"क्रिसमस आमरा भाल लागे न..." (क्रिसमस मुझे अच्छा नहीं लगता), जैसे ही 20-22 साल के लड़के ने कहा, उसके साथ की दोनों लड़कियां चिहुंक उठी, "ऐ, चुप थाक..." (चुप करो तुम), उसके बाद तीनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े पार्क स्ट्रीट की भीड़ में समा गए, जो क्रिसमस मनाने के लिए वहां जुट रही थी।
कोलकाता की पार्क स्ट्रीट भारत के 65 फीसदी युवाओं की वह सड़क है, जिसे वे हर जगह अपने मिज़ाज से बना लेते हैं। दिल्ली का कमला नगर मार्केट हो या चंडीगढ़ का सेक्टर सत्रह या बेंगलुरू का एमजी रोड। भारत की जवानियां अपना सैम्पल यहीं छोड़ आती हैं, जिनकी वजह से ये सड़कें हर दौर में नौजवान रहती हैं। धड़कती और थिरकती रहती हैं।
No, Woman, No Cry
Everything's gonna be all right!
Everything's gonna be all right!
थोड़ी दूर चलने पर '70 के दशक का यह मशहूर गाना सुनाई देने लगता है। बॉब मर्ले का यह गाना कोलकाता में नया हो गया है। हम पार्क स्ट्रीट के एलन पार्क में प्रवेश करते हैं। दुबले-पतले और निरीह-से शख्स गा रहे हैं। हुलिये से वह कहीं भी राकस्टार नहीं लगते। उम्र पचास की लगती है। बेहद साधारण लिबास में। इनसे तो कहीं ज़्यादा आजकल चमक-दमक में भोजपुरी के लोकगायक रहते हैं। मगर गाने वाले शख्स के हुनर पर कोई सवाल नहीं कर सकता। गा भी शानदार रहे थे और गिटार भी बेहतरीन बजा रहे थे। टाप क्लास बैंड था।
सामने वीआईपी घेरा-सा बना है। शायद पास-सिस्टम से प्रेम करने वालों के लिए सोफा लगा है। बाहर बहुत-से लोग झूम रहे हैं। कई सारे लोग सेल्फी ले रहे हैं। सेल्फी ने हम सबका व्यवहार बदल दिया है। हम खुद को अपनी नज़रों के फ्रेम में देखने लगे हैं। फोटो का मतलब ही सेल्फी हो गया है।
पार्क स्ट्रीट पर जो लोग घूम रहे हैं, वे सिर्फ ईसाई नहीं है। ये कोलकातावासी हैं। लगता है कि इनकी नागरिकता उत्सवधर्मिता से बनी है। बहुत-से लोगों की भीड़ पास के विक्टोरिया में भी है। लेक गार्डन के पास भी लोग पिकनिक मनाने निकले हैं। चाय की दुकानों पर भी केक बिक रहे हैं।
लेकिन पार्क स्ट्रीट की छटा बिल्कुल अलग है। यहां क्रिसमस दुर्गापूजा की तरह हो गया है। मशहूर चंदन नगर की बिजली सजावट की शैली में क्रिसमस की कथाएं बनी हैं। वैसे ही चमक रही हैं, जैसे पूजा के दौरान शिव-पार्वती और कार्तिकेय की तस्वीरें जगमगाती रहती हैं।
खाने-पीने के स्टॉल ने पूजा की याद और गहरी कर दी। बंगाली उत्सव ब्रिगेड के लिए मुग़लई परांठा न हो तो समझ लीजिए कि क्रिसमस है न पूजा। प्रॉन फिंगर, भेटकी पातुरी खा रहे हैं तो तरह-तरह के कप-केक भी। मोमो की होड़ लगी है। पान का भी स्टाल लगा है। तरह तरह की टोपियां बिक रही हैं। लड़कों ने चीन की सींग लगा लिए हैं तो लड़कियों के सिर पर बटरफ्लाई बो हेयरबैंड है। सब खूबसूरत और हैंडसम लग रहे हैं। हर कोई खुश है।
अब मेरे लिए भी घर-वापसी का वक्त हो गया है। कार में बैठते ही ड्राइवर का मोबाइल बज उठता है। यह तो गुलज़ार का गाना है, "तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी, हैरान हूं..." कार पार्क स्ट्रीट से निकल गई है। कोलकाता की सर्दी दिल्ली की दोपहर जैसी है। गुनगुनी और गुनगुनाती हुई।
This Article is From Dec 25, 2014
रवीश कुमार की कलम से : क्रिसमस के दिन पार्क स्ट्रीट
Ravish Kumar, Vivek Rastogi
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Updated:दिसंबर 25, 2014 18:38 pm IST
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Published On दिसंबर 25, 2014 18:35 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 25, 2014 18:38 pm IST
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