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This Article is From Jan 05, 2020

कितने सपने कितने अरमां लाया हूँ मैं...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 05, 2020 11:08 am IST
    • Published On जनवरी 05, 2020 11:08 am IST
    • Last Updated On जनवरी 05, 2020 11:08 am IST

मित्रों आज मैं दोपहर थोड़ी देर के लिए पुस्तक मेला जा रहा हूँ. अपनी किताब के लिए नहीं बल्कि और भी किताबों के लिए. मैंने एक नई चीज़ शुरू की है. मैं जब भी राजकमल जाता हूँ वहाँ आए पाठकों को अपनी समझ से दूसरी अच्छी किताबें बताता हूँ. मेरे फ़ेसबुक पर कई प्रोफ़ेसर हैं. उनकी टाइम लाइन से यही लगता है कि दुनिया में एक ही किताब लिखी गई है और वो प्रोफ़ेसर साहब ने ही लिखी है. उसके बाद नहीं लिखी गई. मैं ऐसे अच्छे और काबिल लोगों को ग़ैर ज़रूरी और कम ईमानदार मानता हूँ. वे दूसरी किताबों के नाम ही नहीं लेते हैं.

हम सभी को ज्ञान साझा करना चाहिए. तो मैं दूसरे लेखकों की किताबों के लिए आ रहा हूँ. बक़ायदा माइक लेकर वहाँ पाठकों को ओम प्रकाश बाल्मीकि की किताब पढ़ने को कहा था. ये काम अगर आप हिन्दी के किसी और लेखकों से कह दें कि वे पाठकों को मदद करें कि क्या ख़रीदें तो कर ही नहीं पाएँगे. क्योंकि ज़्यादातर दूसरों की किताब का नाम ही नहीं ले सकेंगे. अफ़सोस. जीवन की असुरक्षा तभी दूर होगी जब आप अपनी असुरक्षा से निकलेंगे.

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राजकमल प्रकाशन ने अपने अड्डे को जलसा घर का नाम दिया है. हॉल नंबर 12-A स्टॉल नंबर 255-280 . उसके बाद अपने अंग्रेज़ी के प्रकाशक दि स्पीकिंग टाइगर के स्टॉल पर जाऊँगा. हॉल नंबर 10, स्टॉल नंबर -103-107 वहाँ मेरी अंग्रेजी वाली किताब the free voice है. मेरी किताब तो आपने मेले से पहले ही ख़रीद ली है लेकिन कई लोगों ने कहा कि दस्तख़त चाहिए. तो ठीक है. आइये लेकिन मेरे लिए कुछ न लाइये. न पर्चा न कैलेंडर न गुलाब. बस आप.

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मैं लंबी बातें नहीं कर पाऊँगा. कई लोग हज हज में भी समस्याएँ बताने लगते हैं जबकि उस समय ध्यान लगातार बंटता रहता है. बाद में ख़ुद भी निराश होते हैं और मैं भी दुखी होता हूँ कि उन्हें मेरी वजह से तकलीफ पहुँची. ये मैं अपना अनुभव बाँट रहा हूँ. लोग समस्याओं की पूरी फाइल पकड़ा देते हैं जिन्हें लेकर मेले में चलना असंभव हो जाता है. आपका स्नेह चाहिए. वो काफ़ी है. आपने कितना तो दिया है. अब इस ख़ज़ाने से नए और मुझसे भी अच्छे पत्रकारों को दीजिए.

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मेरे रिटायरमेंट का टाइम आ रहा है तो थोड़ा ठेले पर अकेले चाय पीने की आदत डालनी है. काश मेरी एक बात दुनिया मान लेती कि भारत का कोई भी टीवी चैनल नहीं देखती. अपने घरों से कटवा देती. पर कोई बात नहीं. मैंने कम से कम कहा तो आपसे. फेल हो गया तो हो गया. हम कौन सा आई आई टी टॉपर थे. वैसे बहुतों ने टीवी देखना बंद कर दिया. उनका शुक्रिया.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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