आपका दिल्ली नाम के नरक में स्वागत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली नरक हो गई है. यहां का जीवन नरक से भी बदतर है. जब दिल्ली नरक हो जाए तो बाकी देश का क्या हाल होगा, बताने की ज़रूरत नहीं हैं. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र को नरक नहीं कहा है. नरक की चर्चा सिर्फ प्रदूषित हवा के संदर्भ में हुई है. लोकतंत्र में जब संविधान की धज्जियां उड़ने लगें तो वह भी नरक ही होता है अगर नरक होता है तो. यह तो सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि महाराष्ट्र में संविधान की धज्जियां उड़ी की नहीं हैं. 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं. इसी दिन भारत का संविधान तैयार रूप में स्वीकृत हुआ था. इसी दिन सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट के मामले में फैसला आएगा. 26 जनवरी 2016 को जब भारत संविधान के लागू होने के जश्न में डूबा था तब शाम सात बजकर 59 मिनट पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के कैबिनेट की सिफारिश पर दस्तखत कर रहे थे. सरकार के मंत्री और वकील राष्ट्रपति शासन के पक्ष में खूब दलीलें देते थे. हेडलाइन छपती थी लेकिन सात महीने बाद जुलाई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के फैसले को रद्द कर दिया. तब राष्ट्रपति और राज्यपाल के विवेकाधिकार और कैबिनेट के फैसले को सर्वोच्च बताया जा रहा था. पांच जजों की खंडपीठ ने यह फैसला दिया था. इसमें से एक जस्टिस खेहर ने कहा था कि जब राजनीतिक प्रक्रियाओं की हत्या हो रही हो तो कोर्ट मूकदर्शन बना नहीं रह सकता. राजनीतिक प्रक्रियाओं की हत्या किसने की थी आपको बताने की ज़रूरत नहीं है. ज़ाहिर है उस वक्त जो सरकार में थे उन्होंने की थी. उसी बेंच के एक जज आज उन तीन जजों की बेंच में हैं जिसके सामने महाराष्ट्र का मामला है. जस्टिस वी रमन्ना, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस अशोक भूषण की खंडपीठ के फैसले का सबको इंतज़ार है. अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि
राज्यपाल जे पी राजखोवा ने 14 जनवरी 2016 की तय तारीख के बाद भी 16 दिसंबर 2015 को विधानसभा की बैठक बुलाकर असंवैधानिक काम किया था. अदालत ने राज्यपाल के उस संदेश को भी रद्द कर दिया जो उन्होंने 9 दिसंबर के रोज़ विधानसभा को भेजा था. कहा कि राज्यपाल विधानसभा का एजेंडा तय नहीं कर सकते हैं. इसलिए 9 दिसंबर के बाद विधानसभा के तमाम फैसले अवैध घोषित हो जाते हैं. 9 दिसंबर से पहले की विधानसभा बहाल की जाती है. यानी कांग्रेस सरकार वापस अपने वजूद में आती है.
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ने विधानसभा की बैठक तय तारीख से एक महीना पहले बुला ली थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या इसका मतलब है कि जब भी राज्यपाल बोर हो जाएं तो वो उत्साह महसूस करने के लिए विधानसभा का सत्र बुला सकते हैं. क्या राज्यपाल का फ़ैसला ठोस संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित था या फिर उनकी सनक पर. आप संवैधानिक विवेकाधिकार का इस्तेमाल तभी कर सकते हैं जब वो किसी संवैधानिक सिद्धांत पर आधारित हो, यहां क्या संवैधानिक सिद्धांत था. क्या विधानसभा के सत्र को जल्द बुलाना आपकी विवेकाधीन शक्तियों में आता है?
अरुणाचल के पहले उत्तराखंड में भी राष्ट्रपति शासन को रद्द किया गया था. तब नैनिताल हाईकोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं होते जिनके फैसलों की समीक्षा नहीं हो सकती है. राष्ट्रपति और जज दोनों से भयानक ग़लतियां हो सकती हैं. जब राष्ट्रपति राजा नहीं हो सकता तो ज़ाहिर है राज्यपाल सम्राट नहीं हो सकता. उस फैसले को लिखने वाले थे जस्टिस के एम जोज़फ़ जिनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति कई दिनों तक अटकी रही. नैनिताल हाई कोर्ट के जस्टिस यू सी ध्यानी ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था जिसे केंद्र सरकार ने नैनिताल हाई कोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी थी कि राष्ट्रपति शासन के वक्त फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है. मगर 21 अप्रैल 2016 को जस्टिस जोज़फ़ और जस्टिस बिष्ट ने फ्लोर टेस्ट के आदेश को सही ठहराया और हरीश रावत की सरकार से कहा था कि 29 अप्रैल 2016 को बहुमत साबित करें. फिर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट गई लेकिन वहां से भी उसे राहत नहीं मिली. 10 मई 2016 को उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट के आदेश दिए गए. यानी सुप्रीम कोर्ट फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है और तारीख भी बता सकता है कि फ्लोर टेस्ट कब होगा. यही नहीं तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा कितने घंटे के लिए खुलेगी. सिर्फ दो घंटे तक के लिए विधानसभा को खोला गया था. महाराष्ट्र मामले में इसी बात को लेकर विवाद है. सरकार का पक्ष कहता है कि सुप्रीम कोर्ट फ्लोर टेस्ट के आदेश नहीं दे सकता. राज्यपाल का अपना अधिकार है. इस मामले में केंद्र सरकार एक बार मात खा चुकी है, क्या इस बार भी मात खाएगी, यह तो 26 नवंबर के फैसले से पता चलेगा. महाराष्ट्र मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की और से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी बहस कर रहे थे. विपक्ष की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल.
तुषार मेहता ने अजित पवार का पत्र पेश किया. इस पत्र में अजित पवार ने नेता विधायक दल का दावा किया है. इस पत्र में 54 विधायकों के हस्ताक्षर भी हैं. 11 अन्य विधायकों का भी समर्थन पत्र दिया गया. इस तरह बीजेपी ने 170 विधायकों के समर्थन का दावा दिखाया. तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल के सामने जो सामग्री थी उसी के आधार पर फैसला किया. राज्यपाल जांच नहीं बिठा सकते थे. जस्टिस खन्ना ने एक सवाल किया कि क्या मुख्यमंत्री आज बहुमत हैं, क्या फ्लोर टेस्ट कराया जाए. मुकुल रोहतगी ने कहा कि सवाल यह है कि फ्लोर टेस्ट कब हो. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. राज्यपाल को तय करना है. राज्यपाल के अधिकार की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती. जब उत्तराखंड मामले में अदालत कहती है कि राष्ट्रपति राजा नहीं है, उसके फैसले की समीक्षा हो सकती है तो क्या राज्यपाल राष्ट्रपति से भी ऊपर हैं. क्या अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले की समीक्षा ही नहीं की थी? मुकुल रोहतगी की दलील है कि क्या वाकई सुप्रीम कोर्ट फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं दे सकता है. फ्लोर टेस्ट कितने दिनों में होना चाहिए इसकी संवैधानिक प्रक्रिया क्या है. इस मामले में परंपराओं से तय होता आ रहा है.
अजित पवार के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि वे एनसीपी में हैं या नहीं ये मुद्दा कोर्ट में नहीं है. उन्होंने कहा कि वे एनसीपी में हैं और विधायक दल के नेता हैं. लेकिन एनसीपी ने तो विधायक दल के नेता पद से अजित पवार को हटा दिया है और इसकी सूचना राज्यपाल को दे दी गई है. यही नहीं अजित पवार ने जिन विधायकों को सूची दी थी उसमें से 53 वापस आ गए हैं. वो कह रहे हैं कि उन्होंने फडणवीस सरकार को समर्थन नहीं दिया था. उन्हें धोखे में रखा गया. अजित पवार के वकील का दावा है कि उनका पत्र कानूनी और संवैधानिक रूप से सही है तो फिर यह जानना ज़रूरी है कि संविधान की किस धारा के अनुसार उनका पत्र सही है. महाराष्ट्र सरकार के वकील क्यों यह दलील दे रहे थे कि समर्थन का पत्र देने के बाद अगर कोई स्थिति पैदा हुई है तो राज्यपाल देखेंगे. तो क्या यह सवाल नहीं पैदा होता कि राज्यपाल ने अभी तक क्या देखा है. विधायक खुलेआम कह रहे हैं कि समर्थन नहीं दिया तो क्या राज्यपाल को दोबारा नहीं पूछना था. क्या उन्हें नहीं देखना था कि विधायक दल के नेता पद से भी अजित पवार को हटा दिया गया है. विपक्ष की तरफ से कपिल सिब्बल ने बहस की. सिब्बल ने कहा कि शाम को प्रेस कांफ्रेंस हुई कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाएगी. सुबह पांच बजे राष्ट्रपति शासन हटाने की क्या इमरजेंसी थी. कोर्ट ने कहा कि यहां राष्ट्रपति शासन मुद्दा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि उनके पास समर्थन पत्र है. सिब्बल ने कहा कि उनके पास भी 154 विधायको का समर्थन पत्र है. सिब्बल ने 24 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट की मांग की. कहा कि वीडियो रिकार्डिंग हो और ओपन बैलेट से फ्लोर टेस्ट हो.
अभिषेक मनु सिंघवी एनसीपी की तरफ से बहस कर रहे थे. उन्होंने कहा कि क्या कोई कह रहा है कि वो अजीत पवार के साथ है. राज्यपाल ने बिना कवरिंग लेटर के मंज़ूर कर लिया. यह लोकतंत्र के साथ धोखा है. तुषार मेहता का सवाल वहीं टिका था कि क्या राज्यपाल को कोर्ट आदेश दे सकता है, क्या राज्यपाल को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने के आदेश दिए जा सकते हैं. फ्लोर टेस्ट का समय तय करना राज्यपाल का अधिकार है. अगर सरकार के पास समर्थन है तो वह फ्लोर टेस्ट से क्यों बच रही है, क्यों उसकी तरफ से फ्लोर टेस्ट की समय सीमा पर कुछ नहीं कहा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंगलवार को आएगा लेकिन अजित पवार के मामले में एक बड़ा फैसला सोमवार को ही आ गया. क्या अजित पवार को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 9 मामले में क्लिन चिट दी है. एंटी करप्शन ब्यूरो के डीजी परमवीर सिंह ने कहा है कि सिंचाई घोटाले से संबंधित 3000 टेंडर की जांच चल रही है. ये वो 9 टेंडर के मामले हैं जिनमें क्रिमिनल केस नहीं है. इन्हें बंद किया गया है. 28 नवंबर को हाईकोर्ट को अपडेट रिपोर्ट देनी है. जिनमें कुछ नहीं मिला उसकी जानकारी है. बाकी मामले चलते रहेंगे. यह सफाई है. ठीक एक साल पहले इसी एंटी करप्शन ब्यूरो ने हाईकोर्ट में हलफनामा दिया था कि अजित पवार और अन्य अधिकारी दोषी लगते हैं. अफसरों और ठेकेदारों के खिलाफ 24 एफआईआर दर्ज हुई है. अजित पवार की भूमिका की जांच हो रही है. सितंबर 2012 में भ्रष्टाचार के इन्हीं आरोपों के कारण अजित पवार को पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
तो क्या नैचुरली करप्ट पार्टी अब नैचुरल तरीके से करेक्ट होने लगी है. अजित पवार के खिलाफ महाराष्ट्र स्टेट कोपरेटिव बैंक मामले में 25000 करोड़ के घोटाले के मामले की जांच ईडी कर रही है. पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने एफआईआर दर्ज कराई है. अब वे उपमुख्यमंत्री हैं. उन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने उप मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी है.
प्रधानमंत्री सोमवार को झारखंड के डाल्टेनगंज में थे. मंच पर उनके साथ भानु प्रताप साही भी थे. बीजेपी ने भानु प्रताप साही की पार्टी का विलय कराया और इन्हें भवनाथपुर से टिकट दिया. प्रधानमंत्री ने इनका परिचय कराया और भानु प्रताप ने भी भारत माता की जय के नारे प्रधानमंत्री के साथ लगाए. भानु प्रताप साही ने 2019 में हलफनामा दायर किया था उसके अनुसार उन पर अलग अलग छह मामलों में चार्जशीट है. हत्या के प्रयास का मामला है. 2011 में भानु प्रताप साही ने 130 करोड़ के दवा घोटाले के मामले में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट के सामने सरेंडर किया था. जेल गए थे. दो साल जेल में रहे थे. भानु प्रताप साही को प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर देखा जा सकता है. उसी मंच से प्रधानमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार खत्म कर दिया गया है, यह भी सुना जा सकता है. भानु प्रताप साही मधु कोड़ा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. कोड़ा सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले सरयू राय को बीजेपी ने इस बार टिकट नहीं दिया है. 2015 और 2018 में ईडी ने भानु प्रताप साही की संपत्तियों को ज़ब्त करने के आदेश दिए थे.
अजित पवार और भानु प्रताप साही बता सकते हैं कि उन्हें अब कैसा लग रहा है. वो हंस रहे हैं या जनता हंस रही है. जो व्यक्ति प्रधानमंत्री के साथ मंच पर हो क्या उसके खिलाफ ईडी कार्रवाई करेगी? अब उस जांच का क्या होगा.
अगला वीडियो बंगाल से है. इस विषय से तो संबंध नहीं है मगर यह भी उसी लोकतंत्र के संकट से जुड़ा है जिसकी बात हम करने जा रहे हैं. इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है. लोकतंत्र में अगर उम्मीदवार और कार्यकर्ता सुरक्षित नहीं हैं तो फिर कुछ भी नहीं सुरक्षित है. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि नदिया ज़िले में बीजेपी के उम्मीदवार जय प्रकाश मजुमदार को किस तरह से मारा जा रहा है. जबकि वहां कैमरे हैं इसके बाद भी बीजेपी नेता को मारा जा रहा है. उन्हें लात से मारकर झाड़ियों में धकेल दिया जाता है. जय प्रकाश मजुमदार बंगाल बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं. मजुमदार का दावा है कि मारने वाले तृणमूल के कार्यकर्ता हैं. नादिया ज़िले के तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि यह गलत है कि उनके कार्यकर्ताओं ने मारा है. वे माहौल खराब कर रहे थे इसलिए स्थानीय लोगों ने मारा है. इसी करीमपुर से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार महुआ मोइत्रा लोकसभा चुनाव जीती थीं. जिनका भाषण बड़ा मशहूर हुआ था कि कैसे लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है. मजुमदार का कहना है कि बंगाल में लोकतंत्र खत्म हो गया है. चुनाव के समय उम्मीदवार के आस पास सुरक्षा होती है. मतदान केंद्र के आस पास चुनाव आयोग सुरक्षा बंदोबस्त करता है. इसके बाद भी यह घटना कैसे हो गई. क्या लोकल को इतना दुस्साहस आ सकता है कि वह एक उम्मीदवार को लात मारे. यह दुस्साहस कहां से आता है.