क्या आपको याद है कि भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट क्यों दिया था? साध्वी प्रज्ञा को टिकट देना बीजेपी के लिए सत्याग्रह था. अदालत के सत्य का इंतज़ार किए बग़ैर सत्याग्रह करने का यह अंदाज़ गांधी जी के सत्याग्रह की कल्पना में नहीं ही होगा. अमित शाह की कल्पना में था. आप जानते हैं कि साध्वी प्रज्ञा पर मालेगांव धमाके मामले में मामला चल रहा है और वे अभी ज़मानत पर हैं. अदालती केस को फर्जी कहने की परंपरा रही है और कई बार केस फर्जी होते भी हैं लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि असली केस में लोग फर्जी तरीके से रिहा भी हो जाते हैं. मगर 17 मई को प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में साध्वी प्रज्ञा को टिकट दिए जाने को सत्याग्रह की बात अमित शाह ने कही थी.
सत्याग्रह बहुत बड़ा फैसला होता है. उसकी नैतिकता राजनीतिक छल कपट से कहीं ज़्यादा बड़ी होती है. अप्रैल 2019 में टाइम्स नाउ को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी पर पूछे गए सवाल पर कहा था कि दुनिया में पांच हज़ार साल तक जिस महान संस्कृति और परंपरा ने वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया. ऐसी संस्कृति को आतंकवादी कह दिया. उन सबको जवाब देने के लिए सिम्बल है. बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा के लिए सत्याग्रह किया था जिनके गोड्से को देशभक्त बताने के बयान पर वो इतनी नाराज़ हो गई है कि एक दिन संसदीय दल की बैठक में आने से मना कर दिया गया है और संसद की रक्षा समिति से उन्हें हटा दिया गया. क्या पता रक्षा समिति में लाना भी किसी तरह का सत्याग्रह हो. अप्रैल 2019 में एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा था कि साध्वी प्रज्ञा को भारतीय सभ्यता की विरासत बता चुके हैं. अब सत्याग्रह की परिभाषा भी साध्वी प्रज्ञा की राजनीतिक सुविधा के हिसाब से गढ़ी जाने लगे तो गांधी की आत्मा की शांति की प्रार्थना ही की जा सकती है. हे राम कहा जा सकता है.
भोपाल के रोड शो के विज़ुअल में बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर आज के गृहमंत्री अमित शाह अपनी पार्टी के सत्याग्रह में शामिल हुए. फूल माला और राजनीतिक दल बल के प्रयोग के साथ सत्याग्रह का ऐसा कोई दृश्य किसी गांधीवादी ने देखा हो तो ट्वीट कर सकता है. इस रोड शो में शिवराज सिंह चौहान भी थे. अमित शाह के इस रोड शो के समय तक साध्वी प्रज्ञा ने गांधी के हत्यारे को देशभक्त नहीं कहा था. लेकिन इस रोड शो के पहले साध्वी प्रज्ञा कह चुकी थीं कि हम बाबरी मस्जिद का ढांचा तोड़ने गए थे. मुझे भयंकर गर्व है. मैंने चढ़कर ढांचा तोड़ा था. मुझे ईश्वर ने शक्ति दी थी और हमने देश का कलंक मिटाया है. साध्वी प्रज्ञा ने यह भी कहा था कि 26-11 आतंकी हमले के शहीद हेमंत करकरे को देशद्रोही बताया. धर्म विद्रोही बताया था. जिस दिन करकरे को आतंकवादियों ने मारा उस दिन सूतक का अंत हो गया. प्रज्ञा ने माफी मांगी थी. माफी भी ऐसे मांगी कि माफी शर्मा जाए. मैं बयान वापस ले रही क्योंकि इससे देश के दुश्मनों को लाभ मिल रहा है. इसके लिए माफी मांगती हूं यह मेरा निजी दुख था. जैसे माफी मांगना औपचारिकता भर हो. बहरहाल अमित शाह को आप सत्याग्रह के रोड शो में शामिल होते हुए देख सकते हैं.
आपको याद ही होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में फैसला देते हुए कहा है कि 1992 में मस्जिद को तोड़ना गैर कानूनी था. तो ज़ाहिर है यह एक अपराध है. साध्वी प्रज्ञा इस अपराध को गर्व बताती हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस बयान के संदर्भ में बीजेपी कोई फैसला लेगी? कोई कार्रवाई करेगी? यह भी सोचिए अगर साध्वी प्रज्ञा को टिकट देना इतना बड़ा सत्याग्रह था तो फिर उनके प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी क्यों नहीं गए? क्यों उन्होंने दूरी बनाई? उसी वक्त जब प्रधानमंत्री साध्वी प्रज्ञा को दिल से माफ नहीं करने की बात कर रहे थे बीजेपी के कार्यकर्ता भोपाल में प्रज्ञा की जीत के लिए बूथों पर तैनात थे.
बात दिल से माफ नहीं करने की कही थी और सहारा लिया गया अनुशासन समिति का जिसके बाद उन्हें माफ कर दिया गया. गोड्से को देशभक्त बताने के बाद रक्षा समिति से हटा दिया गया. यह कितनी बड़ी सज़ा है. अप्रैल 2017 में बांबे हाई कोर्ट ने मालेगांव बम धमाके मामले में साध्वी प्रज्ञा को ज़मानत दी थी. दो आधार पर. स्वास्थ्य और न चल पाने के कारण और एटीएस और एनआईए की चार्जशीट की सत्यता संदिग्ध होने के कारण. 2014 के बाद इस केस में एक बदलाव आता है. अभियोजन पक्ष यानी सरकारी वकील रोहिणी सान्याल ने प्रेस से कहा था कि उन्हें एनआईए के अफसर ने मिलकर कहा था कि मालेगांव के आरोपियों के मामले में नरम पड़ जाएं. फिर जून 2015 में रोहिणी सान्याल ने कहा कि उसी अफसर ने दोबारा कहा कि उन्हें दूसरे वकील से बदला जा रहा है. गोड्से को देशभक्त बनाने की धारा सिर्फ प्रज्ञा तक सीमित नहीं है.
इसी दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी गांधी जयंती पर न्यूयार्क टाइम्स में संपादकीय लिख रहे थे और संघ प्रमुख मोहन भागवत के भारत के अखबारों में गांधी को महान बता रहे थे, ट्विटर पर गोड्से अमर रहे ट्रेंड कर रहा था. कायदे से ये पूरी तरह हेट स्पीच था. मगर ट्विटर ने कोई एक्शन नहीं लिया. करीब एक लाख तक ट्विट किए गए. कौन लोग थे जो गोड्से अमर रहे गांधी जयंती के दिन ट्वीट कर रहे थे? ये लोग इतने भी अनजान नहीं थे. इस तरह का ट्वीट करने वाले कई लोगों ने अपने प्रोफाइल में मोदी का फैन, बीजेपी का सदस्य और संघ का समर्थक बताया था. राम मंदिर का समर्थक बताया था. बेशक बीजेपी ऐसे लोगों से संबंध नहीं बताएगी लेकिन हैरानी की बात है कि ज्यादातर खुद को संघ, बीजेपी और मोदी जी का फैन बताने में संकोच नहीं करते हैं. आज भी ट्विटर पर वेल डन प्रज्ञा ट्रेंड कर रहा है. ट्वीट कर रहे हैं कि आपके कहने से अब गांधीवादी तो नहीं होंगे. गोड्से अमर रहे. गोड्से के साथ सावरकर अमर रहे का भी नारा लगा है. ज़ाहिर है गोड्से को अमर नायक मानने वाली धारा वही है जिसके नेता निंदा करने पर मजबूर होते हैं. अब देखिए ये रितु हैं अपने ट्विटर हैंडल की प्रोफाइल में लिखती है कि हिमाचली ठकुराईन हैं. सनातनी हिन्दू हैं. उद्यमी हैं. टीवी डिबेटर हैं. ट्विटर पर रितु के एक लाख फोलोअर हैं. दो-दो केंदीय मंत्री पीयूष गोयल और हर्षवर्धन फोलो करते हैं. राज्यपाल तथागत रॉय फोलो करते हैं. रितु लिखती हैं कि प्रज्ञा के खिलाफ ट्विटर पर जो ट्रेंड हो रहा है उससे पता चलता है कि कौन सोशल मीडिया नैरेटिव को कंट्रोल कर रहा है वरना भक्त अगर इससे कंट्रोल कर रहे होते तो स्टैंड विद प्रज्ञा ठाकुर पहला ट्रेंड होता. लिबरल जमात के लोग भारत तेरे टुकड़े हों वाले को डिफेंड करते हैं क्या हम प्रज्ञा के लिए खड़े नहीं हो सकते. शर्मनाक हैं. रवि नार को कैलाश विजयवर्गीय फोलो करते हैं. इन्होंने ट्विट किया है कि गोड्से आतंकी नहीं है. मैं इसके साथ खड़ा होता हूं. वो देशभक्त है. अगर वो हत्यारा है तो भी देशभक्त है. रवि नार अपने इस ट्विट को प्रधानमंत्री को भी टैग किया है.
ऊपर के नेताओं की निंदा का सीमित मतलब रह जाता है. अगर वे वाकई इस बात को लेकर गंभीर हैं तो अपने समर्थकों की इस तबके से जूझना होगा. क्या पीयूष गोयल वैसे लोगों को अनफोलो कर सकते हैं जो गोड्से के समर्थन में ट्रेंड कर रहे हैं? क्या बीजेपी और आर एस एस ऐसा करने की हिम्मत दिखा पाएंगे. निंदा कहीं सिर्फ न्यूयार्क टाइम्स के लिए तो नहीं है. आप इन नेताओं के समर्थकों के ट्विटर हैंडल पर जाकर देखिए तो गोड्से और प्रज्ञा ठाकुर के लिए कितना समर्थन है. इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. यह विवाद पहले भी हो चुका था इसके बाद भी लोकसभा में साध्वी प्रज्ञा ने डी एम के सांसद ए राजा को बीच में टोककर गोड्से को देशभक्त कहा. इसके बाद हंगामा हुआ तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि गोड्से को कहना तो दूर हमने देशभक्त मानने की सोच की ही निंदा करते हैं. गांधी हमारे हमलोग के आदर्श हैं और भविष्य में भी मार्गदर्शक रहेंगे. इतनी स्पष्टता और ईमानदारी से किसी ने गोड्से को हीरो मानने वाली विचारधारा की निंदा नहीं की. राजनाथ सिंह ने अमित शाह की तरह प्रज्ञा को टिकट देने को सत्याग्रह नहीं कहा.
गोड्से के समर्थन में बात कहने वाली साध्वी प्रज्ञा अकेली नहीं हैं. इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई का आंशिक मतलब ही रह जाता है. जो जमात है वह एक या दो नेताओं के बयान से कहीं ज़्यादा बड़ी है. आज गोड्से के समर्थन में कहने वाले वही लोग हैं जो किसी और संदर्भ में हिन्दुत्व के नाम पर उन्हीं नेताओं का समर्थन कर रहे हैं जो साध्वी प्रज्ञा के बयान से नाराज़ हो गए. इस अंतर्विरोध को देखिए और देखिए कि गांधी योजनाओं की तस्वीर पर तो हैं मगर गोड्से के समर्थक अब पब्लिक स्पेस में पहले से ज़्यादा है. बीजेपी गांधी संकल्प यात्रा निकाल रही है. इसमें भी साध्वी प्रज्ञा शामिल नहीं हुईं. साफ साफ कह दिया कि वे प्रचार में यकीन नहीं करती. ज़ाहिर है गांधी संकल्प यात्रा सड़क पर नहीं, बीजेपी को अपने समर्थकों के बीच निकालने की ज़्यादा ज़रूरत है.
अब आते हैं आईएएस अफसर अशोक खेमका पर. हरियाणा के इस सीनियर आईएएस अफसर का एक और तबादला हुआ है. यह उनके जीवन का 53 वां तबादला है. इस संदर्भ में हम अशोक खेमका से बात करना चाहते हैं. ऐसे ही एक अफसर थे और वो भी हरियाणा के ही. प्रदीप कासनी. 34 साल की नौकरी में प्रदीप कासनी का 71 बार तबादला हुआ था. 2017 में एक बार तो एक दिन में तीन तीन तबादले किए गए थे. पहले साइंस एंड टेक्नालजी का महानिदेशक बनाया गया. फिर उसके बाद वित्त विभाग का सचिव बनाया गया और दो घंटे के बाद उनके पिछड़ा और अनुसूचित जाति आयोग का महानिदेश बनाया गया. एक दिन में तीन-तीन तबादले. यानी एक अफसर को काम ही नहीं करने दिया गया. उसे किस तरह से अपमानित किया जाता है. 2018 में रिटायरमेंट से पहले उन्हें कई महीने वेतन नहीं मिला. अदालत के पास जाना पड़ा और आदेश के बाद वेतन मिला था. 1984 में कासनी हरियाणा सिविल सर्विस में आए थे और 1997 में आईएएस बनाए गए. रिटायरमेंट के समय ऐसे पद पर थे जिसका अता पता भी नहीं था. किसी अफसर का 71 बार तबादला हुआ लेकिन आईएएस संघ कभी आवाज़ नहीं उठा सका.
हाल ही में हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला ने हरियाणा के ही अफसर संजीव चतुर्वेदी के बारे में रिपोर्ट की थी. भारतीय वन सेवा के हरियाणा काडर के इस अफसर ने एम्स में नियुक्ति के दौरान 200 घोटालों का पर्दाफाश किया था. ज़ाहिर है वहां का तंत्र संजीव चतुर्वेदी को झेल नहीं पाया होगा. सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल कर रवीश रंजन ने बताया है भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी का दर्जनों बार तबादला हो चुका है. संजीव चतुर्वेदी पर 19 मामले दर्ज कर दिए गए हैं. आरटीआई की सूचना से पता चलता है कि संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से दबाव आया था. उसके बाद एम्स के चीफ विजिलेंस अफसर के पद से संजीव चतुर्वेदी को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया.