...तो जब दो लोग मिलकर किसी एक लेख को लिखते हैं, तो कैसे लिखते हैं. मैं अक्सर सोचने लगता हूं. आज तुक्का लगाने का मन कर रहा है कि दो लोग जब मिलकर लिखते हैं तो उनके बीच क्या चल रहा होता है. कौन बोल रहा होता है, कौन लिख रहा होता है...
- एक बोलता है, दूसरा लिखता है...
- एक सोचता है, दूसरा चुटकी बजा देता है... दूसरा चुटकी बजा देता है, पहला समझकर लिख देता है...
- एक चाय बना रहा होता है, दूसरा पी रहा होता है...
- एक किताब पढ़कर बताता है, दूसरा सुनकर लिखता है...
- एक आंकड़े जमा करता है, दूसरा लेख लिखता है...
- एक लिखता है, दूसरा अपना नाम डलवा देता है...
- एक लिखता है, दूसरा स्पेलिंग चेक करता है...
यह सब होता होगा या यह सब नहीं होता होगा. मैं उन दो लोगों के बीच कभी मौजूद नहीं रहा, जब वे मिलकर एक लेख लिख रहे होते हैं. क्या यह भी हो सकता है कि पहली पंक्ति पहला लिखे, अगली पंक्ति अगला लिखे. फिर तीसरी पंक्ति पहला लिखे और अगली पंक्ति अगला लिखे. क्या यह भी हो सकता है कि एक पैराग्राफ़ पहला लिखता होगा और दूसरा पैराग्राफ़ अगला. राजू और राधा के संयुक्त लेख में राजू का कौन-सा हिस्सा है, और राधा का कौन-सा, मुझे समझ नहीं आता. पढ़ते समय तुक्का मारने लगता हूं - 'वाह, यह लाइन राधा की है... अरे नहीं, यह वाली लाइन अपने राजू ने लिखी होगी...'
कहीं ऐसा तो नहीं कि राजू राधा को प्रमोट कर रहा है या राधा राजू को प्रमोट कर रही है. राजू-राधा दोस्त हैं - सिर्फ दोस्त हैं - पति-पत्नी हैं - प्रेमी-प्रेमिका हैं - सिर्फ सहयोगी हैं... ये सब सवाल घूरने लगते हैं और लेख मेरा मुंह ताकने लगता है - 'यह पढ़ेगा कब... सोचता ही रहेगा क्या...!'
एक पाठक के रूप में हम दो लोगों के मिलकर लिखे गए एक लेख को कैसे पढ़ें...? अब तो अंग्रेज़ी के अख़बार वाले फोटो भी छाप देते हैं. एक लेख के ऊपर दो लोगों के चेहरे होते हैं. पढ़ते हुए बार-बार ऊपर चेहरे की तरफ देखो और अंदाज़ा लगाओ कि इसका चेहरा मुस्कुराता है, ज़रूर यह लाइन इसी की होगी. किसी के बाल खुले होते हैं, तो किसी के होते ही नहीं हैं. एक अखबार तो संपादकीय पन्ने पर लेखकों के फ़ुल साइज़ फोटो ही छापने लगा. पढ़ते समय लगा कि हाथ बांधे जनाब घूर रहे हैं, 'बेटा, पूरा पढ़ रहे हो या नहीं. हम यहीं हैं, तुमको देख रहे हैं.' दो लोग खड़े-खड़े फ़ुल साइज़ में दिखते हैं तो और भयभीत हो जाता हूं. दुखदायी ख़बर के मुस्कुराते लेखकों की तस्वीरों से मेरी सहनशीलता की ऐसी की तैसी हो जाती है.
इसलिए आप किसी संपादक को जानते हैं, तो उनसे कहें कि जब दो लोगों का संयुक्त रूप से लिखा कोई एक लेख छापें तो ज़रूर बताएं कि कौन-सी बात किसने लिखी है. इस लेख में ऐसा क्या है, जिसे एक लेखक नहीं लिख सकता, और उसे दूसरे की मदद मांगनी पड़ी. लेख ही छप रहे हैं, फ़िज़िक्स या कैमिस्ट्री के लिए संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार तो नहीं बंट रहा है न. सिम्पल-सा जवाब चाहिए - दो लोग मिलकर एक लेख क्यों लिखते हैं... दो लोग मिलकर दो लेख क्यों नहीं लिखते हैं...?
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