जब तक फोन की फोरेंसिक जांच नहीं होगी तब तक पता नहीं लगेगा कि पेगासस साफ्टवेयर से हमला हुआ था या नहीं. जब दुनिया के 17 मीडिया संगठनों ने पेगासस मामले का पर्दाफाश किया तो उसके पहले दो तीन दर्जन फोन की फोरेंसिक जांच की गई. यह जांच एमनेस्टी इंटरनेशनल के लैब में की गई थी. अभी तक इस मामले में यही एक मज़बूत आधार बताया जा रहा था कि कुछ फोन की जांच से साफ्टवेयर के हमले का पता चलता है. लेकिन फ्रांस से आ रही ख़बर बता रही है कि यह मामला हवा-हवाई नहीं है.
फ्रांस की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसी ANSSI ने पुष्टि कर दी है कि मीडिया पार्ट के दो पत्रकारों के फोन में पेगासस था. इस सुरक्षा एजेंसी ने इन पत्रकारों के फोन की फोरेंसिक जांच की है. मीडिया पार्ट भी उन 17 मीडिया संगठनों में शामिल है जिन्होंने मिलकर पेगासस जासूसी कांड का पर्दाफाश किया है. इसके दो मतलब है. आतंक के नाम पर बेचे गए इस साफ्टवेयर का इस्तेमाल पत्रकार के फोन की जासूसी में हुआ है. दूसरा मीडिया पार्ट रफाल घोटाले के पर्दाफाश से भी जुड़ा है.
यह पहला ऐसा मामला है जब किसी सरकारी एजेंसी ने इस मामले में जांच की है और आरोपों को सही पाया है. यह बड़ी बात है क्योंकि इस प्रोजेक्ट से बाहर मीडिया संस्थानों के लिए संभव नहीं था कि इसकी पुष्टि कर सकें. सबके पास फोरेंसिक जांच की सुविधा नहीं है और न ही सूची. इसलिए स्वतंत्र तौर पर पुष्टि करना भी मुश्किल था. लेकिन फ्रांस की सुरक्षा एजेंसी ने पुष्टि कर दी है कि दो पत्रकारों के फोन की जासूसी की गई है. इस मामले में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के भी फोन नंबर संभावित लोगों की सूची में आया था. इस पर्दाफाश के बाद फ्रांस में जांच हो रही है और फ्रांस के राष्ट्रपति ने इज़रायल के प्रधानमंत्री से फोन पर बात भी की थी. मैक्रों ने इस ख़बर के आने के बाद अपना फ़ोन भी बदल दिया था. NSO अभी तक कहती रही है कि जासूसी के लिए संभावित लोगों की जो सूची सार्वजनिक की जा रही है वो सही नहीं है. भारत सरकार भी इस तरह की सूची को मनगढ़ंत मानती है और जांच से इंकार करती है.
फ्रांस की इस रिपोर्ट के बाद पेगासस जासूसी कांड को हवा हवाई बताना आसान नहीं रहेगा. उसकी इस जांच से इज़राल की मुश्किलें बढ़ सकती है. शक किया जा रहा था कि इज़रायल जांच के नाम पर ख़ानापूर्ति कर अपनी इस कंपनी को कहीं बचाने का प्रयास न करे लेकिन इस पूरे मामले में फ्रांस की यह जांच एक मज़बूत पक्ष बन कर उभरा है. अमेरीका की डेमोक्रेट पार्टी के चार सांसदों ने बाइडन प्रशासन से मांग की है कि NSO और इसके जैसी अन्य कम्पनियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाएं और इसे बंद कर दिया जाए. इज़रायल का भी काफी दांव पर लगा हुआ है. इज़राइल के रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पेगासस जासूसी सॉफ्टेवयर बनाने वाली कंपनी NSO के दफ्तर में छापे मारे हैं. NSO ने कहा है कि उसे भरोसा है कि कुछ भी ग़लत नहीं निकलेगा.
(यही नहीं अमरीका की नेशनल पब्लिक रेडियो NPR की ख़बर से अंदाज़ा मिलता है कि मामला कितना आगे बढ़ चुका है. NSO कंपनी के एक कर्मचारी ने NPR को बताया है कि कंपनी ने कई सरकारी क्लाइंट को निलंबित कर दिया है. किन देशों की सरकारें हैं ये नहीं बताया है. क्योंकि कंपनी इस बात की जांच कर रही है कि जासूसी हुई है या नहीं. यह कंपनी दावा करती है कि सिर्फ सरकारों को साफ्टवेयर बेचा जाता है वो भी इस शर्त पर कि इसका इस्तेमाल मानवाधिकार के उल्लंघन में नहीं होगा.
यह खबर इतनी हल्की नहीं है कि कंपनी जांच कर रही है तब तक उसने अपने क्लाइंट को निलंबित कर दिया है. NSO सिर्फ सरकारों को ही साफ्टवेयर बेचती है. आखिर इसी तरह जब पनामा पेपर्स में दुनिया के 350 पत्रकारों ने मिलकर पर्दाफाश किया था तब उसके आधार पर भारत को 20,000 करोड़ की अघोषित संपत्ति का पता चला ही. इसकी जानकारी इसी सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दी है तो अब यह कहना उचित नहीं लगता कि दुनिया भर के 80 पत्रकारों की खोज भारत को बदनाम करने के लिए हुई है.
पेगासस जासूसी कांड पड़ोसी की रसोई से एक मुट्ठी चीनी चुराने का मामला नहीं है. हमने कई बार बताने का प्रयास किया कि कोई आपके फोन को दूर से कंट्रोल करता है. फोन बंद करने पर भी कैमरा ऑन कर सारी बातें सुनने और देखने लगता है. आज वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना के सामने मामले का ज़िक्र किया और जल्द सुनवाई की मांग की. मुख्य न्यायाधीन ने कहा कि अगले सप्ताह काम की स्थिति को देखते हुए सुनवाई कर सकते हैं. द हिंदू के पूर्व मुख्य संपादक एन राम और संस्थापक एशियानेट, शशि कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. इनकी मांग है कि अदालत की निगरानी में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा या सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में पेगासस मामले की जांच हो.
लेखिका अरुंधति रॉय ने अपने एक लेख में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है. NSO कहती है कि वह सिर्फ आतंक के मामलों की जांच करने के लिए सरकारों को यह साफ्टवेयर बेचती है. अरुंधति राय का कहना है कि सरकार और उस कंपनी के बीच आतंक की परिभाषा क्या है कोई नहीं जानता है. यह ठीक सवाल है. जैसे गोदी मीडिया के डिबेट में अरुंधति रॉय को देशद्रोही बता दिया जाता है, क्या पता उसी तरह से महिला पत्रकारों को भी आतंकवादी बता कर कथित रुप से जासूसी की गई हो. दुनिया भर के संपादकों और पत्रकारों की संस्था इंटरनेशनल प्रेस इंस्ट्यूट IPI ने अमरीका विदेश सचिव एंथनी ब्लिंकेन से कहा है कि वे अपनी यात्रा के दौरान भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की खराब हालत को लेकर आवाज़ उठाएं कि 40 पत्रकारों के फोन की जासूसी हुई है और दैनिक भास्कर के दफ़्तर पर रेड हुई है.
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