गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को आज सुबह दस बजे लखीमपुर थाने में पूछताछ के लिए हाज़िर होने का समन दिया गया था. विपक्ष के नेताओं को बिना किसी लिखित आदेश के हिरासत में लेने वाली यूपी पुलिस ने एक मंत्री के बेटे के प्रति जो समन का सम्मान दिखाया है, उसकी सराहना की जानी चाहिए क्योंकि आलोचना से कुछ फर्क नहीं पड़ रहा है. आशीष मिश्रा के सम्मान में नया सम्मान लग गया. मंत्री के बेटे को मिल रहे इस सम्मान का स्वागत कीजिए. आपको नहीं मिलेगा तो क्या हुआ, दूसरों के लिए खुश हुआ कीजिए.
कितने आदर के साथ पुलिस गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के घर पर समन चिपकाया जा रहा है. समन तो तभी चिपकाया जाता है जब इसे लेने वाला कोई नहीं हो. इसका मतलब है कि पुलिस को आशीष मिश्रा नहीं मिला होगा या घर में किसी ने समन रिसीव नहीं किया होगा. इसमें लिखा गया था कि आठ तारीख को सुबह दस बजे अपराध शाखा जो रिज़र्व पुलिस लाइन में है वहां व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित हों. गृह राज्य मंत्री और उनके बेटे कानून और समन का इतना सम्मान करते हैं कि सुबह दस बजे तक वहां नहीं पहुंचे. अपराध शाखा का यह कार्यालय मंत्री जी के घर से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूर है लेकिन दिन के साढ़े बारह बज गए आदरणीय आशीष मिश्रा नहीं आए. पत्रकार समय से पहले पहुंच गए. विशेष जांच दल SIT की टीम के प्रमुख डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल और लखीमपुर खीरी के एस पी विजय ढुल समय से पहुंचे यानी दस बजे पहुंच गए थे. डीआईजी अग्रवाल की कार समय से आकर लगी हुई थी. लेकिन मंत्री जी के पुत्र आशीष मिश्रा नहीं पहुंच सके थे. आशीष के रिश्तेदार अभिजात मिश्रा का बयान आया कि लखीमपुर खीरी में ही हैं. तब फिर समन क्यों नहीं स्वीकार किया और समय से अपराध शाखा के दफ्तर क्यों नहीं पहुंचे.
इस बीच कुछ और वीडियो हमें प्राप्त हुए हैं. मतलब ये वो वीडियो हैं जो जगत में पूर्व से ही प्रचलित हैं. ये वीडियो न आए होते तो आप अभी तक यही जान रहे होते कि किसानों के बीच आतंकवादी थे, किसान उपद्रवी थे. गोदी मीडिया के एंकरों ने जिस तरह से प्रोपेगैंडा का भूसा समाज में भर दिया है, अब मुश्किल है कि कोई सही को सही की तरह पेश कर दे. अमरीकी पत्रकार ग्लेन ग्रीनवाल्ट ने एक ट्वीट किया है, इसकी जानकारी अमरीका की है लेकिन इसका संबंध भारत से भी हो सकता है.
ग्लेन ने लिखा है कि अमरीका में सर्वे करने वाली एजेंसी के 2021 के सर्वे में मीडिया के प्रति लोगों का भरोसा और घटा है. सिर्फ 7 प्रतिशत अमरीकी व्यस्कों ने कहा है कि उन्हें अमरीका के अखबार, टीवी और रेडियो के समाचारों में भरोसा है. 29 प्रतिशत ने कहा है कि ठीक-ठाक भरोसा करते हैं. आज मीडिया की पहचान प्रोपेगैंडा से ज्यादा है, पत्रकारिता से कम. भारत में इसे गोदी मीडिया कहा जाता है. आपकी मेहनत के पैसे से गोदी मीडिया के एंकर मौज कर रहे हैं. बिना जवाबदेही की पत्रकारिता का यह स्वर्ण युग है. उगाही का नया नाम सरकार की वाहवाही है.
तो हम मीडिया के इस दौर में है,जिसमें एक बड़ी ख़बर को दूसरी जगह की बड़ी ख़बर से कम कर दिया जाता है. जैसे ही वीडियो सामने आ गए गोदी मीडिया ने किसानों को आतंकवादी बताने की अपनी ख़बरों का गियर बदल लिया.
वीडियो में आप देख सकते हैं कि सड़क पर प्रदर्शनकारी किसान जमा है. गहमागहमी खूब है लेकिन कोई बौखलाया हुआ नहीं लगता. उसी भीड़ में कुछ लोग इस सफेद कार को रास्ता देते हैं. उसी भीड़ मे एक गाड़ी आती है जिस पर बीजेपी का झंडा लगा हुआ है. कोई कार को छूता तक नहीं बल्कि उसे निकालने के लिए कुछ लोग आगे चलते हैं और कुछ साथ साथ. एक शख्स माइक लेकर घोषणाएं कर रहे हैं रास्ता देने के लिए. तो किसानों के उग्र होने, उनके बीच आतंकवादी होने की ख़बर अगर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा उड़ा रहे थे तो वे उड़ा सकते हैं. गनीमत है यह झूठ पकड़ा गया वर्ना कर्ज़ में डूबा इस देश का किसान आतंकवादी पहचान के साथ गोदी मीडिया के द्वारा मार दिया जाता.
कुछ वीडियो और आए हैं. हम दिन के घटनाक्रम के अनुसार आज की ख़बर पेश कर रहे हैं. अभी तक आशीष मिश्रा के अपराध शाखा में पहुंचने की ख़बर नहीं आई यानी साढ़े बारह बज चुके थे तो लगा कि क्यों नहीं दो और वीडियो दिखा दें. 19 सेकेंड का यह वीडियो. जीप के कुचलने के बाद जो भगदड़ मची है वो दिख रहा है और आखिर में गोली की आवाज़ सुनाई देती है.
हमने सोमवार के प्राइम टाइम में ही एक वीडियो दिखाया था जिसमें स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया और हमारे सहयोगी कमाल ख़ान से बात करते हुए एक चश्मदीद ने कहा था कि फायरिंग की आवाज़ उसने सुनी थी. पुलिस को मौके से दो कारतूस भी मिले हैं.
एक और वीडियो हमें मिला है. यह वीडियो 1 मिनट 26 सेकेंड का है. इस वीडियो में वही व्यक्ति है जिससे पुलिस माइक लेकर पूछताछ कर रही थी जिसका वीडियो आप प्राइम टाइम में पहले देख चुके हैं.
6 अक्तूबर के प्राइम टाइम में यह व्यक्ति बता रहा है कि अंकित दास के साथ आया था जिसकी फार्चुनर है. अंकित दास गाड़ी में थे. इसने बताया कि फार्चुनर के सामने की जो गाड़ी थी वह सब पर चढ़ाते हुए जा रही थी. यह बोल रहा है कि थार तो भैया के साथ थी. अब साफ नहीं कि भैया कौन हैं.
अब हम जो एक मिनट 26 सेकेंड का वीडियो दिखाने जा रहे हैं, उसमें भी यही व्यक्ति है और किसान के हाथ में वही माइक है जिससे पुलिस पूछताछ कर रही थी. यह व्यक्ति बता रहा है कि फार्चुनर कोई सत्यम त्रिपाठी चला रहे थे. इस वीडियो में देखेंगे कि कार से उतरे किसी को पकड़े व्यक्ति को लेकर आराम से पूछताछ कर रहे हैं. भीड़ हिंसक नहीं है. इससे किसानों का दावा सही लगता है प्रतीत होता है कि उन्होंने ही कई लोगों को पकड़ कर पुलिस को सौंपा है.
जीप जली है तो भीड़ गुस्से में आई ही होगी लेकिन बहुत सारे लोग वहां कानून व्यवस्था के साथ सहयोग भी करते देखे जा सकते हैं. जिन लोगों को पकड़ा गया है उन्हें लेकर लोग हिंसक नहीं हैं.
यह व्यक्ति जिसका वीडियो आपने देखा, इसे पुलिस को सौंपते हैं. व्यक्ति ट्राली में बैठा है और भीड़ स्थिर है. संयम में है.अगर भीड़ होश खो चुकी होती तो पुलिस उसी जगह पर इस व्यक्ति से पूछताछ नहीं कर रही होती. पूछताछ करने वाले गोला के सर्किल अफसर संजय नाथ तिवारी हैं.
इस व्यक्ति ने बताया कि फार्चुनर चलाने वाले व्यक्ति का नाम सत्यम त्रिपाठी है जो इलाहाबाद का रहने वाला है. लेकिन FIR में किसी सत्यम त्रिपाठी का ज़िक्र नहीं है. यह जो घिरा हुआ है उसने पुलिस अफसर संजय नाथ तिवारी से अपने बारे में बता रहा था कि लखनऊ का रहने वाला है. यह व्यक्ति इस वक्त कहां है, जांच में इससे क्या पता चला है, इसकी जानकारी हमें नहीं है. जो नया वीडियो है उसे अगर ध्यान से देखेंगे कि काली फार्चुनर भी टक्कर मारती हुई दिखाई दे रही है. इस कार को संदेह का लाभ दिया जा सकता है लेकिन ध्यान से देखने पर संदेह गहरा हो जाता है.
फ्रेम दर फ्रेम रोक रोक कर देखिए. फार्चुनर के फ्रेम में प्रवेश करने से पहले देखिए यहां पर एक व्यक्ति गिरा हुआ है. अब फार्चुनर करीब आ गई है. आगे की दायें पहिये और गिरे हुए व्यक्ति के बीत दूरी मिट जाती है. लगता है कि फार्चुनर उसे कुचल कर जा रही है. जांच से और स्पष्ट हो सकता है कि नीचे गिरा हुआ यह व्यक्ति बच गया या गिरने के बाद कुचला गया.
FIR में फार्चुनर का नंबर दर्ज है लेकिन चालक के तौर पर सत्यम त्रिपाठी का नाम दर्ज नहीं है जिसका नाम इस वीडियो में यह व्यक्ति ले रहा है. इसका सामाजिक अध्ययन भी करना चाहिए कि मंत्रियों के ख़ाली बैठे बेटों की कार में चलने के लिए इतने नौजवान कहां से आ जाते हैं. इतने दोस्त कहां से उपलब्ध हो जाते हैं?
फिर मुझे छह अक्तूबर के इस आलीशान वीडियो का ख्याल आया. मंत्री जी अपने पद पर हैं तो हर दिन इसी तरह मंत्रालय आते ही होंगे. कभी आप प्रधानमंत्री मोदी से पूछिएगा, लोकतंत्र की मां, इंगलिस में मदर, भारत में क्या यही संवैधानिक नैतिकता रह गई है, कि इनके घर पर पुलिस सम्मन चिपका गई है और बेटा पुलिस के सामने हाज़िर तक नहीं होता है और मंत्री जी अपने पद पर बने हुए हैं और गृह मंत्रालय में आना जाना कर रहे हैं. क्या इससे लोकतंत्र की मां इंगलिस में मदर, भारत के आम जन को कानून व्यवस्था में भरोसा मज़बूत होगा या हिल जाएगा.
यूपी की पुलिस जो प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले को चेन्नई से गिरफ्तार कर लाती है वह एक मंत्री के लिए कानून की प्रक्रिया और मानवाधिकार के तमाम पहलुओं का पालन करती हुई वाकई भारत के लोकतंत्र की शान बढ़ा रही है. शान तो ये लोग भी बढ़ा रहे थे जिन्होंने यह पोस्टर लगा दिया.
इस पोस्टर को अब हटा लिया गया है लेकिन कानपुर में लगे इस पोस्टर का ज़िक्र ज़रूरी है क्योंकि इसी से पता चलता है कि मुआवज़े का राजनीतिक महत्व कितना बढ़ गया है. यह पोस्टर वैश्य समाज की तरफ से लगाया गया है. इसमें छपे सातों चेहरे के नाम के अंत में गुप्ता लिखा है. इन्होंने मनीष गुप्ता की हत्या के बाद मुआवज़े और सरकारी नौकरी देने की घोषणा के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार प्रकट किया है. इस पोस्टर में मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक की भी तस्वीर है. यह पोस्टर हमारी राजनीतिक और नागरिक चेतना के पतन का स्वर्णिम उदारहण है.
28 सितंबर को इस होटल में मनीष गुप्ता की हत्या कर दी गई. आप इस सीसीटीवी फुटेज में देख भी रहे हैं कि किस तरह मनीष गुप्ता को कमरे से निकाला जा रहा है. प्रतीत होता है कि अस्पताल ले जाने से पहले ही मनीष के प्राण पखेरु उड़ चुके हैं. इन पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज है. और यहां ये सबूत मिटाते देखे जा रहे हैं. फिर भी दस दिन तक गिरफ्तारी नहीं हुई है. सोचिए पोस्टर लगाने वाले वैश्य समाज के सात लोगों ने यह नहीं सोचा कि मनीष की हत्या का आरोप उसी सरकार की पुलिस पर है जिसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं और यह पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं है.
हत्यारा फरार है, और वैश्य समाज मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त कर रहा है कि चालीस लाख का मुआवज़ा दिया है. अपने बूते कारोबर से संपत्ति अर्जित करने वाला यह समाज न जाने राजनीतिक दलों को कितने सौ करोड़ चंदा दे चुका होगा, इसकी आर्थिक शक्ति का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है, इस समाज ने कितने स्कूल कॉलेज खोल कर समाज को दान कर दिए होंगे लेकिन चालीस लाख के मुआवजे की कृपा का भी कम राजनीतिक महत्व नहीं है. पोस्टर लगाने वाले संजय गुप्ता खुद को बीजेपी का समर्पित नेता बताते हैं.
इस तरह से आप दो चीज़ें देखते हैं. कानून की प्रक्रिया किस तरह से ध्वस्त हो चुकी है और लोगों की नज़र में उस ध्वस्त कानून व्यवस्था को लेकर किस तरह की समझ है. इसी से मुझे सबक मिलता है कि मैं क्यों अभी तक दुनिया का अकेला ज़ीरो टीआरपी एंकर बना हुआ हूं क्योंकि मैं व्यवस्था के ध्वस्त होने की बात बता रहा हूं और नागरिक समाज मुआवज़े का जश्न मना रहा है.
आप जल्दी ही यह दिन देखने वाले हैं कि हत्या करने वाला ही सरकार से पहले मुआवज़ा भेज देगा और किसी समाज के सात लोग पोस्टर लगा देंगे कि मुआवज़ा देने के लिए हत्यारे का आभार. वैसे भी पेट्रोल इतना महंगा हो गया है कि आपकी जेब में पैसे नहीं है. पर्स खाली होगा तो मेरी इन बातों को लिखकर पर्स में रख लिया कीजिए. बहरहाल, यहां तक लिखते लिखते सुप्रीम कोर्ट से खबर आने लगी. कोर्ट ने साफ शब्दों में कई तरह से कह दिया कि मंत्री के बेटे के साथ विशेष बर्ताव किया जा रहा है.
कई बार सोचता हूं कि घटना के कई दिन बाद आशीष मिश्रा जब इस वीडियो को देख रहा होगा तो क्या सोच रहा होगा, कि गलती हो गई, अब जब इस वीडियो को देख रहा होगा तो क्या सोच रहा होगा कि पापा गृह राज्य मंत्री हैं, केंद्र और सेंटर में अपनी पार्टी की सरकार है, मैनेज हो जाएगा. पुलिस अफसर से भी उम्मीद करना दबाव डालना है कि वह गृह राज्य मंत्री के बेटे के खिलाफ जांच करते हुए कर्तव्य और निष्ठा का परिचय देगा.
आज सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की. चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी न होने पर नाराजगी जताई और कहा कि हम जिम्मेदार सरकार, व्यवस्था और पुलिस की उम्मीद करते हैं. पूरे बेंच की राय है कि हत्या के आरोपी के साथ अलग व्यवहार क्यों हो रहा है. क्या पुलिस हत्या के अन्य आरोपी के साथ इस तरह का बर्ताव करती है. पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर क्या संदेश देना चाहती है. सु्प्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि सीबीआई की जांच भी सटीक उपाय नही है, आप जानते हैं क्यों.
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच की यह कितनी गंभीर टिप्पणी हैं. सीबीआई प्रधानमंत्री के अधीन आने वाले कार्मिक विभाग के तहत आती है. प्रधानमंत्री की कृपा से गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा मंत्री बने हुए हैं. तब भी जब उनका बेटा समन का पालन नहीं करता है तो दूसरा समन जारी होता है. गृहमंत्रालय की यही ताकत देखना चाहते थे न आप, तो अब दिख रहा है तो क्यों नहीं देख रहे हैं. क्या इस दृश्य को देखते हुए लखीमपुर खीरी के आम लोगों में भरोसा होगा कि वे सबूत लेकर पुलिस के पास जाएंगे. गवाही देंगे. या वे डर कर खुद ही सबूत मिटाने लग जाएंगे. अदालत समझती है तभी तीन जजों की बेंच को कहना पड़ा कि डीजीपी सुनिश्चित करें कि सबूत सुरक्षित हों.जब तक कोई अन्य एजेंसी इसे नहीं संभालती है तब तक सभी को अंतरिम रुप से नष्ट न करें.
कोर्ट के सवालों से साफ है कि पुलिस आशीष मिश्रा को लेकर किस तरह का बर्ताव कर रही है और सीबीआई पर भी कितना ही भरोसा किया जा सकता है. इंसाफ कहां मिलेगा. क्या अब सबको मुआवज़े को ही इंसाफ समझ लेना होगा. यूपी सरकार की तरफ से एक स्टेटस रिपोर्ट भी दाखिल हुई है. आशीष मिश्रा आज नहीं बल्कि शनिवार को ग्यारह बजे अब पेश होंगे. अगर वो पेश नहीं होंगे तो कानून अपना काम करेगा.
आशीष मिश्रा को दोबारा समन भेजा गया. समन सम्मान पत्र हो गया है. अब वे चाहें तो शनिवार 11 बजे हाज़िर हो सकते हैं. रविवार से शुक्रवार आ गया पुलिस मंत्री के बेटे से पूछताछ नहीं कर सकी. गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा की धाक कम नहीं है. वे इस विवाद के बीच गृह मंत्रालय भी गए और अब लखनऊ भी. सोचिए जिस राज्य की पुलिस मंत्री के बेटे की जांच कर रही है मंत्री जी राजधानी में हैं.
हमने शुरूआत में पत्रकारिता की गिरती विश्वसनीयता का जिक्र किया था. आज ही फिलिपिन्स की पत्रकार मारिया रेसा और रुस के पत्रकार दिमित्री मुरातोव को नोबेल शांति पुरस्कार मिला है. अभिव्यक्ति की आज़ादी की लड़ाई के लिए. आज भारत के गोदी मीडिया को भी पुरस्कार मिला है. सु्प्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की फटकार मिली है. एक टीवी चैनल ने गलत खबर चला दी कि चीफ जस्टिस ने लखीमपुर के पीड़ित परिवारों से मुलाकात की है. बाद में माफी मांग ली. इसी चैनल की एक एंकर ने राहुल गांधी को गाली दे दी थी. बाद में माफी मांग ली. कोर्ट ने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं लेकिन इस तरह की रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए.