लोकतंत्र की लड़ाई, सबकी लड़ाई जो नहीं लड़ा और चुप रहा, उसने गंवाई

लोकतंत्र की लड़ाई हमेशा आम लोग लड़ते हैं. जान देने की हद तक लड़ जाते हैं. भारत के एक पड़ोसी देश म्यांमार में लोकतंत्र के चार कार्यकर्ताओं को फांसी दे दी गई है.

लोकतंत्र की लड़ाई हमेशा आम लोग लड़ते हैं. जान देने की हद तक लड़ जाते हैं. भारत के एक पड़ोसी देश म्यांमार में लोकतंत्र के चार कार्यकर्ताओं को फांसी दे दी गई है. कोई किसी भी देश का नागरिक हो, अगर उसकी आस्था लोकतांत्रिक मूल्यों में है तो उसके लिए यह ख़बर का असर निजी दुख से कम नहीं हो हो सकता. को जिम्मी,फ्यू ज़ी-या-दौ, ह्ला-म्यो-औं, आऊंग-थ्वारा-ज़ौ,ये सभी म्यानमार में लोकतंत्र के लिए लड़ा करते थे.सोमवार को इन चारों को फांसी दे दी गई. यह वीडियो हमें रेडियो फ्री एशिया की साइट से मिला है, इसमें को जिमी कई साल पहले एक रैली को संबोधित कर रहे हैं.फांसी से पहले ज़ूम मीटिंग में को जिमी ने अपने परिजनों से कहा कि वे अपना धम्म पूरा कर रहे हैं. उन पर आरोप था कि वे सोशल मीडिया के पोस्ट के ज़रिए सैनिक सरकार के खिलाफ तख्तापलट को उकसा रहे थे. शांति भंग करने का प्रयास कर रहे थे. फ्यू-ज़ी-या-दौ को भी फांसी दी गई है.वे नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के प्लेटफार्म से सांसद भी चुने गए थे. जनता में उनकी लोकप्रियता थी मगर सैनिक अदालत ने शांति भंग करने और हिंसा करने के आरोप में फांसी दे दी. म्यानमार की सेना न जाने कब से युद्ध ही लड़ती रही है. आज तक उसका युद्ध पूरा नहीं हुआ पिछले साल फरवरी में वहां की सेना ने सत्ता पर कब्ज़ा जमा लिया जिसके बाद से बड़ी संख्या में लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की गिरफ्तारियां हुई हैं. 

म्यानमार में धर्म के नाम पर नस्लों के सफाए का अभियान चला, दुश्मन खड़े किए गए और उन पर काबू पाने के नाम पर सेना ने सत्ता हाथ में ले ली.तख्तापलट के समय दुनिया ने निंदा की, प्रतिबंध लगाए मगर सब सामान्य रुप से चलता रहा. फांसी के बाद दुनिया फिर से वही कर रही है, निंदा कर रही है. सब कुछ सामान्य रुप से चल रहा है. पिछले साल जब वहां सैनिक सरकार वजूद में आई तभी से प्रेस पर हमला होने लगा. म्यानमार टाइम्स ने एलान किया कि तीन महीने के लिए आपरेशन बंद कर रहा है लेकिन आज तक शुरू नहीं हुआ. म्यानमार नाउ एक वेबसाइट ही वहां की सूचनाओं का अहम सोर्स बना हुआ है.म्यानमार नाउ ने लिखा है कि फांसी के बाद जेल में विरोध प्रदर्शन भड़कने लगे हैं. कैदियों को मारा पीटा गया है. फांसी के बाद इनके पार्थिव शरीर को परिवार के हवाले नहीं किया गया है. इसी वेबसाइट से पता चलता है कि एसिस्टेंट एसोसिएशन फार पोलिटिक्ल प्रिंजनर्स ने डेटा जारी किया है कि पिछले साल से लेकर अभी तक 117 लोगों को फांसी दी गई है.

रिपोटर्स विदाउट बोडर्स की रिपोर्ट है कि म्यानमार में पत्रकार होना सबसे खतरनाक है. सेना से सवाल करने वाले पत्रकारों को सैनिक तानाशाह मरवा देता है और जेल में डालकर यातनाएं देता है.चीन के बाद म्यानमार में सबसे अधिक पत्रकार जेल में बंद हैं. दुनिया में सत्ता के कई रुप हैं. लोकतंत्र के भीतर भी कई तरह के लोकतंत्र हैं और तानाशाही के भीतर भी कई तरह की तानाशाही. सब अपने अपने तरीके से मीडिया का दमन करते हैं. मीडिया को मुर्गा बनने के लिए कहना आम बात हो गई है. भारत में आप इस प्रक्रिया को गोदी मीडिया के नाम से जानते हैं. 

जिस दिन अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर G7 देशों के बीच करार की खबर छपी थी उसी के साथ ज़ुबैर की गिरफ्तारी की भी खबर छपी थी. इन देशों ने करार किया कि लोकतंत्र को मज़बूत करेंगे और सभी देश आनलाइन और आफ लाइन अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करेंगे. ज़ुबैर की गिरफ्तारी के बाद म्यानमार से खबर आई है कि सोशल मीडिया के पोस्ट के कारण को जिम्मी को फांसी दे दी गई.

G-7 की बैठक में लोकतंत्र को मज़बूत बनाने, अभिव्यक्ति की आज़ादी और सिविल सोसायटी का बचाव करने का एक करार हुआ है. इसके बाद भी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले में कोई कमी नहीं आई है और न ही जनता की बात करने वाली सिविल सोसायटी के खतरे कम हुए हैं.अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, अर्जेंटीना, कनाडा, फ्रांस, भारत, इंडोनेशिया, इटली, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका ने जब करार पर दस्तखत किए तब काफी प्रमुखता से छापा गया. इनके दस्तखतों का क्या मतलब है कि म्यानमार की सैनिक तानाशाही किसी की परवाह नहीं करती है और  चार लोगों को फांसी पर लटका देती है जो लोकतंत्र के लिए लड़ रहे थे. 

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट है कि दुनिया भर में आज़ादी को गंभीर ख़तरा है. सूडान से लेकर म्यानमार तक में लोग अपने देश में आज़ादी के लिए जान की बाज़ी लगा रहे हैं. पिछले वर्ष दुनिया भर में म्यानमार में सबसे अधिक आज़ादी संकुचित हुई है. उसे कुचला गया है. फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार एक साल के भीतर 60 से अधिक देशों में लोकतंत्र पहले से ज्यादा कमज़ोर हुआ है.दुनिया की केवल 20 प्रतिशत आबादी ही है जो लोकतंत्र में सांस लेती है. लोकतंत्र को लेकर हम ग्लोबल नेताओं के खोखलेपन और दोहरेपन को ठीक से नहीं समझते और न इस पर बात होती है. 

सवाल अमरीका से भी पूछा जाना चाहिए. जब जो बाइडन आए हैं लोकतंत्र की रक्षा की बात करते हैं. हाल ही में जब राष्ट्रपति जो बाइडन पिछले हफ्ते सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान से मिले तब पूछा गया कि वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोग्गी की हत्या में जिनके हाथ होने की बात अमरीका ही करता रहा है, उससे अमरीका के राष्ट्रपति हाथ कैसे मिला सकते हैं? क्या यह जो बाइडन और अमरीका का खोखलापन और दोहरापन नहीं है? व्हाइट हाउस के पत्रकारों ने बाइडन से पूछा तो उन्होंने साफ साफ कहा कि अमरीका के राष्ट्रपति के नाते मानवाधिकार के सवालों पर चुप नहीं रह सकते लेकिन  फाक्स न्यूज़ से सऊदी के विदेश मंत्री ने कहा कि बाइडन ने ऐसा कहा था भी, किसी को सुनाई नहीं दिया. लेकिन वहां मौजूद एक अधिकारी का बयान NDTV ने कोट किया है कि बाइडन ने ऐसी बात नहीं कही थी. मगर अनौपचारिक रुप से जमाल खशोग्गी के बारे में बात की थी. तो इस तरह से हम इन नेताओं के भरोसे लोकतंत्र और प्रेस की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं.

विकीलिक्स के पत्रकार जूलियन असांज 2010 से ही भगोड़े की जि़ंदगी जी रहे हैं. अमरीका साइबर तंत्र के द्वारा जासूसी कर रहा था, असांज ने इस राज़ को बाहर ला दिया लेकिन असांज पर जासूसी का आरोप लग गया. ब्रिटेन असांज को अमरीका के हवाले कर रहा है. असांज ने ब्रिटेन की अदालत में इस फैसले को चुनौती दी है. इक्वाडोर जैसा देश असांज को शरण दे देता है, आस्ट्रेलिया ने पासपोर्ट जारी किया था लेकिन खुद को लोकतंत्र की जननी कहलाने वाला भारत पीछे रह गया.2013 में जूलियन असांज ने कहा था कि जब उन्होंने भारत से शरण मांगी तब भारत ने मना कर दिया. यह सूचना टाइम्स आफ इंडिया में छपी है भारत में जूलियन असांज की कितनी ही कम बात होती है. 

जो अमरीका साइबर जासूसी को उजागर करने वाले जूलियन असांज के पीछे पड़ा है वह पेगासस मामले में पत्रकारों की रक्षा को लेकर एक हद से आगे नहीं जाएगा. कुछ बयान वगैरह ज़रूर दे देगा.म्यानमार में चार लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं की फांसी पर भारत की प्रतिक्रिया रूटीन होगी या सख्त चेतावनी जारी होगी, इसके पहले यह भी सोचना होगा कि चीन कहीं म्यानमार में अपने प्रभाव का विस्तार न कर ले, इसी चिन्ता में अमरीका के राष्ट्रपति सऊदी राजकुमार से मिलते हैं कि कहीं रुस और सऊदी  करीब न हो जाए. लोकतंत्र की चिन्ता किसी को नहीं है. आप लोकतंत्र की लड़ाई हर समय अमरीका की तरफ देख कर नहीं लड़ सकते हैं. 2009 में श्रीलंका के पत्रकार लसांता विक्रमतुंगे की हत्या कर दी गई थी. लोकतंत्र के लिए जो भी जान देता है वह केवल अपने देश के लोकतंत्र के लिए जान नहीं देता है. इसलिए म्यानमार में जिन चार कार्यकर्ताओं को फांसी दी गई है उन्हें किसी भी लोकतांत्रिक समाज में याद किया जाना चाहिए. 

जब भी हमारे सामने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आते हैं और रुस के राष्ट्रपति पुतिन आते हैं हम उनका गुणगान करने लग जाते हैं, उनकी सोहबत के बहाने खुद को सुपर पावर कहलाने लग जाते हैं. लेकिन क्या कभी इस बात की चर्चा होती है, भारत के लोग आपस में बात करते हैं कि यह जो शी जिनपिंग हैं, इन्होंने अपनी पार्टी के दम पर यह प्रावधान करवा लिया है कि आजीवन राष्ट्रपति के पद पर रहेंगे? क्या आम लोगों को बताया जाता है कि रुस के राष्ट्रपति पुतिन 2036 तक यानी 83 साल की उम्र तक राष्ट्रपति रहेंगे. ये वही पुतिन हैं जिन्होने 1999 में राष्ट्रपति बनने पर देश को संबोधित करते हुए कहा था कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी और मास मीडिया की आज़ादी की रक्षा करेंगे क्योंकि किसी भी सभ्य समाज के लिए ये बुनियादी तत्व हैं. फिर बाद में क्या हुआ? रूस में मीडिया की क्या हालत है? जब दुनिया पुतिन और शी जिनपिंग से भरी हुई है और अमरीका और ब्रिटेन की नीतियों में दोहरापन हो तब हर नागरिक को लोकतंत्र को लेकर सजग रहना चाहिए. लोकतंत्र का सवाल किसी भी देश की जनता का सवाल है पुतिन  बाइडन या शी जिनपिंग का नहीं है. भारत के प्रधानमंत्री ने आठ साल से खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है वरना इस पर उनकी राय पूछी जा  सकती है कि आप परिवार वाद को लोकतंत्र का सबसे बड़ा खतरा बताते हैं, पुतिन और शी जिनपिंग के आजीवन पद पर बने रहने को कैसे देखते हैं. प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि भारत को लोकतंत्र की मां के रुप में जाना जाए लेकिन हम यह कभी जान ही नहीं सकेंगे कि एक सच्चे लोकतांत्रिक नेता के तौर पर वे रुस और चीन के बारे में क्या सोचते हैं? 

ज़ुबैर के संदर्भ में सोशल मीडिया में कुछ लोग खैर मनाने की बात कर रहे थे कि यह रूस और चीन नहीं है.जब भी लोकतंत्र के कुचले जाने पर कोई रूस और चीन का उदाहरण दे उससे दुखद कुछ नहीं हो सकता. भारत खुद को लोकतंत्र की जननी कहलाना चाहता है और किसी पत्रकार को अजीबो गरीब तरीके से गिरफ्तार करने पर रुस और चीन का उदाहरण दे तो याद रखना चाहिए कि आने वाला कल कैसा होगा.धर्म की राजनीति में भारत का युवा चाहे जितना हीरो बनता हो, जब उसके मुद्दों की बात आती है,उसकी हालत भी उसी रूस और चीन की तरह हो जाती है जिसे याद दिला कर वह ज़ुबैर के मामले में हीरो बन रहा था. दूसरों को ललकार रहा होता है. 

हताशा ने बिहार के इस नौजवान की जवानी की क्या गत कर दी है कि अपने ही सर्टिफिकेट की मांग को लेकर बिहार राजभवन के कर्मचारी के पांव पर गिरा हुआ है. यह उसी बिहार का युवा है जिसके दम पर कभी जय प्रकाश नारायण भारत में क्रांति लाना चाहते थे. धर्म और राष्ट्रवाद ने हिन्दी प्रदेश के युवाओं में ऐसा जोश भर दिया है कि उन्हें आसमान भी अमरूद का पेड़ लगता है लेकिन उसी धर्म और जाति की राजनीति ने उन्हें इतना खोखला कर दिया है कि बैंगन का पौधा भी उनके लिए चीड़ के पेड़ जितना ऊंचा हो गया है. या तो हिंसा पर आ जाते हैं या फिर गिड़गिड़ाने लगते हैं, इसके बीच भी लोकतंत्र की कोई भाषा या मर्यादा होती है, केवल युवा ही नहीं, सारा समाज ही भूल गया है.ये सभी मगध यूनिवर्सिटी के छात्र हैं.इस यूनिवर्सिटी के दो लाख से अधिक छात्रों का सत्र रिज़ल्ट न निकलने के कारण लेट हो गया है. किसी का रिजल्ट छह महीने से तो किसी का एक साल से अटका हुआ है. जिनका निकल गया है उन्हें डिग्री नहीं मिल रही. अपने रिज़ल्ट और सर्टिफिकेट के लिए इन छात्रों ने क्या क्या नहीं किया, महीनों से धरना दे रहे हैं, पत्र लिख रहे हैं मंत्री से मिलते हैं, मंत्री से मिलते हैं तो मंत्री कहते हैं कि राजभवन जाइये,राज्यपाल ही वाइस चांसलर की नियुक्ति करते हैं. मगध यूनिवर्सिटी का वाइस चांसल राजेंद्र प्रसाद कथित रुप से करोड़ों का घोटाला कर भाग गया है. बताइये एक यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नवंबर 2021 से भागा हुआ है और पुलिस पकड़ नहीं पा रही है. दो लाख छात्रों का भविष्य बर्बाद हो गया, इस राज्य के नागरिक समाज को भी फर्क नहीं पड़ता है. इसी समाज में आप धर्म को लेकर ज़हर की एक पुड़िया फेक दीजिए फिर देखिए कैसे लोग मुरेंठा बांध कर सड़कों पर निकल आते हैं जैसे इनसे ज्यादा धर्म की समझ किसी और में है ही नहीं. अब कोई रिटायर्ड अंकिल व्हाट्स एप छोड़ कर इन छात्रों के लिए आगे क्यों नहीं आता है?

इसलिए कहता हूं कि जब जब आप आस-पास के अन्याय को नहीं देखते हैं तब तब लोकतंत्र की एक लड़ाई हारते हैं, देख लेने का असर इतना होता है कि केवल देख लेने से लोकतंत्र को एक हार से बचा लेते हैं.रुस और चीन में लोकतंत्र नहीं है इसलिए आप भारत में लोकतंत्र एक लोटा कम नहीं कर सकते बल्कि कोशिश कीजिए कि इसका लोकतंत्र दो बाल्टी और भर जाए.जब कोई आर टी आई कार्यकर्ता पूछता है कि भारतीय स्टेट बैंक ने 9 वित्त वर्षों के दौरान 1 लाख 41 हज़ार 248 करोड़ का लोन राइट ऑफ किया है, बट्टे खाते में डाला है तो यह किसका लोन है, तो क्यों नहीं बताया जाता है. क्या यह जानकारी इतनी संवेदनशील है कि भारतीय स्टेट बैंक ने बताने लायक नहीं समझा. 

क्या यह सवाल पूछने ही लायक नहीं है कि अभी तक राइट आफ किए गए लोन में से 15000 करोड़ की वसूली हुई है तो किससे वसूली हुई है और जिनके राइट आफ हुए हैं उनके नाम क्या हैं? पुणे के सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता विवेक वेलांकर ने जब यह जानकारी मांगी तब मना कर दिया गया. आप यह भी नहीं जानते हैं कि राजनतीतिक दलों को इलेक्टोरल बान्ड के ज़रिए कौन है जो करोड़ों रुपये का चंदा दे रहा है,हम केवल राशि जानते है, चंदा देने वालों का नाम नहीं जानते. तब फिर आप खुद से सवाल कीजिए कि आप जानते ही क्या है.

लोकपाल आप भूल गए होंगे. इस साल जनवरी में द वायर के लिए गौरव विवेक भटनागर ने एक रिपोर्ट की थी. अपनी रिपोर्ट में गौरव ने बताया था कि 2019 में लोकपाल का कार्यालय बनाने में करीब 60 करोड़ खर्च हो गए लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर कुल 1600 से भी कम शिकायतें आई हैं. 2019-20 में 1427 शिकायतें आई थीं लेकिन 2020-21 में इनकी संख्या घटकर 110 रह गई.इसका उदाहरण इसलिए दिया कि भ्रष्टाचार की लड़ाई में लोकपाल की भूमिका क्या रह गई है?  लोकपाल से तुलना तो नहीं हो सकती लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में  ED की ही चर्चा सुनाई देती है.
जिनके बाल खींचे जा रहे हैं वो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.

आज कांग्रेस के तमाम सांसदों ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ संसद से राष्ट्रपति भवन तक सत्याग्रह मार्च किया. लेकिन विजय चौक पर ही सभी को रोक लिया गया. वहां पर इन नेताओं को हिरासत में ले लिया गया.राहुल गांधी भी हिरासत में लिए गए और सभी को किंग्सवे कैंप में रखा गया. प्रियंका गांधी इसे सच की लड़ाई कहती हैं.कांग्रेस का कहना है कि आज का प्रदर्शन केवल ED के खिलाफ नहीं है बल्कि GST महंगाई और संसद में नहीं बोलने देने को लेकर प्रदर्शन हो रहा है. इसके बाद भी कांग्रेस ने कई जगहों पर ED के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन तो किया ही है.क्या ED का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है? रिकार्ड बताता है कि ED ने PMLA के तहत 2005 से लेकर अब 5422 मामले मनी लौंड्रिंग के केस दर्ज किए हैं. 401 गिरफ्तारियां की हैं और एक लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति को कुर्क किया है. 1000 से अधिक चार्जशीट दायर की है लेकिन 17 साल में केवल 25 मामलों में सज़ा दिला सकी है. क्या इस बात पर बहस नहीं होना चाहिए कि क्या ED के पास ऐसा कानूनी प्रावधान है जिससे विपक्ष के नेताओं को लंबे समय तक के लिए फंसाया जा सकता है? 

लोकसभा से चार सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है. राज्य सभा से आज 19 सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है. ये सभी विपक्ष के हैं. इनमें से 7 तृणमूल कांग्रेस,6 DMK, 3 TRS,2 CPIM और 1 CPI के सांसद हैं.विपक्ष का कहना है कि वह जिन मुद्दों पर चर्चा चाहता है, सरकार तैयार नहीं होती, सरकार कहती है वह हमेशा तैयार है लेकिन विपक्ष सकारात्मक नहीं है.

आज राज्य सभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा है कि सरकार चर्चा के लिए तैयार है, वित्त मंत्री जैसे ही स्वस्थ्य होकर आती हैं महंगाई पर चर्चा होगी. इसके जवाब में  तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन का दावा है कि विपक्ष ने तो एक सप्ताह पहले लिख कर दिया था कि वित्त मंत्री जल्दी स्वस्थ्य हों और उनकी जगह कोई और मंत्री जवाब दे दें. डेरेक ओ ब्रायन ने पूछा है कि क्या प्रधानमंत्री इतने व्यवस्त हैं कि महंगाई के मुद्दे पर जवाब नहीं दे सकते? इसी के साथ सवाल है कि सत्र दर सत्र कब तक विपक्ष अपने मुद्दों पर बोलने के लिए मांग करता रहेगा.क्या ब्रिटेन की संसद की तरह यहां विपक्ष को उसके मुद्दे उठाने की छूट नहीं दी जा सकती? ब्रिटेन की संसद में हर सत्र में 20 दिन विपक्ष के लिए रिज़र्व होते हैं. इसे आपोज़िशन डे कहते हैं. इसमें विपक्ष अपने मुद्दे तय करता है. यही नहीं हर सप्ताह प्रधानंमत्री भी सदन में सवालों के जवाब देते हैं. ठीक है कि भारत की व्यवस्था अलग है, लेकिन ऐसा कैसे होता है कि प्रधानमंत्री किसी सत्र में सवालों के जवाब ही न दें. क्या जब भी प्रधानमंत्री बोलेंगे भाषण ही देंगे, सवाल जवाब के दौर में हिस्सा कब लेंगे.

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PRS लेजिस्लेटिव का एक रिसर्च है. इससे पता चलता है कि राज्यों की विधानसभाओं में साल भर में कितनी कम बैठकें होने लगी हैं. PRS के रिसर्च के मुताबिक पिछले साल किसी भी विधानसभा की बैठक का औसत 21 दिन से ज्यादा नहीं रहा जबकि यहां 500 से अधिक बिल पास हुए. आप अंदाज़ा लगा सकते है कि किस बिल को पास करने में कितना समय लग रहा है. राज्यों की 17 विधानसभाएं ऐसी थीं जिनकी बैठकों का औसत 20 दिन से भी कम रहा है.2016 से 2020 के बीच 23 राज्यों की विधानसभाओं की बैठक का औसत 25 दिन से भी कम रहा है. 

दिव्य भास्कर की हेडलाइन देखिए. सुशासन की जगह नशासन लिखा हुआ है यानी नशे का शासन. कल तक ज़हरीली शराब पीने से मरने वालों की संख्या 18 थी और 45 अस्पताल में भर्ती थे लेकिन आज द हिन्दू ने रिपोर्ट किया है कि बोटाद ज़िले में ज़हरीली शराब से मरने वालों की संख्या 28 हो चुकी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिस का कहना है कि मिथाइल अल्कोहल पी लेने से इनकी जान गई है. राज्य सरकार ने जांच के लिए तीन सदस्यों की कमेटी बना दी है. छह लोग गिरफ्तार भी हुए हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भावनगर के अस्पताल का दौरा भी किया जहां जहरीली शराब पीकर बीमार हुए लोगों का इलाज चल रहा है.चंद रोज़ पहले बीजेपी के छोटा उदयपुर के ज़िलाध्यक्ष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे मंच पर नशे की अवस्था में दिख रहे थे. 

गांधी के गुजरात में 1949 से ही शराबबंदी है. यहां के लोग आपसी बातचीत में शराब की उपलब्धता को लेकर हंसी मज़ाक करते हैं और बताने में संकोच नहीं करते कि चाहिए तो मिल जाती है. 2016 में सूरत में ज़हरीली शराब पीने से 23 लोगों की मौत हो गई थी. जब भी ऐसी घटना होती है शराब का सच बाहर आ जाता है. मध्य प्रदेश में 18 जुलाई से मुंग की खरीद का रजिस्ट्रेशन शुरू होने वाला है.मूंग की फसल जून के पहले हफ्ते में ही कट गई थी .कई किसानों का कहना है कि वो मूंग खुले बाजार मेंएमएसपी से बहुत कम पर बेच चुके हैं. अब सरकार देरी से खरीदने जा रही है तो ज़ाहिर है उन्हें नुकसान होगा ही. 

गांधी के गुजरात में 1949 से ही शराबबंदी है. यहां के लोग आपसी बातचीत में शराब की उपलब्धता को लेकर हंसी मज़ाक करते हैं और बताने में संकोच नहीं करते कि चाहिए तो मिल जाती है. 2016 में सूरत में ज़हरीली शराब पीने से 23 लोगों की मौत हो गई थी. जब भी ऐसी घटना होती है शराब का सच बाहर आ जाता है. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इंजीनयरिंग के छात्र के मौत की गुत्थी उलझ गई है, पुलिस अभीतक मिले सबूतों के आधार पर इसे खुदकुशी मान रही है, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी छात्र की मौत की वजह ट्रेन से कटना है, वहीं पुलिस की इस जांच पर मृतक के पिता ने सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि उनका बेटा खुदकुशी नहीं कर सकता ... उसके मोबाइल से आये मैसेज ने मामले को और उलझा दिया है.