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This Article is From May 15, 2018

बंगाल के पंचायत चुनाव शर्मसार करने वाले हैं

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 15, 2018 09:12 am IST
    • Published On मई 15, 2018 09:12 am IST
    • Last Updated On मई 15, 2018 09:12 am IST
बंगाल के पंचायत चुनाव शर्मसार करने वाले हैं. मतदान शुरू नहीं हुआ कि कई जगहों पर सुबह के वक्त ही बम बंदूक गोली चलने लगी. आम तौर पर दोपहर बाद हिंसा होती थी मगर सुबह ही हिंसा होने लगी. थाने के पास, पोलिंग बूथ के करीब हिंसा हुई है. बम चले हैं और गोली चली है. मारपीट तो जाने कितनी जगह हुई. बीजेपी कार्यकर्ता की गोली मार कर हत्या हुई है. तृणमूल का कार्यकर्ता भी मार दिया गया. सीपीएम कार्यकर्ता का घर फूंक दिया गया. उसकी पत्नी भी जल कर मर गई. चुनाव से पहले ही हिंसा होने लगी थी. उसके बाद भी ऐसी क्या तैयारी थी कि इस तरह की हिंसा हुई है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सात से लेकर 13 लोगों के मरने की ख़बर आ रही है. घायलों की संख्या सैंकड़ों में बताई जा रही है. टीवी के फुटेज में कोई तलवार लेकर जा रहा है तो कोई चेहरा छिपाए जा रहा है. इस शर्त पर पंचायत चुनाव में हार और जीत का कोई मतलब नहीं रह जाता है. राज्य चुनाव आय़ोग को चुनाव ही रद्द कर देना चाहिए.

भारत में कई राज्यों में चुनाव हिंसा मुक्त हो गए हैं. वहां बाहुबल की जगह घनबल ने ले लिया है. मगर बंगाल में राजनीति का चरित्र ही हिंसा हो गई है. किसी को जगह बनानी होती है तो रामनवमी में तलवारों की यात्रा निकालता है, तनाव पैदा करता है, किसी को अपनी जगह बचानी है तो वो भी तलवारें निकालते हैं. इस हिंसा में हर दल के कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं. बंगाल के गांव अगर इसी तरह हिंसा को स्वीकार करते रहे और शहर बेपरवाह रहे तो एक दिन वहां चुनाव और जीतने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. हिंसा के डिटेल बता रहे हैं कि बंगाल अभी भी 80 के दशक के राजनीतिक युग में जी रहा है.

चुनाव से पहले ही विपक्ष एक तिहाई सीटों पर उम्मीदवार खड़े नहीं कर पाया. जबकि विपक्ष में कई पार्टियां हैं. बीजेपी, कांग्रेस, सीपीएम, लेफ्ट की अन्य पार्टियां. अगर ये सब मिलकर एक तिहाई सीटों पर भय और हिंसा के कारण उम्मीदवार न उतार पाएं तो फिर इस चुनाव को कराना ही नहीं चाहिए था. यह क्या संदेश दे रहा है? कोई वामदलों के समय होने वाली हिंसा के आंकड़ों से तुलना कर रहा है कि इस बार कम है. यह तुलना ही शर्मनाक है. सवाल है कि आज भी हिंसा को क्यों जगह मिल रही है. ज़िम्मेदारी तृणमूल की बनती है. जवाबदेही से बीजेपी और सीपीएम भी नहीं बच सकती है. बंगाल का सच यही है. सबको हिंसा चाहिए. हिंसा ही रास्ता है सत्ता तक पहुंचने का.

इस स्थिति में एक ही विकल्प होना चाहिए था. बंगाल में हर हाल में चुनाव हिंसा मुक्त होना चाहिए था. एक चुनाव अधिकारी को जान बचाने के लिए अगर पुलिस के सामने गिड़गिड़ाना पड़े तो यह मंज़र भयावह है. हिंसा मुक्त चुनाव न कराने के लिए चुनाव व्यवस्था में लगे सभी को दंडित किया जाना चाहिए. बर्खास्त कर देना चाहिए और चुनाव को निरस्त. किसी भी सूरत में हिंसा से कोई समझौता नहीं. वर्ना लोकतंत्र सिर्फ उनके पास होगा जिनके हाथ में या तो तलवार होगी या जिनके पास धर्मांधता से लैस भीड़.

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