प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाभार्थियों को सौंप दिए गए 75 मकान लापता हो गए हैं. इस धनतेरस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर दिया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तो साक्षात मौजूद थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कांफ्रेंसिंग से शामिल हुए थे। उस दिन जितने मकान दिए गए, उनमें से 75 मकान ग़ायब हो गए हैं। जिस आवास को प्रधानमंत्री मंत्री सौंप रहे हों और वह मकान ग़ायब हो जाए, इससे बड़ा घोटाला कुछ और नहीं हो सकता।
हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी 75 लापता मकानों की तलाश में लगे हैं, इस वक्त उन्हें एक अच्छी सैटेलाइट की ज़रूरत है, अगर इलॉन मस्क दो तीन दिनों के लिए सेटेलाइट उधार दे देते तो अनुराग द्वारी लापता हो चुके 75 मकानों को खोज कर गरीब परिवारों के हवाले कर देते। इलॉन मस्क की कंपनी रॉकेट भी छोड़ती है और उपग्रह भी। इसके अलावा वे बिजली से चलने वाली कार बनाते हैं और इन दिनों ट्विटर भी चलाने लगे हैं। वैसे जब तक इलॉन मस्क अपनी सेटेलाइट अनुराग द्वारी को नहीं देते हैं, तब तक प्रधानमंत्री मोदी भी द्रोन भेज कर इन लापता मकानों को खोज सकते हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने 75 आवास लापता हो गए हैं तो बेहतर है कि प्रधानमंत्री ही द्रोन से पता लगा लें कि ये मकान कहां पर छुपा कर रखे गए हैं। हम इस ख़बर पर लौट कर आने वाले हैं कि विश्व गुरु बन चुके भारत में 75 मकान कैसे लापता हो जाते हैं? ऐसी खबरों से सांसें तेज़ चलने लगती हैं लेकिन हवा भी तो सांस लेने लायक नहीं है। इतना ज़हर भर गया है कि गोदी मीडिया के किसी ऐंकर को आगे आना चाहिए और कहना चाहिए कि हवा में ज़हर के लिए हवा ज़िम्मेदार है। हिन्दू मुस्लिम डिबेट का ज़हर पी कर जनता जब गोदी मीडिया देख सकती है तो दिल्ली की ज़हरीली हवां में सांस क्यों नहीं ले सकती है। कई साल तक गोदी मीडिया आपको हर बात के लिए विपक्ष को ज़िम्मेदार बताता रहा,अब वह जनता को ही ज़िम्मेदार बता रहा है क्योंकि वह जानता है कि सवाल पूछते ही जनता भी विपक्ष बन जाती है। आज खबर है कि पुलिस ओरवा कंपनी के दफ्तर गई थी। दफ्तर पर ताला लटका था।
कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने एक किताब लिखी है। इस किताब को पढ़ने से पता चलता है कि घड़ी बनाने वाली कंपनी के मालिक भारत के लोकतंत्र और उसकी चुनौतियों के बारे में क्या राय रखते हैं।
इस किताब के कवर पर ओरेवा घड़ी कंपनी के मालिक जयसुख पटेल हैं। गुजराती भाषा में लिखी गई इस किताब के 179 पन्नों में जयसुख पटेल देश की समस्या और उसका समाधान बताते हैं।जयसुख पटेल ने लिखा है कि मुझे लग रहा है कि करप्शन के चक्कर में भारत को सिर्फ डिक्केटर ही मुक्त करा सकता है और देश में ऐसे लोगों की ज़रूरत है। क्या हमारा सिस्टम डेमोक्रेसी के लायक है? किताब का नाम है समस्या और समाधान।
इस किताब में लिखी गई बातों को और पुल को लेकर कोर्ट में गुजरात पुलिस ने जो कहा है, एक साथ पढ़ा जाना चाहिए। तब अंदाज़ा मिलेगा कि कंपनी के प्रबंधन निदेशक जयसुख पटेल ने पुल की मरम्मत का काम कैसे हासिल किया होगा, सुरक्षा के नियमों के प्रति उनका क्या दृष्टिकोरण रहा होगा, जिसके बारे में गुजरात पुलिस कोर्ट में कहती है कि यह कंपनी इसके योग्य ही नहीं थी, इसके पास काबिल इंजीनियर तक नहीं थे। इस पुल के केबल को बदला नहीं गया, अगर बदला गया होता तो लोगों की जान नहीं जाती। क्योंकि जयसुख पटेल अपनी किताब में लिखते हैं कि उनके अनुसार देश में कायदा कानून के राज की जगह डिक्टेटर का राज होना चाहिए। गुजराती में छपने वाले अखबार दिव्य भास्कर ने जयसुख पटेल की किताब के कुछ अंशों को छापा है। आज गुजरात में दो चरणों में चुनाव का एलान हुआ है लेकिन जयसुख पटेल ने चुनाव पर पूरा चैप्टर ही लिख डाला है और बताया है कि चुनाव समय और पैसे की बर्बादी है, इसे बंद कर देना चाहिए।अब ऐसी सोच वाले व्यक्ति की कंपनी का काम कैसा होगा, आप सोच सकते हैं।
वैसे तो जयसुख पटेल की यह किताब इनकी कंपनी की वेबसाइट पर है मगर इसे पढ़कर हेडलाइन के ज़रिए जनता को बताने का काम दिव्य भास्कर ने किया है। इसकी हेडलाइन है कि ओरेवा कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने अपनी किताब में साफ किया है कि वे कायदा कानून नहीं मानते हैं। चुनाव बंद करके चीन की तरह एक ही आदमी को 15-20 साल तक के लिए देश का नेता बना देना चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्ट छपी है कि ओरेवा कंपनी ने नगरपालिका को बताया ही नहीं कि पुल चालू होने जा रहा है। पुल को सेफ्टी सर्टिफिकेट भी नहीं मिला था। केबल तक नहीं बदले गए, उनमें जंग लग चुके थे। यहां पर कोई लाइफगार्ड नहीं था? न ही डूबने पर बचाने के उपकरण रखे गए थे। लगता है जयसुख केवल लिखते नहीं है कि वे कायदा कानून में यकीन नहीं करते बल्कि अमल भी करते हैं।
इस पुल के टूटने में कंपनी की भूमिका तो जांच और अदालत से तय होगी मगर इसके मालिक की सोच इस कंपनी के काम और राजनीतिक संपर्कों का पता तो देती ही है। किस तरह की सोच के व्यक्ति को इस तरह के नाज़ुक पुल का काम दिया गया जिसकी लापरवाही के कारण 140 घरों में मातम छाया हुआ है। गुजरात पुलिस ने ही कोर्ट में बताया है कि जिस कंपनी को मरम्मत का ठेका दिया गया, वह इसके लायक नहीं थी। इसके पास क्वालिफाइड इंजीनियर नहीं थे। हमारा सवाल है कि ज़िला प्रशासन को कैसे नहीं पता चला कि एक पुल चालू हुआ है? 26 अक्तूबर से लेकर 30 अक्तूबर की शाम तो वहां भारी संख्या में लोग जाते रहे, क्या तब भी पता नहीं चला होगा कि किससे पूछ कर चालू हुआ है? इंडियन एक्सप्रेस ने जब नगरपालिका अधिकारी से पूछा कि क्या नगरपालिका ने कंपनी को कोई नोटिस दिया था? तो जवाब मिला कि समय नहीं मिला। एक्सप्रेस ने एक किताब के हवाले से लिखा है कि जब यह पुल बना था तब इस पर केवल 15 लोगों के जाने की अनुमति थी। तब फिर यह कैसे संभव हुआ कि पुल पर इतने लोग पहुंच गए?
यह लापरवाही एक कंपनी की ही नहीं है, पूरे प्रशासन और सरकार की भी है। सवाल है कि क्या मोरबी के पुल की घटना का अंजाम भी लखीमपुर खीरी की तरह होगा, कैमरे पर एक जीप आती दिखती है और चार किसानों को कुचल जाती है। यूपी में चुनाव होता है और लखीमपुर खीरी की सारी सीटें बीजेपी जीत जाती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनाव के बाद इस घटना को भुला दिया जाएगा कि मोरबी की सारी सीटें भाजपा को मिल गई हैं और इसकी सफलता की आड़ में बड़े गुनहगार बचा लिए जाएंगे। गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को मतदान होने हैं। वहां ज़ोर अब चुनाव पर होगा या जांच पर? जयसुख पटेल के राजनीतिक संबंधों पर कोई ठोस रिपोर्ट मीडिया में नहीं आई है। जयसुख पटेल की किताब समस्या और समाधान पढ़ने से काफी कुछ समझ आता है। जो व्यक्ति तानाशाही का सपना देखता हो वो पत्रकारों औऱ जनता के सवालों के जवाब क्यों देगा?
यह जयसुख पटेल की किताब के पन्नों की तस्वीर है। मोरबी पुल की मरम्मत करने वाली कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल इस किताब के पेज नंबर 54 to 56 पर इस तरह लिखते हैं- मुझे लगता है कि हम सब लोग डिक्टेटरशिप के ही लायक हैं, ग़ुलामी हमारे DNA में है। चीन में लोकतंत्र नहीं है, वहां इलेक्शन नहीं है सो अनावश्यक खर्चा नहीं होता है वहां। ह्मयूमन रिसोर्स की बर्बादी नहीं होती है। लोग अनुशासन को मानते हैं। हमारे देश में चीन के जैसा चुनाव बंद करके एक ही व्यक्ति को 15-20 साल तक शासन करने का अधिकार दे देना चाहिए ताकि विकास हो सके। जयसुख पटेल भारत को चीन जैसा बना देना चाहते हैं जबकि हम लोग चीन की फुलझड़ियों के विरोध में ही दीवाली बिता देते हैं।
लोकतंत्र के प्रति इतनी नफरत लेकर यह व्यक्ति घड़ी बनाने की इतनी बड़ी कंपनी कैसे चला रहा था? अपनी किताब में जयसुख पटेल ने लिखा है कि लोकतंत्र हमारे देश के लिए कैंसर है जिसका कोई इलाज नहीं है। जयसुख पटेल की यह किताब पढ़ी जानी चाहिए ताकि हम जान सकें कि पैसे वाले लोग लोकतंत्र को लेकर क्या सोच रहे हैं? उन्हें तानाशाही क्यों पसंद है? जो व्यक्ति खुद किसी कानून को नहीं मानता है, वह देश के लिए चाहता है कि देश में एक डिक्टेटर आए जो डंडे के ज़ोर पर सबको अनुशासन सिखाए। चुनाव न हो और 15-20 साल तक एक ही आदमी के पास सत्ता रहे ताकि ये बिना योग्यता के पुल की मरम्मत का काम लेते रहें भले ही उस पुल के टूट जाने से लोग मरते रहें। जयसुख पटेल पेज नंबर 76 पर लिखते हैं कि
माफ करना पर मुझे कहना पड़ रहा है कि हमारे देश में क्रिकेट के बाद सबसे ज़्यादा टाइम बर्बाद करते हैं तो वो है धार्मिक नेताओं, महात्माोओं, आचार्यों जैसे कि मोरारी बापू, स्वामी नित्यानंद, आशाराम बापू, राम रहीम, श्री श्री रविशंकर, बाबा राम देव, रमेश भाई ओझा। इनके प्रवचन औऱ सभा कितने दिन तक चलती रहती है औऱ लोगों का टाइम खराब होता रहता है।
इस किताब के प्रकाशन की तारीख 18 मई 2019 है। यानी मोदी सरकार के पांच साल बीत जाने के बाद जयसुख पटेल यह सब लिख रहे हैं।इन बातों को आप उस दौरान के व्हाट्स एप मैसेज और फेक न्यूज़ से जोड़ कर देख सकते हैं जब भारत की समस्याओं को दूर करने के नाम पर चीन की तरह डिक्टेटर का सपना देश भर में बांटा जाता था। विपक्ष को समस्या की जड़ बताया जा रहा था। जिस व्यक्ति को चुनाव समय की बर्बादी लगता है, वह व्यक्ति 140 लोगों के मर जाने से कितना ही दुखी होगा, यह उसके अभिनय क्षमता पर ही निर्भर करता है कि दुखी होने की कितनी नौटंकी कर सकता है। जयसुख पटेल ने कश्मीर की समस्या के समाधान को लेकर एक पूरा चैप्टर लिख डाला है। सुझाव देते हैं कि भारत सरकार को 35A, धारा 370 समाप्त कर देना चाहिए। कश्मीर में एक साल के लिए मीडिया पर सेंसरशिप होना चाहिए। ऐसा हुआ भी। लेकिन जयसुख पटेल यहां तक लिख देते हैं कि कश्मीर को दवाओं और भोजन की सप्लाई बंद कर देनी चाहिए। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 15 सुझाव देते हुए लिखते हैं कि
अगर हम इसमें से कुछ नहीं कर सकते तो हमें कश्मीर को छोड़ देना चाहिए। कश्मीर की प्रजा पाकिस्तान के साथ जाना चाहती हो या आज़ाद रहना चाहती हो वो उनके ऊपर छोड़ देना चाहिए। इससे सालाना मिलिट्री पर होने वाले करोड़ रुपये बच जाएंगे। इससे शहीद होने वाले जवान भी बच जाएंगे। करोड़ों रुपये देश के विकास के काम आएगा।
इस तरह की बात कोई लिख दे तो उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा हो जाएगा। लेकिन इन बातों से पता चलता है कि यह व्यक्ति अपने ही देश के नागरिकों के प्रति कितनी क्रूर सोच रखता है। उनके लिए दवा और भोजन तक बंद कर देने का सपना देखता है। भारत के लिए डिक्टेटर चाहता है।
यह कोई साधारण कंपनी नहीं है। ओरेवा दावा करती है कि वह घड़ी बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। इस कंपनी के प्रबंध निदेशक को चुनाव से चिढ़ है, लोकतंत्र से चिढ़ है। यह व्यक्ति घड़ी बेचकर भारत की जनता के लिए कैसे वक्त की कल्पना गढ़ रहा है, उससे सावधान होने की ज़रूरत है। यह कंपनी केवल घड़ी नहीं बनाती है। पंखे बनाती है, हीटर बनाती है, इलेक्ट्रिक बाइक बनाती है। लाइट स्विच वगैरह भी बनाती है। ज़ाहिर है काफी बड़ी कंपनी होगी।
लोकतंत्र के कारण ही जयसुख पटेल कंपनी बना पाए लेकिन पैसा आ जाने के बाद इसी लोकतंत्र को खत्म कर देने के उपाय अपनी किताब में बता रहे हैं। क्या पता तानाशाही होती तो इनकी कंपनी पर किसी और का अधिकार हो गया होता और ये डिक्टेटर के कहने पर उसी कंपनी में मालिक से मुलाज़िम हो गए होते। वैसे इतिहास भी यही बताता है कि तानाशाही लाने में कारपोरेट का भी सहयोग होता है।
पेज नंबर 31 पर लिखते हैं कि जब मैंने भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर अपने विचार प्रधानमंत्री मोदी को बताए तो प्रधानमंत्री ने पूछा कि भूमि अधिग्रहण कानून सरल क्यों नहीं होते। प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि नितिन गडकरी जयसुख पटेल से बात करें और भूमि अधिग्रहण कानून पर चरचा करें। यह लिखा है जयसुख पटेल ने।
जयसुख पटेल ने यह नहीं लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी से कब और कैसे मुलाकात हुई? मगर जिस तरह से लिखा है उससे यही लगता है कि जयसुख पटेल और प्रधानमंत्री मोदी के बीच संवाद हुआ था। यह आदमी भूमि अधिग्रहण कानून पर भारत के प्रधानमंत्री को राय दे रहा है।
मोरबी का झूलता पुल ढह गया। मरने वालों की संख्या 130 से 140 तक बताई जा रही है। कंपनी के मैनेजर ने कोर्ट में कहा कि भगवान की मर्ज़ी से टूट गया मगर यह पुल भगवान की मर्ज़ी से नहीं टूटा है। बल्कि इस सोच से टूटा कि कायदा कानून मानने की ज़रूरत नहीं, चुनाव की ज़रूरत नहीं, तानाशाही की ज़रूरत है। शुरूआती मीडिया रिपोर्ट और कोर्ट में पुलिस के बयान बता रहे हैं कि भयंकर किस्म की लापरवाही के कारण इतने लोग बेवजह मर गए। यह लापरवाही भगवान ने नहीं की है। क्या अफसरों और राजनेताओं की भूमिका कभी सामने आ पाएगी? जयसुख पटेल बिहार और बंगाल के होते तो अभी तक जांच एजेंसिया उनके संबंध वहां के नेताओं से साबित कर चुकी होंती और गोदी मीडिया की पहली हेडलाइन ही होती कि ममता या तेजस्वी से जयसुख के करीबी रिश्ते, ऐंकर सवाल पूछ रहा होता कि क्या इस्तीफा देंगे नीतीश या तेजस्वी
पुल के टूटने से लोगों की मौत भयावह घटना तो है ही, जयसुख पटेल के विचार भी कम ख़तरनाक नहीं है। हम ऐसी सोच से भरे लोगों से घिर गए हैं, जिनकी आस्था न तो लोकतंत्र में है न लोक में है। वे तानाशाही की पूजा करते हैं।इन्हें पता नहीं कि इसी देश में कितने करोड़ गरीब लोगों ने रात रात जागकर चुनावी रैलियों का इंतज़ार किया है। कई दिनों तक पैदल चल कर रैलियों में गए हैं और सत्ता बदल दी है। ये चुनाव न होते तो गरीब लोग अपने लिए इतना भी हासिल नहीं कर पाते, आप भी हासिल नहीं कर पाते। अगर कंपनी चलाने वाला, दौलत वाला चुनाव से चिढ़ता है तो इसका मतलब है कि वह गरीबों और गरीबों के सपनों से नफरत करता है। गुजरात में चुनावों का एलान हो गया है। चुनाव आयोग का कहना है कि तारीखों के एलान में कोई देरी नहीं हुई है। 2017 से पहले तक गुजरात और हिमाचल के चुनाव साथ ही होते थे, 2002 के अपवाद को छोड़ कर 1998 से 2012 तक यह सिलसिला चला था। 2017 में हिमाचल प्रदेश के लिए अलग एलान हुआ और गुजरात के लिए अलग। इस बार भी यह सवाल उठा तो चुनाव आयोग ने कहा कि देरी नहीं हुई है।
चुनाव आयोग को सफाई देना चाहिए कि दो राज्यों में चुनाव होना था तो एक की तारीख़ रोक कर क्यों रखी गई प्रधानमंत्री को योजनाओं का ऐलान करना था इसलिए रोका गया
इस बीच गुजरात में सरकारी पैसे पर चुनाव प्रचार किया जाता रहा
चुनाव आयोग ने कहा है कि वह सौ फीसदी निष्पक्ष संस्था है। मोरबी पुल से जुड़ी कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल तो चुनाव ही बंद करा देना चाहते हैं। जयसुख पटेल ने अपनी किताब में लिखा है कि चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट ED , CBI लोकतंत्र की रीढ़ हैं मगर राजनेता अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। बहरहाल चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी कहती है कि कांग्रेस बीजेपी एक है, कांग्रेस कहती है कि आम आदमी पार्टी और AMIM एक हैं बीजेपी की फ्रेंडली पार्टी है। कांग्रेस बीजेपी की एक फ्रेंडली पार्टी है, यह दोनों फ्रेंडली मैच खेलते हैं
यह चुनाव दिल्ली की तरह मुफ्त और वर्ल्ड क्लास शिक्षा, वर्ल्ड क्लास मोहल्ला क्लिनिक और मोरबी में जो इतना बड़ा भ्रष्टाचार सामने आया इसका गुस्सा इस बार के गुजरात चुनाव में दिखेगा. AAP और AIMIM बीजेपी की B team है। ये कांग्रेस का वोट काट हराने का काम करती है.
धनतेरस के दिन मध्य प्रदेश में बड़ा कार्यक्रम हुआ, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों साढ़े चार लाख गरीबों को पीएम आवास दिया गया। अब पता चल रहा है कि कई मृतकों के नाम पर घर स्वीकृत हो गये, तो कई गरीबों को मकान नहीं मिला लेकिन पैसे उनके खाते में आये और चले भी गये… ये भी पता लगा कि भ्रष्ट सिस्टम कैसे सरकारी योजनाओं के तहत बनने वाले कुएं को पी गया, शौचालय चट कर गया... घोटाले करने वालों कि हिम्मत देखिए, जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री आने वाले हों, उसमें भी हाथ साफ करने से डर नहीं लगता है। अनुराग द्वारी की रिपोर्ट
जिस राज्य में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में घोटाला हो जाए क्या वहां केंद्रीय जांच एजेंसियां जाकर पता करेंगी, वहां नहीं तो मोरबी पुल की मरम्मत से जुड़ी कंपनी के खाते खंगालेंगी?झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ED ने खनन से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए बुलाया है। हेमंत सोरेन का कहना है कि पूछताछ का नाटक कब तक चलेगा। सोरेन ईडी के बुलावे पर उसके दफ्तर नहीं गए, उन्होंने कहा कि पूछताछ ही क्यों, एजेंसी उन्हें गिरफ्तार ही कर ले। दूसरी तरफ तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सी आर ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर आज कुछ और सबूत पेश किए। मुख्यमंत्री का आरोप है कि बीजेपी उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रही है जिसके सबूत उनके पास हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि उनके पास सबूत हैं कि बीजेपी कथित रुप से करोड़ों रुपये का प्रलोभन देकर उनकी पार्टी तोड़ने का प्रयास कर रही है, कम से कम यही मौका है कि ED इसे लेकर पूछताछ करे। विपक्ष का आरोप भी रहा है कि जांच एजेंसियां बीजेपी के राज्यों में नहीं जाती हैं। वहां जब भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तब नहीं जाती हैं। यहां तो एक राज्य के मुख्यमंत्री आडियो रिकार्डिंग से लेकर जाने क्या क्या दिखा रहे हैं, कम से कम गोदी मीडिया ही सवाल पूछ ले।
कितने साल गुज़र गए। वायु प्रदूषण को लेकर राजनीति करते हुए और अलग अलग दावे करते हुए। हर साल नवंबर की हवा ज़हरीली हो जाती है। प्रदूषण के कारण नेता अजीब अजीब बयान देने लगते हैं। सब एक दूसरे की पोल खोल भी देते हैं और उनकी बातों में दम भी होता है मगर हवा साफ नहीं होती है। पचास फीसदी प्रदूषण दिल्ली में चलने वाली गाड़ियों से होता है। फिर से सुझाव आने लगे हैं कि स्कूल बंद कर देने चाहिए। लेकिन यह ज़हरीली हवा तो सभी के लिए ख़तरनाक है।
हम कब तक स्कूलों को बंद कर या कंस्ट्रक्शन रोक कर ख़ानापूर्ति करते रहेंगे।दिल्ली की इस हवा का हाल भी गंगा और यमुना की सफाई के जैसा हो गया है। सफाई को लेकर राजनीति तो हो जाती है, मगर नदियां साफ नहीं होती हैं। वायु प्रदूषण को लेकर अगले साल भी दिल्ली इसी तरह बहस करती रहेगी। लोगों के दम फूलते रहेंगे। आप और हम केवल देखते ही रहेंगे। इसलिए ब्रेक ले लीजिए।