक विधायक पर 130 करोड़ के दवा घोटाला का ट्रायल चल रहा है. इनका नाम है भानु प्रताप शाही. इनकी पार्टी का भाजपा में विलय कर लिया गया है. भानु प्रताप शाही मधु कोड़ा सरकार में मंत्री थे. दवा घोटाले में सीबीआई, ईडी ने चार्जशीट दायर कर दिया है. ट्रायल चल रहा है और भानु प्रताप शाही भाजपा में चले गए. भाजपा के नेता कहते हैं कि जब मधु कौड़ा की पत्नी गीता कौड़ा कांग्रेस से सांसद बनीं तो मीडिया ने सवाल क्यों नहीं उठाया. 2019 में गीता कोड़ा सिंहभूम से सांसद बनी है. अगर गीता कोड़ा पर सवाल नहीं उठा तो क्या इस दलील से 130 करोड़ के दवा घोटाले में ट्रायल फेस कर रहे भानु प्रताप शाही का विलय जायज है. सवाल ही कमाल का है. मधु कोड़ा पर तो भयंकर भयंकर आरोप हैं. उनकी पत्नी पर नहीं लगे थे. लेकिन यह बात नोट करना चाहिए कि मधु कोड़ा ने अक्तूबर 2018 में कांग्रेस ज्वाइन किया था. मधु कोड़ा सरकार में हुए घोटाले भाजपा के लिए मुख्य मुद्दा हुआ करते थे. रघुवर दास सरकार के मंत्री सरयु राय का राजनीतिक जीवन इस घोटाले को उजागर करने में निकल गया. सरयु राय ने मधु कोड़ा सरकार की लूट पर एक किताब भी लिखी है. अब उसी घोटालेबाज़ सरकार के एक मंत्री उनकी पार्टी में आ रहे हैं.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार यूपी के चार ऐसे शहर हैं जिनकी हवा सांस लेने लायक नहीं है. मंगलवार के डेटा के अनुसार बनारस देश में सबसे प्रदूषित शहर रहा. दूसरे नंबर पर लखनऊ था. सोमवार को लखनऊ देश का सबसे प्रदूषित शहर था. तीसरे नंबर मुज़फ्फरनगर और चौथे नंबर हरियाणा का यमुनानगर. चौथे नंबर पर मुरादाबाद. दिवाली के बाद वायु प्रदूषण और बढ़ सकता है.
इस बीच केंद्र सरकार ने फ़ैसला किया है कि दिल्ली की 1800 अनियमित कॉलोनियां नियमित की जाएंगी. लोग अब इन कॉलोनियों में घर बनाने के लिए लोन ले सकेंगे. मोदी सरकार के इस फ़ैसले से दिल्ली की अवैध कॉलोनियों में रहने वाले क़रीब 40 लाख लोगों को फ़ायदा मिला है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के हाल के कई फ़ैसलों के बाद मोदी सरकार के इस फ़ैसले को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.