अंतराष्ट्रीय दाम कम तो देश में पेट्रोल महंगा क्यों?

पेट्रोल को सस्ता करने का एक ही तरीका है, देश में आम चुनाव घोषित हो जाएं, असम में चुनाव होने वाले हैं, वहां पर उत्पाद शुक्ल में पांच रुपये की कटौती कर दी गई है

पेट्रोल और डीज़ल के दाम दस दिन से लगातार बढ़ते जा रहे हैं. मध्य प्रदश में प्रीमियम पेट्रोल सौ रुपये लीटर हो गया है. अनुपपूर शहर में तो सामान्य पेट्रोल 100 रुपये लीटर हो गया है. भारत में अब ऐसे कई शहर हैं जहां पेट्रोल 98 से 100 रुपये लीटर बिक रहा है. उपभोक्ता को समझ नहीं आ रहा है कि ये दाम अंतरराष्ट्रीय कारणों से बढ़ रहे हैं या उन कारणों से जिसका पता नहीं चल रहा है. पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते दाम से हर दिन लोगों की कमाई घटती जा रही है. 2017, 2018 के बाद यह तीसरा मौका है जब पेट्रोल की कीमतें लंबी छलांग रही हैं. फ्लैशबैक से आपको बताना चाहेंगे कि आपने 2017 और 2018 में भी इसी तरह ज़्यादा दाम दिए थे. एपिसोड पुराना है मगर देखने से याद आएगा कि कैसे धीरे धीरे आप अधिकतम स्तर पर एडजस्ट होते जा रहे हैं. अब तो हालत यह है कि दस रुपये कम हो जाए तो गोदी मीडिया कहेगा कि पेट्रोल दस रुपये हुआ सस्ता, 90 रुपये लीटर मिल रहा है पेट्रोल. जून 2018 में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें अधिकतम स्तर पर चली गईं थीं. काफी हाहाकार मचा था. फिर छह महीने बाद अक्तूबर 2018 में पेट्रोल डीज़ल की कीमतें अधिकतम हो गईं और अब तो सारे रिकार्ड टूट चुके हैं. प्राइम टाइम के इस पुराने एपिसोड में हम समझने का प्रयास कर रहे थे कि जून 2018 में दाम अगर दाम अंतरराष्ट्रीय कारणों से बढ़ रहे थे तब सितंबर 2017 में क्यों बढ़ रहे थे? तब तो कच्चे तेल की कीमत काफी कम थी. इसमें महाराष्ट्र के परभणी का ज़िक्र आएगा तब वहां पर मुंबई से अधिक 81 रुपये लीटर पेट्रोल था, आज वहां 100 रुपये से अधिक है.

'17 सितंबर 2017 को महाराष्ट्र के 21 जिलों में पेट्रोल का दाम 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गया था. परभणी, नांदेड़, यवतमाल, गढ़चिरौली, भंडारा, औरंगाबाद में 80 रुपये लीटर से अधिक था. परभणी में 17 सितंबर को 81.31 रुपये प्रति लीटर था. 22 मई को 86.35 रुपये प्रति लीटर हो गया. अब देखते हैं कि सितंबर 2017 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव क्या था. मई 2018 में कच्चे तेल का भाव क्या है. उस हिसाब से पेट्रोल का भाव क्या है. हम परभणी को ही अपना सैंपल मानते हैं. सितंबर 2017 में कच्चे तेल की कीमत थी 54.52 डॉलर प्रति बैरल तब परभणी में एक लीटर पेट्रोल का दाम था 81.31 रुपये. मई 2018 में कच्चे तेल की कीमत है 79 डॉलर प्रति बैरल. 22 मई को परभणी में एक लीटर पेट्रोल का दाम है 86.35 रुपये. कहने का मतलब है कि सितंबर 2017 में आज की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत 24.48 डॉलर प्रति बैरल कम थी. इसके बाद भी दाम तब भी 80 पार था, अब भी 80 पार है. फर्क यह है कि इस बार यह 90 को छूता नजर आ रहा है. 22 मई को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 78 डॉलर प्रति बैरल था. भारत में कभी तेल इतना महंगा नहीं हुआ था. आज भी पेट्रोल 30 पैसे, जबकि डीजल की कीमतों में 26 पैसे की बढ़ोतरी हुई है. इसी के साथ दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 76.87 हो गई है, जबकि डीजल 68.08 हो गया है. पटना में पेट्रोल 82.35 पैसे प्रति लीटर और डीजल 72.76 रुपये प्रति लीटर है. मुंबई में 84.70 रुपये प्रति लीटर और डीजल 72.48 प्रति लीटर महंगा हो गया है.'

तो फ्लैशबैक में आपने जाना कि सितंबर 2017 में पेट्रोल के दाम 80 रुपये लेकर 87 रुपये प्रति लीटर हो चुके थे. जून 2018 में मुंबई में पेट्रोल 84 रुपये 70 पैसे लीटर हो गया था. 18 फरवरी 2021 के दिन मुंबई में पेट्रोल 25 पैसा महंगा हो गया और एक लीटर पेट्रोल का दाम 96 रुपये हो गया. चेन्नई में 23 पैसा बढ़ कर 91.68 रुपये हो गया. कोलकाता में 90.78 रुपये हो गया. दिल्ली में 89.54 रुपये हो गया. मध्यप्रदेश में 26 पैसा बढ़ कर 97.56 रुपये हो गया.

पेट्रोल को सस्ता करने का एक ही तरीका है. देश में आम चुनाव घोषित हो जाएं. असम में चुनाव होने वाले हैं वहां पर उत्पाद शुक्ल में पांच रुपये की कटौती कर दी गई है. इस मानवीय फैसले के बाद भी वहां पेट्रोल 86 रुपये 44 पैसे लीटर मिल रहा है. दिल्ली से ज़्यादा महंगा है. 2017 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय 19 तक दाम ही नहीं बढ़े जबकि पूरे देश में दाम बढ़ रहे थे. इस बार तेल के दाम बढ़ने का एक नया कारण लांच हुआ है. यह कारण लगता है नया है और अगर यह कारण नहीं होता तो पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ते ही नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु में तेल और गैस सेक्टर की योजनाओं की आधारशिला रख रहे थे. इस साल वहां चुनाव होने वाले हैं. यहां पर प्रधानमंत्री ने बताया कि क्या भारत जैसे किसी प्रतिभाशाली देश को ऊर्जा की ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर रहना चाहिए?

तो इस बार दाम इसलिए बढ़े कि भारत जैसे प्रतिभाशाली देश ने अतीत में काम नहीं किया, इसके कारण मिडिल क्लास पर भार बढ़ा है. 70 साल में कुछ नहीं हुआ वाला लॉजिक. इस लॉजिक के बाद तो लोग एक लीटर पेट्रोल के 200 रुपये दे देंगे. बहुत से देश पेट्रोल डीज़ल के आयात पर निर्भर रहते हैं. क्या वहां भी भारत के जितना महंगा है? अतीत की सरकारों को कारण बताया जा रहा है क्या इसलिए कि अब बार-बार अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का बहाना चल नहीं पा रहा है? क्या जिन देशों में 80 फीसदी आयात होता है वे भारत की तरह प्रतिभाशाली नहीं हैं?

2000-01 में भारत पेट्रोलियम उत्पादों की खपत का 75 प्रतिशत आयात करता था. 2016-19 में 95 प्रतिशत हो गया. इस वक्त अपनी खपत का 84 फीसदी आयात करता है. यानी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में तो आयात बढ़ता ही रहा. कम नहीं हुआ. अभी हम एथेनॉल की भी बात करेंगे. लेकिन कुछ सवाल पहले आने से रुक नहीं पा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम बढ़ते हैं तो कम भी होते हैं. जब कम होते हैं तब उस अनुपात में पेट्रोल डीज़ल के दाम कम नहीं होते. और जब माइनस में चले जाते हैं तब भी कम नहीं हुए.

2018 के अक्टूबर में अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत 84 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी. उस समय भारत में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान छूने लगीं. उस समय दिल्ली में पेट्रोल का दाम 84.4 रुपया पहुंच गया था जबकि मुम्बई में 91.34 रुपया. आज के दाम पर नज़र डालते हैं. आज कच्चे तेल का दाम 61.13 डॉलर प्रति बैरल है यानी अक्टूबर 2018 से करीब 23 डॉलर कम लेकिन फिर भी आज दिल्ली में पेट्रोल के दाम 89.54 रुपया है जब कि मुम्बई में 96 रुपया यानी अक्टूबर 2018 से ज्यादा. अगर कच्चे तेल के हिसाब से दाम तय होता तो आज भारत में लोगों को तेल सस्ते में मिल रहा होता.
 
जब 2008 में कच्चे तेल का दाम 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था तब पेट्रोल 45 रुपया लीटर कैसे मिल रहा था और आज जब 61.70 डॉलर प्रति बैरल है तो पेट्रोल 100 रुपया तक कैसे बिक रहा है. पहले के लोग ज़्यादा प्रतिभाशाली थे या आज के लोग ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं? फिर यह कौन बताएगा कि जब पिछले साल अप्रैल में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भारत की जीडीपी की तरह माइनस में चली गई थीं तब भारत में पेट्रोल के दाम क्यों कम नहीं हुए थे? बल्कि बढ़ ही गए. अप्रैल 2020 में राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 69 रुपये 59 पैसे लीटर था. मुंबई में 76 रुपये 31 पैसे लीटर.

पेट्रोल पर केंद्र और राज्य 60 प्रतिशत तक टैक्स लगाते हैं. डीज़ल पर 54 प्रतिशत के करीब. एक साल के भीतर केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.98 रुपये से बढ़ा कर 32.98 रुपये कर दिया है. तीन गुना से अधिक. इसी तरह डीज़ल पर उत्पाद शुल्क 15.83 रुपये से बढ़ा कर 31.83 रुपये कर दिया गया है. एक सरकारी वेबसाइट है पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की साइट से पता चलता है कि 2014-15 से पेट्रोलियम से सरकार के खाते में कितने पैसे पहुंचे.
- 2014-15 में 3,32,620 करोड़
- 2015-16 में  4,14,506 करोड़ 
- 2016-17 में 5,24,945 करोड़ 
- 2017-18 में 5,43,026 करोड़
- 2018-19 में 5,75,632 करोड़
- 2019-20 में 5,55,370 करोड़

कोविड के दौरान सरकार की कमाई काफी घटी है लेकिन आप 2014-15 से 2019-20 के बीच कमाई देख सकते हैं. करीब करीब दोगुनी हो चुकी है. क्यों पेट्रोल डीज़ल के टैक्स पर निर्भरता बढ़ रही है? क्या इस वक्त सरकारों के पास पैसे नहीं हैं? क्या इसलिए लोगों के पास जो भी पैसे हैं उसे सरकार निकाल लेने के फिराक में है?

22 जनवरी को इंडिया स्पेंड में रोहित इनानी ने एक लंबी रिपोर्ट की है जिसमें बताया है कि भारत की जीडीपी में घरेलु बचत का हिस्सा घटता ही जा रहा है. 2012 में 24 प्रतिशत था जो 2018 में 17 प्रतिशत था. लोगों की कमाई नहीं बढ़ी. बचत से निकाल कर खा रहे हैं. आर्थिक रूप से कमज़ोर होते जा रहे हैं.

घरेलु बचत 1991 के लेवल पर आ गया है. ऐसा नहीं है कि सब दुखी हैं. पॉज़िटिव न्यूज़ भी है. जिससे पता चलता है कि कुछ तो अच्छा हो रहा है. जनवरी महीने में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट आई है. उसके अनुसार तालाबंदी के दौरान भारत के 11 अरबपतियों की सपंत्ति इतनी बढ़ गई कि वे अगले दस साल तक मरनेगा का बजट उठा सकते हैं. कम से कम 11 लोगों ने प्रतिभा के दम पर विकास किया है. इसी महामारी के दौरान 24 प्रतिशत भारतीयों की एक महीने की आमदनी 3000 रुपये से भी कम हो गई. 24 प्रतिशत मतलब 32 करोड़ से अधिक लोग. गैस सिलेंडर के भी दाम बढ़े हैं. इन सबके कारण आमदनी पर बुरा असर पड़ रहा है.

पेट्रोल डीज़ल के साथ गैस के सिलेंडर के दाम भी बढ़ रहे हैं. आप अपनी जेब कितना संभाल सकते हैं. नवंबर 2020 से लेकर अब तक गैस का सिलेंडर 175 रुपये महंगा हो चुका है. कई लोग कहते हैं कि विपक्ष आवाज़ नहीं उठाता लेकिन दिखाया भी तो नहीं जाता है. विपक्ष न उठाए तो क्या आपको पता नहीं कि 175 रुपया महंगा हो चुका है. सरकार को खुद बताना चाहिए कि इसके कारण क्या है?
- नवंबर महीने तक यूपी के मोदीनगर में गैस का एक सिलेंडर 592 रुपये का आता था. 2 दिसबर को 642 रुपये का हो गया है और 15 दिसंबर को 692 का. उसके बाद 3 फरवरी को 25 रुपये की वृद्धि के बाद 717 रुपये का हो गया. फिर 14 फरवरी को 50 की वृद्धि के बाद 767 रुपये का हो गया.

हर समय के बाद बीच में कुछ दिनों के लिए गैस और पेट्रोल काफी महंगा हो जाता है. पिछले साल फरवरी में गैस का सिलेंडर 858 रुपये था. क्या यह कोई पैटर्न है कि दो तीन महीना बढ़ाओ फिर कम कर दो ताकि लगे कि कुछ कम हो रहा है और फिर बढ़ा दो. जब तक लोगों का ध्यान जाए बीच में हिन्दू मुस्लिम डिबेट लांच कर दो. क्या वाकई में कम कमाई और आधी सैलरी से परेशान लोगों को इन सब बातों से तकलीफ नहीं है? ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लोग भी काफी बर्बाद हो रहे हैं. इस वक्त जब अर्थव्यवस्था की हालत खराब है, किराया बढ़ाने का स्कोप भी कम है. ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लोग बहुत कम मार्जिन पर काम कर रहे हैं. इसका मतलब होगा कि इस सेक्टर से लाखों लोग बाहर हो जाएंगे. उनका काम छिन जाएगा.

राजस्थान के श्रीगंगानगर में सामान्य पेट्रोल 100.62 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. यहां पर पावर पेट्रोल 103 रुपये लीटर मिल रहा है. नार्मल डीज़ल 92 रुपये 42 पैसे लीटर मिल रहा है. ये तब है जब राजस्थान सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल के वैट पर 2 प्रतिशत की कटौती की है.

श्रीगंगानगर में एचपी, इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम के पंपों पर पेट्रोल-डीजल जयपुर व जोधपुर डिपो से आता है. वहां से यहां की दूरी 500 किलोमीटर से ज्यादा होने के कारण इस पर परिवहन किराया भी बढ़ता जाता है. इससे अलग-अलग शहर में कीमतों में भी अंतर देखने को मिलता है. पेट्रोल पंप संचालकों का दावा है कि रोजाना पंजाब से 20 हजार लीटर पेट्रोल और डीजल लाकर लोग इलाके में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं. इससे राज्य सरकार को हर महीने करीब डेढ करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है. लेकिन कार्रवाई नहीं होती. इधर, जिला रसद विभाग के अफसरों का मानना है कि पेट्रोलियम एक्ट के तहत 2 हजार लीटर की छूट दी गई है. ऐसे में लोगों को इस कानून के तहत रोक नहीं सकते.

भारत पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी करता है. दुनिया का दसवां बड़ा निर्यातक है. लेकिन जब आप कुल निर्यात में भारत का हिस्सा देखेंगे तो 3.9 प्रतिशत है. इस साल 20 जनवरी के दिन टाइम्स आफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी कि भारत ने दिसंबर में एक दिन में 5 लाख बैरेल से अधिक कच्चे तेल का आयात किया. यह तीन साल में सबसे अधिक था. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनकी सरकार ने एथेनाल के उत्पादन को बढ़ावा दिया है तब फिर क्यों भारत में कच्चे तेल का आयात बढ़ता जा रहा है? ध्यान से सुना कीजिए.

हम पहले भी इसके बारे में बता चुके हैं. 2018 में भारत सरकार ने एक नीति बनाई कि आने वाले वर्षों में पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा 10 से 20 प्रतिशत तक की जाएगी ताकि कच्चे तेल के निर्यात का बजट कम हो सके. दो साल बाद इस साल भी कुछ नीतिगत फैसले हुए हैं. अगर यह लक्ष्य हासिल किया गया होता तो फिर आयात में वृद्धि क्यों होती? यह भी साफ नहीं कि इथेनाल बनाने से किसानों को क्या लाभ होगा? क्या उन्हें गन्ने का अधिक दाम मिलेगा? यूपी के गन्ना किसान कहते हैं कि दाम ही नहीं बढ़ रहे हैं और न मिल रहे हैं.

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14 अक्टूबर के हिन्दू बिज़नेस लाइन में रिपोर्ट करते हुए राधेश्याम जाधव ने लिखा है कि महाराष्ट्र की चीनी मिलों की संस्था के प्रतिनिधि साफ साफ कहते हैं कि चीनी मिलों के पास इथेनॉल के उत्पादन की न तो क्षमता है और न ही ढांचा है. नेशनल फेडरेशन फॉर कोपरेटिव सुगर फैक्ट्रीज़ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनावरे का बयान है कि महाराष्ट्र में इथेनॉल के उत्पादन का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. चीनी मिलों की वित्तीय हालत खराब है. इस कारण बैंक भी लोन नहीं दे रहे हैं. नतीजा केंद्र सरकार का इथेनॉल उत्पादन का लक्ष्य पूरा नही हो पा रहा. लेकिन 12 दिसम्बर को फिक्की के कार्यक्रम में दिए भाषण में प्रधानमंत्री ने इन चुनौतियों का ज़िक्र नहीं किया.