आज प्रात:कालीन ट्विटरगमन पर निकला था. टाइमलाइन को सरकाते हुए मैं भांति-भांति के विचारों से टकरा रहा था.
ख़ुशी हुई कि शहरी लोग मूल समस्या को छोड़ ट्रैफिक जाम की समस्या दूर करने में पुलिस की मदद कर रहे हैं. फोटो खींच कर ट्विट कर रहे हैं. जाम एक ग़ैर सरकारी समस्या है जिसे दूर करने का काम सरकार का है.
कुछ लोगों ने बादलों की तस्वीर ट्विट की है. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे पहली बार बादल देखे गए हों और अब आगे नहीं देखे जाएंगे.
बहुत से पत्रकार टाइमलाइन पर दैनिक प्रासंगिकता स्नान कर रहे थे. यह नए प्रकार का स्नान है. उन्होंने कई साल से कोई ख़बर नहीं की है जिससे लगे कि उनमें पत्रकारीय क्षमता है. काफी धूल जम गई है. इसलिए वे सरकार के समर्थन में ट्विट कर किसी से सवाल दाग देते हैं. फिर उनका एडिटर या मालिक नहीं पूछता कि तुम्हारी खबर कहां हैं. यह एक प्रकार का गंगा स्नान है जिसे मैं प्रांसिगकता स्नान कहता हूं.
टाइमलाइन पर मौन अपराध है. सोचते ही बोल देना है और सोचने से पहले लिख देना है. तभी जाकर अगले जन्म में आप मनुष्यकुल में पैदा होते हैं. वर्ना कौआ बन कर ट्विटर पर कांव कांव करने का अभिशाप प्राप्त करते हैं.
इन्हीं मनोरम वाक-दृश्यों को निहारता हुआ मैं विचरण कर रहा था. तभी टाइम लाइन के एक कोने से आवाज़ सुनाई दी.
नारायण! नारायण!
ऋषिकुल भारत 5 ट्रिलियन इकॉनमी की अवस्था की ओर अग्रसर हो रहा है. लेकिन तीन चार लोग चंद रुपये की अतिरिक्त टैक्स वृद्धि को लेकर झगड़ रहे हैं.
नारायण! नारायण!
यह भी नहीं सोचा कि इसी टाइम लाइन पर ट्रंप भी हैं. अगर उन तक यह बात पहुंच गई तो भारत की जंग हंसाई हो सकती है.
प्रधानमंत्री को पता था. करोड़ों कमाने वाले ये प्रोफेशनल लोग पेसिमिस्ट हो जाएंगे. इसलिए पहले ही उन्होंने टैक्स वृद्धि के आलोचकों के लिए प्रोफेशनल पेसिमिस्ट का शब्द गढ़ दिया. उसी तरह जैसे उन्होंने सबका साथ सबका विकास में सबका विश्वास जोड़ दिया था.
मैंने इस फैसले का स्वागत किया है. स्वागत करना ही नियति है. स्वागत ही सबकी आदत हो, इसलिए आदत स्वागत नाम से एक स्कीम लांच की जा रही है. रिचर्ड थेलर की नज थ्योरी (VIDEO : देखें क्या है नज थ्योरी) की तहत इस स्कीम में सरकार के फैसले का स्वागत करने की प्रेरणा दी जाएगी. आज भारत को प्रेरणा की सख़्त ज़रूरत है.
भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो के एक ट्विट ने सबको छेड़ दिया था. बाबुल ने लिखा कि बहुत से अति-अमीर जिन्हें सामाजिक सेवा हेतु दान-कर्म का वक्त नहीं मिल पाता है, वे अतिरिक्त टैक्स देकर अच्छा महसूस कर सकते हैं.
1-2 करोड़ वाले 35.9 प्रतिशत टैक्स देते रहेंगे. 2-5 करोड़ वाले 39 प्रतिशत टैक्स देंगे. 5 करोड़ से ज़्यादा वाले 42.7 प्रतिशत टैक्स देंगे.
इतनी सी बात पर मोहनदास पाई नामक करोड़पति क्रुद्ध हो गए. उन्होंने जवाबी ट्विट दाग दिया.
“यह पूरा बकवास है. जो ज़्यादा कमाते हैं वो पहले से ही दान-कर्म करते रहे हैं. हमें आपके ऐसे जवाब की ज़रूरत नहीं है. आप उन ईमानदार करदाताओं को आहत कर रहे हैं जो पूरा टैक्स देते हैं. बेईमान करदाताओं को जाने दे रहे हैं जो टैक्स नहीं देते हैं. क्या ईमानदार लोगों का ऐसे ही मज़ाक उड़ाया जाता है? शर्मनाक.”
मोहनदास पाई के इस ट्विटचन( ट्विटर-वचन) पर फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक सुनील जैन भी आ धमकते हैं.
सुनील जैन भी झुब्ध हैं. लिखते हैं कि अमीर लोगों को दान-कर्म की ज़रूरत नहीं है. वे चाहते हैं तो करते हैं. उन्हें सारा पैसा नरेंद्र मोदी और निर्मला सीतारमण को दे देना चाहिए ताकि वे बेकार की सब्सिडी पर बर्बाद कर सकें. सार्वजनिक क्षेत्र की अकुशल कंपनियों को चलाने में ख़र्च कर सकें.
इससे बहस पैदा होती है. ट्विटर पर प्रात:कालीन बहस पैदावार होती है. उसी से निकला अनाज शाम को टीवी डिबेट में पकाया जाता है. चैनलों का दिन कट जाता है.
जम्बूद्वीप के श्रेष्ठीजन चंद प्रतिशत कर-वृद्धि से विचलित हैं. भारत में ऐसे करोड़पति मात्र 1000 हैं. इस विशाल देश में अति-अमीर मात्र 1000 हैं.
अमीरों की हालत भी ग़रीबों जैसी है. ग़रीबों के पास संख्या है मगर दौलत नहीं है. अमीरों के पास दौलत है मगर संख्या नहीं है. भारत के अमीर लोकतंत्र के ग़रीब हैं.
बाबुल सुप्रीयो और मोहनदास पाई के ट्विटचन से एक बहस-धारा (thread) बनती है. मैं इस बहस-धारा के प्रवाह को देखने लगा.
लगा कि इन अमीरों को छोड़ बाकी करदाता बेईमान हैं. वो मेहनत से नहीं कमाते हैं. सिर्फ यही मेहनत से कमाते हैं.
कुछ ही दिन पहले सरकार की प्रशंसा में लगे अमीर-करदाता दुनिया को बता रहे थे कि कैसे करदाताओं की संख्या बढ़ गई है. अब क्रोधित हुए हैं तो कह रहे हैं कि जो नहीं दे रहा है उससे टैक्स लो. यानी अभी भी टैक्स नहीं देने वाले बचे हुए हैं. अच्छा होता ये अपने क्रोध में उन लोगों का नाम पता भी बता देते.
किसी अभय नाम के प्राणी ने लिखा है कि इन्हीं सब कारणों से भारत अविकसित देश हैं. अभी तक अविकसित ही है? जम्बूद्वीप का घोर अनादर. 5 ट्रिलियन इकॉनमी की आस्था का घोर अनादर.
कोई अनुराग सक्सेना कहते मिले कि हमें किसी से उपदेश नहीं चाहिए. सदियों से धर्मशालाएं, स्कूल, मंदिर बनवाला बिजनेस संस्कृति रही है.
कितने स्कूल बनवाएं हैं आप लोगों ने ग़रीबों के लिए, अमीरों के लिए कितने स्कूल बनवाएं हैं, अनुराग सक्सेना जी.
पिछले तीस साल में जब बिजनेस साम्राज्य बड़ा हुआ तब इस संस्कृति से कितनी धर्मशालाएं बनी हैं.
एक रोटरी वाले ने लिखा है कि मैंने सी-शूट वाले क्लास को वाइन और खाने पर पैसा लुटाते देखा है मगर चंदा देते नहीं देखा है.
भारत का ग़रीब भी आपके बनाए उत्पादों को ईमानदारी से पूरे पैसे देकर ख़रीद रहा है. वह भी टैक्स देता है. उससे भी अर्थव्यवस्था चल रही है.
जब लोग चोरी छिपे एक खास राजनीतिक दल के लिए बान्ड ख़रीद रहे थे, विपक्ष के खाते में पैसा नहीं डाल रहे थे तब यह तबका सोच रहा था क्या कि उनके चंदे के कारण लोकतंत्र में असंतुलन पैदा हो रहा है?
सौरव सेठ ने बाबुल सुप्रीयो को लिखा है कि हम टैक्स इकॉनमी बन गए हैं. मैं टैक्स देना चाहता हूं तब जब बदले में कुछ मिले. सरकार ईमानदार कर दाताओं को कुछ लाभ नहीं देती है. मरे हुए विपक्ष के रहते क्या हमारी कोई आवाज़ है?
बालक सौरव सेठ, जब विपक्ष की हत्या हो रही थी तब आप क्या कर रहे थे, जिन चैनलों पर रोज़ शाम को विपक्ष को मारा जाता है तब आप क्या करते हैं?
आपने उन मीडिया संस्थानों की कितनी मदद की जो सवाल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे?
हर आवाज़ को ख़त्म करने में आपकी भागीदारी रही है.
और सौरव सेठ जी, सरकार ने आर्थिक सर्वे में कहा है कि ईमानदार करदाताओं के नाम पर हवाई अड्डे में लाइन से छुट्टी मिलेगी. आपके नाम पर एयरपोर्ट हो सकता है. मोहल्ले का स्कूल हो सकता है जहां कभी मास्टर नहीं होता, होता भी है तो पढ़ाता नहीं है. प्राथमिक चिकित्सा केंद्र हो सकता है. जहां कभी डाक्टर नहीं होता है और दवा नहीं होती है.
लगता है आपने रिचर्ड थेलर की नज थ्योरी नहीं पढ़ी है जो हमारे मुख्य आर्थिक सलाहकार के गुरु भी हैं. आपको प्रेरित किया जा रहा है. तनिक धैर्य रखें.
उम्मीद थी कि ये सारे करोड़पति 50 प्रतिशत टैक्स न करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देंगे लेकिन वाकई ये प्रोफेशनल पेसिमिस्ट ठहरे.
अब मैं ट्विटर से लौट आया हूं. उन खबरों को समझ रहा हूं कि कैसे टोल टैक्स की वसूली से कई हज़ार करोड़ की वसूली हो रही है. निम्न मध्यम-वर्ग और मिडिल क्लास का टोल टैक्स देने में जो सहयोग रहा है वह सराहनीय है. अति-अमीर तो हवाई जहाज़ से चलते हैं. अपने जेट से. किसी मिडिल क्लास ने नेशनल हाईव प्रोजेक्ट में टोल टैक्स पर ज़ोर देने का विरोध नहीं किया है.
मिडिल क्लास लाखों कर्ज लेकर इंजीनियरिंग, मेडिकल से लेकर लॉ की पढ़ाई के लिए लाखों फीस दे रहा है. पता है कि नौकरी नहीं है मगर वह नरेंद्र मोदी के भारत के लिए योगदान कर रहा है. प्रोफेशनल पेसिमिस्ट नहीं है. उसने तो कभी नहीं कहा कि हम जो टैक्स देते हैं, हमें क्या मिलता है.
मिडिल क्लास की यही ख़ूबी है. वह टैक्स भी देता है. टोल भी देता है. लोन भी लेता है. फीस भी देता है.
तभी तो प्रधानमंत्री मिडिल क्लास पर भरोसा करते हैं और मिडिल क्लास उन पर.
शेखर गुप्ता ने अपने राष्ट्रहित विचार में लिखा है कि मिडिल क्लास से पैसा लेकर ग़रीबों को दिया गया. मिडिल क्लास चुप है. क्योंकि उसे मुसलमानों से नफ़रत का प्रशिक्षण दिया गया. अब मिडिल क्लास ही नया मुसलमान है.
कैसी कैसी बातें हो रही थीं.
मैंने सोचा कि ट्विटर से निकल कर चलता हूं. कुछ लिखता हूं.
भारत 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होने जा रहा है. इससे हमारी आपकी आमदनी नहीं बढ़ती है. देखिए ब्रिटेन और भारत की जीडीपी करीब-करीब बराबर है. फिर भी प्रत्येक भारतीय की औसत आय ब्रिटेन के प्रत्येक बिटिश नागरिक की औसत आय से कम है.
इतना दिमाग़ न लगाएं.
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पोज़िटिव बनें. सच्चा हिन्दू कभी निगेटिव नहीं होता है.
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