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This Article is From May 16, 2018

विपक्ष में बैठना चाहिए कांग्रेस को, जनादेश भाजपा के लिए है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 16, 2018 14:55 pm IST
    • Published On मई 16, 2018 14:18 pm IST
    • Last Updated On मई 16, 2018 14:55 pm IST
मेरी राय में कांग्रेस को सरकार बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. कर्नाटक में जनादेश उसके ख़िलाफ़ आया है. पार्टी को यह स्वीकार करना चाहिए. ख़बर आ रही है कि कांग्रेस और जे डी एस संयुक्त रूप से राज्यपाल से मिलने जा रहे हैं. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा है कि देवेगोड़ा से फोन पर बात हुई है और वे कांग्रेस का ऑफर स्वीकार कर चुके हैं. यह एक तरह से अनैतिक होगा. जिस दिन जो पार्टी जीती है, जश्न मना रही है, बहुमत के करीब है, उसे ही सत्ता का मौका मिलना चाहिए. सरकार बनाने के लिए बीजेपी को खेल खेलने देना चाहिए ताकि पता चले कि वह कैसे और कहां से आंकड़े लाती है.

कांग्रेस के दिमाग़ में भले ही गोवा की तस्वीर होगी जब दूसरे नंबर पर होकर बीजेपी ने सरकार बना ली थी और अकेली बड़ी पार्टी और पहले नंबर पर होने के बाद भी कांग्रेस को बुलावा नहीं आया था. बीजेपी ने एमजीपी और गोवा फारवर्ड पार्टी से मिलकर सरकार बना ली थी. कांग्रेस को 18 सीट थी, बहुमत से 3 सीट दूर थी. बीजेपी के पास 13 सीटें थीं, बहुमत से 8 सीट की दूरी थी. मेघालय और मणिपुर में भी यही हुआ था. मणिपुर में कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी. बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं. इसके बाद भी मणिपुर में भाजपा की सरकार बनी. इधर-उधर से समर्थन जुटा कर बीजेपी ने दावा कर दिया. सरकार भी बना ली. मेघालय भी यही हुआ था. कांग्रेस बड़ी पार्टी होकर भी सरकार नहीं बना सकी. बीजेपी ने दो सीट हासिल कर नेशनल पिपुल्स पार्टी की सरकार बनवा दी.

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बिहार में बीजेपी ने जनादेश के खिलाफ जे डी यू से हाथ मिलाकर सरकार बना ली, या जेडीयू ने बीजेपी से हाथ मिलाकर सरकार बना ली. कायदे से बीजेपी को नए जनादेश का इंतज़ार करना था या नीतीश कुमार को भी नए जनादेश का रास्ता चुनना था. राजद बड़ी पार्टी होकर भी सत्ता की दावेदारी से बाहर कर दी गई. यह सब बीजेपी ने किया है. उसके पास कांग्रेस की दावेदारी की आलोचना का नैतिक अधिकार नहीं है. इसके बाद भी कांग्रेस को विपक्ष में बैठना चाहिए. जिस पार्टी को जनता स्वीकार नहीं कर रही है, उसे जनता पर भी बहुत कुछ छोड़ देना चाहिए.

कांग्रेस के पास सरकार बनाने की क्षमता नहीं है. अगर बीजेपी इस खेल में उतर गई तो सरकार उसी की बनेगी. इससे अच्छा है पीछे हट जाना. जनता ने जिस पार्टी की सरकार का सोच कर वोट किया है, उसे मौका मिलना चाहिए. यह बीजेपी पर निर्भर करता है कि वह सत्ता प्राप्ति के लिए क्या आदर्श कायम करती है. आदर्श कायम करने चलेगी तो फिर कभी सरकार ही नहीं बना पाएगी. तो क्या यह खेल हमेशा चलेगा. किसी को तो आगे आकर अपना नैतिक बल दिखाना होगा.

राहुल गांधी लगातार चुनाव हार रहे हैं. उनकी पार्टी ने चार साल का वक्त गंवा दिया. पार्टी को नए सिरे से खड़े करने का शानदार मौका मिला था. न तो पार्टी खड़ी हो सकी न ही पार्टी मुद्दे खड़ा कर सकी है. न ही जनता ने उन्हें विकल्प के तौर पर स्वीकार किया है. इसका मतलब है कि जनता उनसे कुछ ज्यादा चाहती है. राहुल को इसका प्रयास करना चाहिए न कि पिछले दरवाज़े से सरकार बनाने का प्रयास.

फिलहाल कांग्रेस में वह सांगठिक क्षमता और जुनून नहीं है कि हार को जीत में और जीत को बड़ी जीत में बदल दे. इस क्षमता को हासिल करने का यही मौका है कि इधर उधर से जीत का रास्ता खोजने की जगह परिश्रम का लंबा रास्ता चुने. कांग्रेस को खटना चाहिए, तपना चाहिए न कि किसी के बाग़ से पके हुए फल तोड़ कर खाना चाहिए. सरकार बनाने के खेल में बीजेपी को मात देना मुश्किल काम है. अगर नहीं बना सकी तो कांग्रेस को और शर्मिंदा होना पड़ेगा. कर्नाटक में सरकार पर पहला हक भाजपा का है. भले ही भाजपा ने किसी और राज्य में किसी और को उसका पहला हक नहीं लेने दिया. लेकिन क्या भाजपा सरकार बनाने के लिए आदर्शों का पालन करेगी? क्या वह नंबर जुटाने के लिए गेम नहीं करेगी?

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