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This Article is From Nov 14, 2016

काजल की कोठरी में बंद हैं अब भी कई सवाल, चलो बिजनेस अख़बार पढ़ते हैं

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 14, 2016 12:15 pm IST
    • Published On नवंबर 14, 2016 12:15 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 14, 2016 12:15 pm IST
'इकोनॉमिक टाइम्स' की ख़बर है कि आय से अधिक संपत्ति पर 200 फीसदी का जुर्माना कैसे लगाएं, इसे लेकर आयकर अधिकारी असमंजस में हैं. वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने नोटबंदी के तुरंत बाद इसका ऐलान किया था. आयकर अधिकारियों ने कहा है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत बैंकों में नगद जमा होने पर 200 फीसदी जुर्माना लगा सकें. अगर कोई एक करोड़ की राशि बैंक में जमा करता है, 33 फीसदी टैक्स देता है, और अपना पैसा 2017-18 के आयकर रिटर्न में दिखा देता है तो उसका क्या करेंगे. आयकर अधिकारियों ने अख़बार को बताया है कि इसके लिए बैक डेट से आयकर कानून में बदलाव करना होगा. अगर आप 200 फीसदी जुर्माना लगाएंगे तो सारा पैसा राज्य के ख़ज़ाने में चला जाएगा.

अख़बार 'ईटी' ने यह भी लिखा है कि हज़ारों की संख्या में ट्रक हाईवे पर खड़े हो गए हैं. 30 लाख ट्रकों का 90 फीसदी हिस्सा दो दिनों से थमा हुआ है. इससे ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति में दिक्कत आ सकती है और दाम बढ़ सकते हैं. नोट-वापसी के साथ-साथ उपभोक्ताओं को अधिक दाम देकर भी इस राष्ट्रीय पर्व में खुशी-खुशी योगदान देना होगा. अगर सरकार सख़्त है तो ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक सेक्टर में कैश से होने वाले काम को बंद कर देना चाहिए. क्या वह ऐसा कर सकती है...? ट्रक का ड्राइवर क्रेडिट कार्ड से तो रिश्वत नहीं देगा न...? ढाबे पर खाना कैसे खाएगा...? अगर पूरी तरह से कैश बंद नहीं हो सकता, तो कुछ प्रतिशत तय होना चाहिए, ताकि बलिदान की कतार में लगी जनता को भरोसा हो कि काले धन वाले सही में परेशान हैं.

दूसरा, ट्रांसपोर्ट सेक्टर को कैश पर निर्भर रहना होता है, यह भी हमें समझना होगा. ओवरलोडिंग का कोई विकल्प नहीं बन पाया है. इसके नाम पर होने वाली कमाई भी कोई नहीं रोक सका है. हमारे राजनीतिक दल जब सरकार में आते हैं, तो यही सेक्टर उनके चुनाव का ख़र्चा और अगले चुनाव का संसाधन जुटाने में बहुत योगदान करता है, ताकि उन दलों के नेता भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भाषण देकर लड़ने का अभिनय कर सकें. ऐसा नहीं है कि आरटीओ के बारे में सरकार को पता नहीं. अगस्त, 2014 में पुणे की एक सभा में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि जल्दी ही एक कानून लाकर आरटीओ सिस्टम समाप्त कर देंगे. क्या आरटीओ सिस्टम समाप्त हो चुका है...? दो साल से ज़्यादा समय बीत चुका है.

सरकार ने बताया है कि नोटबंदी के तीन दिन के भीतर बैंकों में तीन लाख करोड़ रुपये जमा हुए हैं और 50,000 करोड़ निकाले गए हैं. अब यहां कुछ सवाल बनते हैं. क्या तीन लाख करोड़ पूरी तरह से काला धन है...? अगर सरकार, बैंक या रिज़र्व बैंक इतनी जल्दी बैंकों में जमा टोटल पैसा बता सकते हैं, तो क्या कुछ और सवालों के जवाब मिल सकते हैं...? इस तीन लाख करोड़ में से कितनी राशि पुराने नोटों के जमा करने की है. कितनी राशि दस और पांच हज़ार से कम की है. औरतों के खाते में कितने पैसे जमा हुए हैं. उन्हें और किसानों को ढाई लाख तक की राशि जमा होने पर टैक्स और पूछताछ से छूट मिली है. क्या रिज़र्व बैंक बता सकता है कि ग्रामीण सेक्टर में कितने पैसे जमा हुए और मुंबई-दिल्ली जैसे बड़े शहरों में कितने पैसे जमा हुए.

एक अख़बार में आगरा से रिपोर्ट छपी है कि जन-धन खातों में कई करोड़ रुपये जमा हुए हैं. अगर वह रिपोर्ट सही है तो सरकार को यह भी बताना चाहिए कि देशभर में करोड़ों जन-धन खातों में कितने पैसे जमा हुए. ज़ीरो जन-धन खातों में कितना उछाल आया है. सरकार बताती भी रही है कि जन-धन में कितना पैसा जमा हुआ है, तो इस बार क्यों नहीं बता रही है. अभी इसे उजागर करने से यह हो सकता है कि इन खातों के ज़रिये काला धन सफेद करने वालों पर अंकुश लग सकता है. हमें भी पता चलेगा कि जन-धन खातों का इस्तमाल तो नहीं हो रहा है.

तीन लाख करोड़ के आंकड़े से एक छवि तो बनती है, मगर वह असली तस्वीर नहीं है. तीन लाख करोड़ के बाद यह रकम 10 लाख करोड़ तक भी पहुंच सकती है. हो सकता है कि काफी पैसा सामान्य कारोबारी गतिविधियों का हो. क्या उसे भी तीन लाख करोड़ में शामिल कर लिया गया है. नोटबंदी से पहले बैंकों में आमतौर पर कितने लाख करोड़ रुपये जमा हो रहे थे...? 'इकोनॉमिक टाइम्स' ने लिखा है कि 9 से 12 नवंबर के बीच सुबह-सुबह 1 लाख 67 हज़ार करोड़ का लेन-देन हुआ. इसमें से 45,000 करोड़ के पुराने नोट जमा हुए. वह भी सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में. बुधवार से एसबीआई में 75,945 करोड़ जमा हुआ है. बैंक ऑफ इंडिया में 15,000 करोड़ और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में चार हज़ार करोड़. अख़बार के अनुसार निजी बैंकों ने अपने आंकड़े जारी नहीं किए हैं. इन राशियों को पुराने नोट और काले धन के रूप में समझना ज़रूरी है. अगर सभी काला धन नहीं है, तो फिर क्यों बताया जा रहा है या इसे बताने की जल्दी क्या है.

इसका मतलब यह भी है कि हम रोज़ का रोज़ जान सकते हैं कि 9 नवंबर के बाद जो राशि जमा हुई है, उसमें से कितने पुराने नोटों के जमा होने की है और कितने पैसे इलेक्ट्रॉनिक से लेकर तमाम कारोबारी ट्रांज़ैक्शन के हैं. कई तरह से सुनने में आ रहा है कि बैंकों से बाहर अलग-अलग बहीखातों में काले धन को एडजस्ट किया जा रहा है. क्या सरकार के पास इस तरह की हेराफेरी को ट्रैक करने का कोई ज़रिया है...? यानी क्या सरकार इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जान सकती है कि कंपनियों के बहीखातों में किस तरह से उछाल आ रहा है. अगर यही लोग बच गए तो फिर क्या फायदा. कई बिजनेस अखबारों को ग़ौर से देखा. सोने की ख़रीद कितनी बढ़ी, इस पर तो लेख आने भी बंद हो गए हैं. ठोस जानकारी नहीं है. एकाध दुकानों में छापेमारी की ख़बर है, जबकि इस देश में लाखों दुकानें हैं.

सरकार की एजेंसियां यह क्यों नहीं बता रही हैं कि इन चार दिनों में सोना या प्रॉपर्टी के ज़रिये कितना निवेश हुआ. दो-चार बड़ी कार्रवाइयां इन सवालों का जवाब बन जाएंगी, मगर वे जवाब नहीं हो सकतीं. प्रतीक के तौर पर दो–तीन बड़ी कार्रवाई कर दीजिए, वाहवाही बटोरिए और बाकी सवालों को छोड़कर चलते बनिए. 2 मई, 2016 के 'इंडियन एक्सप्रेस' में हरीश दामोदरन की एक रिपोर्ट छपी थी. उन्होंने बताया है कि मार्च, 2016 की वार्षिक समाप्ति पर बैंकों में जमा राशि सिर्फ 9.9 प्रतिशत ही बढ़ी है. डिपॉज़िट में सिंगल डिजिट की यह नौबत 1962-63 में ही दर्ज हुई थी. यानी बैंकों में जमा राशि को देखें तो उनकी हालत ख़राब चल रही थी. हरीश दामोदरन ने कई कारणों का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि यह मुमकिन है कि लोगों की आमदनी ही नहीं बढ़ रही है, इसलिए बैंकों की जमा राशि ऐतिहासिक रूप से घट रही है. तो क्या यह सारी कवायद बीमार बैंकों को बचाने की है...?

'बिजनेस स्टैंडर्ड' अखबार ने तो बाकायदा चार्ट निकाला है कि कितने के काले धन पर आपको कितना टैक्स देना होगा, कितना जुर्माना देना होगा. अलग-अलग शर्तों के साथ चार्ट में बताया गया है कि कितना टैक्स लगेगा और कितना जुर्माना. अख़बार ने बताया है कि अगर आपके पास पांच लाख रुपये की अघोषित राशि है, कोई टैक्स नहीं देते रहे हैं, तो आपको उस पर 20,600 टैक्स देना होगा. इसका 200 फीसदी जुर्माना हुआ 41,200. यानी आप पांच लाख का काला धन सिर्फ 61,800 देकर सफेद कर सकते हैं. अगर यह हिसाब सही है तो फिर तो यह स्कीम कुछ और नहीं, नगदी काले धन रखने वालों के लिए हैप्पी दीवाली है. आपको पांच लाख की अघोषित राशि पर सिर्फ 12 प्रतिशत टैक्स और पैनल्टी देनी होगी. अगर आप पांच लाख की आय पर टैक्स देते रहे हैं और आपके पास एक करोड़ की अघोषित राशि निकलती है तो उस पर जुर्माना और पैनल्टी मिलाकर 87,29,250 रुपये देने होंगे. 87 फीसदी टैक्स लग जाएगा. फिर भी 13 लाख रुपया सफेद हो जाएगा. चोर के पास 13 लाख भी बच जाएं तो समझिये कि वह राजा ही रहा.

आज के दौर में सूचनाओं और तथ्यों की कोई अहमियत नहीं है. मोटी बात लोगों में चली गई है कि काले धन के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक कार्रवाई हुई है. पांच सौ और हज़ार के नोट बंद हो गए हैं. कई तरह के सवालों को अनदेखा किया जा रहा है. टीवी और अखबारों की तस्वीरों में सिर्फ ग़रीब और आम लोग ही परेशान क्यों हैं. जबकि यही वे लोग हैं, जो पूरे मन से सरकार का समर्थन भी कर रहे हैं. काला धन मिट गया है, अगर इसका दावा है तो सारे तथ्य कहां हैं. अगर उद्योग जगत और कारोबार जगत के पास काला धन था, तो उनके बीच सार्वजनिक हाहाकार क्यों नहीं है. सरकार उनके बारे में क्यों नहीं कुछ बता रही है, ताकि कतार में खड़े लोगों में और सब्र पैदा हो सके कि वे ऐतिहासिक रूप से अपना राष्ट्रीय दायित्व निभा रहे हैं.

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