नए लोगों से मिला कीजिए, दुनिया थोड़ी-सी नई हो जाती है. शार्ली अब्राहम से ऐसी ही एक मुलाक़ात मुझे एक नई विधा तक ले गई. मैं चाहता हूं कि वह आप तक भी पहुंचे. हो सकता है कि आप जानते हों, मगर मैं चूंकि कम जानता हूं, इसलिए हर जानकारी मुझे नई लगती है और उत्सुकता से भर देती है. 2011 में 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने यहां Op-Eds की तरह Op-Docs शुरू किया था. जिस तरह से संपादकीय पन्नों पर जानकार अपनी टिप्पणी लिखते हैं, उसी शैली में इसमें डॉक्यूमेंट्री की शक्ल में एक नज़रिया पेश किया जाता है. इसे 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का संपादकीय विभाग ही चलाता है. बिल्कुल फिल्म के कैनवस और उसकी रचनात्मकता के साथ, जिसमें कहानी ख़ुद बोलती है. मौके पर मौजूद लोग किरदार बन जाते हैं. शब्दों की स्क्रिप्ट नहीं होती है. तस्वीरों की होती है.
शार्ली अब्राहम और अमित मधेशिया ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के लिए भारत से पहला Op-Docs बनाया है. शार्ली और अमित की डॉक्यूमेंट्री 'The Cinema Travellers' को कान फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिल चुका है. यह डॉक्यूमेंट्री 120 फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी है. भारत में इसे नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला है. अमित मधेशिया की तस्वीरों को विश्वप्रेस फोटो पुरस्कार मिल चुके हैं. दोनों की नई पेशकश का नाम है 'Searching for Sarawasti'.
हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर सरकार ने सरस्वती नदी की खोज में जाने कितने करोड़ बहा दिए. एक नदी की खोज का दावा कर लिया गया है. मुग़लावाली गांव के आस-पास सरस्वती नदी को लेकर जो नई संस्कृति गढ़ी जा रही है. कैसे भोले लोगों में यह विश्वास गढ़ा जा रहा है कि सरस्वती नदी मिल गई है. किसी वैज्ञानिक रिपोर्ट का दावा किया जा रहा है, जो किसी ने देखी नहीं है. किस तरह लोग चमत्कार के नाम पर दावों को पुख़्ता कर रहे हैं. लोगों की कल्पनाओं में कोढ़ ठीक करने से लेकर समृद्धि देने के नाम पर बोतलबंद पानी के सहारे सरस्वती नदी को ज़िन्दा किया जा रहा है. किसी कुएं को दिखाकर बता रहे हैं कि नदी मिल गई है. एक नदी कुएं में मिली है.
इस डॉक्यूमेंट्री को देखते हुए आप देख सकते हैं कि धर्म और मान्यताओं के नाम पर तर्क के दरवाज़ों को बंद कर देना कितना आसान है. उतना ही आसान है, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह किस्सा कि नाले से निकलती गैस के ऊपर बर्तन ढंक दिया और एक छेद से पाइप के ज़रिये चूल्हे को जोड़ दिया. फिर लगा उस पर चाय बनाने. पत्रकारिता के छात्रों को शार्ली अब्राहम और अमित मधेशिया की इस डॉक्यूमेंट्री को ज़रूर देखना चाहिए, जिसे बनाने के लिए कई हफ्ते की मेहनत लगी है. भारत के न्यूज़ चैनलों पर बेहूदगी छाई हुई है, कैमरे की कला समाप्त हो चुकी है. आप इस डाक्यूमेंट्री के ज़रिये यह भी देखेंगे कि TV क्या कर सकता है, आप क्या कर सकते थे और आप अब क्या नहीं कर पाएंगे.
मुझे यह डॉक्यूमेंट्री बहुत पसंद आई. हमारे समय का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. किस तरह एक नदी को खोज लेने का दावा किया जाता है और किस तरह भुला दिया जाता है. मगर स्थानीय स्तर पर धीरे-धीरे उसे ज़िन्दा रखा जाता है, ताकि मेला लगने लगे. एक बार मेला शुरू हो जाए, तो फिर बस दुनिया मान लेगी कि यही वह सरस्वती नदी है. यही है. गंगा तो साफ नहीं हुई, सरस्वती मिल गई और हुज़ूर अपना वक्त नाले से निकलने वाली गैस से चाय बनाने की थ्योरी में बर्बाद कर रहे हैं. एक नदी खोजी गई है, इसके लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों को बुलाकर लेक्चर देना चाहिए था. यही कि वे विज्ञान छोड़ कर इनका भाषण सुनें. वैसे इस डॉक्यूमेंट्री में लोगों ने ट्रम्प जी को भी याद किया है.
- रवीश कुमार
देखें डॉक्यूमेंट्री - 'Searching for Sarawasti'
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This Article is From Aug 13, 2018
गंगा तो साफ नहीं हुई, सरस्वती मिल गई है, फिर भी सन्नाटा क्यों है भाई...
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 13, 2018 11:49 am IST
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Published On अगस्त 13, 2018 11:49 am IST
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Last Updated On अगस्त 13, 2018 11:49 am IST
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