पुरानी खबर है, बीते मई की, यह खबर हमें सरकारी नौकरियों को लेकर युवाओं के दृष्टिकोण में आ रहे बदलाव को समझने का मौका देती है. यह नजरिया बदलने का वक्त है. सरकार ही बदलने की तरफ धकेल रही है और उसे सफलता अभी मिल रही है. जिस तरह से रेलवे ने इस साल के लिए भर्तियां बंद कीं और कोई हलचल नहीं हुई. इससे विपक्ष को संकेत मिल जाना चाहिए. रोजगार राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा. बिहार का चुनाव साबित कर देगा, जहां बेरोजगारी काफ़ी है मगर सफलता सत्ताधारी गठबंधन को ही मिलेगी. युवाओं का वोट पूरी तरह से उनके साथ है. विपक्ष के नेता को यह बात कही तो नाराज हो गए. हमने कहा कि अगर मोदी जी और पीयूष गोयल रैली में बोल दें कि सरकारी नौकरी बंद कर दी तो सारे युवा जय-जय के नारे लगाएंगे और वोट देंगे. भले सौ फीसदी ये बात ठीक न हो लेकिन ये बात सही तो है ही. विपक्ष को अगर कोई काम नहीं है तो रोजगार के मुद्दे उठाता रहे लेकिन इस मुद्दे के सहारे वह युवाओं का विश्वास पा लेगा मुझे थोड़ा कम यकीन है. पा लें तो उनकी क़िस्मत.
साल 2019 का चुनाव आते ही मोदी सरकार नौकरियों को लेकर अपनी नीतियां स्पष्ट करने लगी थी. चुनाव में जाने से पहले नौकरियों का सैंपल जमा करने का सर्वे समाप्त कर दिया गया. आज तक डेटा का नया सिस्टम नहीं आया. चुनाव खत्म होते ही भर्ती परीक्षाएं पूरी नहीं की गईं. लोको पायलट की सारी ज्वाइनिंग नहीं हुईं. एसएससी की परीक्षा के नतीजे और ज्वाइनिंग अटक गए. अब सरकार ने ऐलानिया तौर पर कह दिया कि इस साल रेलवे की भर्ती नहीं होगी. अगले का किसे पता. अगर रोज़गार मुद्दा होता तो जिस देश में लाखों इंजीनियर बेरोजगार हैं वहां नौ हजार पद समाप्त कर दिए जाएं, ये हो ही नहीं सकता था कि युवा स्वीकार कर लें.
जिस देश में बेरोजगार इंजीनियरों की फौज है वहां इस खबर पर कोई हलचल न हो, हो ही नहीं सकता. इसका मतलब क्या है? युवा भी सरकार से नौकरी की उम्मीद नहीं करते. नौकरी प्राइवेट में भी नहीं है, यह बात जानते हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज के नौ हजार से अधिक पद समाप्त कर दिए और कोई वायरल नहीं, कोई फार्वर्ड नहीं. सरकारी नौकरी के अवसरों को खत्म कर युवाओं के बीच अपनी लोकप्रियता बनाए रखना आसान काम नहीं होता. मोदी सरकार ने यह कर दिखाया है. लोकप्रियता इसे कहते हैं. नौकरी चली जाए, सैलरी कम हो जाए, नौकरी बंद हो जाए फिर भी लोकप्रियता बनी रहे, ये सिर्फ मोदी जी कर सकते हैं. युवा बेरोजगार है मगर उसे रोजगार नहीं चाहिए. वो सरकार किसी और काम के लिए चुनता है. युवाओं और सरकार के बीच इस नए संबंध को समझने की जरूरत है.
मेरी मांग है कि सरकार युवाओं के लिए व्हाट्सऐप में मीम की सप्लाई बनाए रखे. गोदी मीडिया और मीम की लत के कारण युवा कभी नौकरी नहीं मांगेंगे. उन्हें नौकरी चाहिए ही नहीं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.