आस्था के प्रतीक और राजनीतिक विरोध

आस्था के प्रतीक और राजनीतिक विरोध

अंबेडकर शोभायात्रा में शामिल एक झांकी में मायावती को काली मां के रूप में दिखाया गया था...

उत्तरप्रदेश में मौसम की गर्म मार बढ़ने के साथ साथ राजनीतिक दलों में भी एक-दूसरे की धज्जियां उड़ाने के प्रयासों में तेज़ी आना शुरू हो गई है। ऐसे में राजनीतिक दलों के समर्थक अपने पूज्य नेताओं को बलशाली दिखाने के लिए ऐसे प्रतीकों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनसे वे नेता भी दूर रहना चाहेंगे।

इसका ताजा उदहारण बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों द्वारा लगाया वह पोस्टर है, जिसमें उनकी पार्टी प्रमुख मायावती को देवी के अवतार में दिखाया गया है, और उनके हाथ में और पैरों के नीचे विरोधियों को दर्शाया गया है। यह पोस्टर हाथरस जिले के एक कस्बे में रैली के दौरान सड़कों पर ले जाया जा रहा था और देखने वालों में से भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों ने इस पर आपत्ति जताई तो इसे हटवाया गया और पुलिस ने आयोजकों के खिलाफ रिपोर्ट भी लिखी, हालांकि पोस्टर पर उसे बनाने वाले का नाम, मोबाइल फ़ोन नंबर और ईमेल पता लिखे होने के बावजूद अभी तक कोई कार्यवाई होने की रिपोर्ट नहीं मिली है।

पोस्टर में मायावती को देवी के अवतार में दिखाया गया है, उनके एक हाथ में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का कटा हुआ सिर लटका हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत हाथ जोड़कर मायावती से प्रार्थना कर रहे हैं। स्मरणीय है कि कुछ महीने पहले संसद में तथाकथित असहिष्णुता के मामले में बोलते हुए स्मृति ईरानी ने मायावती को चुनौती दी थी कि यदि मायावती उनके (स्मृति ईरानी के) जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो स्मृति अपना सिर काटकर मायावती को पेश कर देंगी। स्पष्ट है कि उसी वक्तव्य को आधार बनाकर यह पोस्टर बनाया गया होगा।

इसके कुछ दिन पहले उत्तरप्रदेश में वाराणसी समेत कई जगह नव-नियुक्त भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या का भी एक पोस्टर लगाया गया था, जिसमे उन्हें भगवान के अवतार के रूप में दिखाया गया था और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री समेत कई अन्य नेता प्रदेश का चीर हरण करते हुए बनाए गए थे।

मजे की बात यह है कि मायावती पिछले समय में अपने बयानों और सार्वजनिक सभाओं में अपने समर्थकों को हिन्दू देवी-देवताओं को न मानने की सलाह देती रहीं हैं, और अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में तो उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं और धार्मिक प्रतीकों पर कड़े प्रहार भी किए थे। उनके विचार में मंदिर, पूजा, धार्मिक अनुष्ठान आदि ‘मनुवादी’ प्रपंच हैं जिससे वे अपने समर्थकों को दूर रहने की सलाह देती हैं। लेकिन उनके समर्थकों ने अपने उत्साह में मायावती की ताकत दिखाने के लिए उनके इस विवादित पोस्टर में उन्हें देवी के रूप में दिखा डाला।

इसी तरह केशव मौर्या भी भाजपा अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद से ही राम मंदिर समेत अन्य हिन्दू धर्म के मुद्दों को पार्टी के अजेंडे में मानने से इनकार करते रहे हैं, और वे भाजपा का विकास की समर्थक पार्टी के रूप में ही समर्थन मांगते हैं। लेकिन उनके समर्थक ने उन्हें अतिरंजना में देवता बनाकर ही छोड़ा। जहां मौर्या ने उस पोस्टर से अपना कोई मतलब न होना कहते हुए पल्ला झाड़ लिया, वहीं बसपा द्वारा हाथरस के विवादित पोस्टर पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आई है।

कुछ वर्ष पहले समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव का महिमा मंडन करते हुए उनके एक प्रशंसक ने ‘मुलायम चालीसा’ का प्रकाशन किया था। कुछ समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों द्वारा मुलायम की प्रतिष्ठा में एक मंदिर का निर्माण अलीगढ़ जिले में कराए जाने के भी समाचार हैं। यह बात अलग है कि इस प्रकार के धार्मिक प्रतीकों के खिलाफ समाजवादी पार्टी के नेताओं का सार्वजनिक रुख कुछ और होता है।

धर्म से जुड़े प्रतीकों का महत्त्व कम से कम उत्तरप्रदेश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में आज भी है और सड़कों के किनारे तमाम देवी-देवताओं के मंदिर, धर्म से जुड़े प्रतीकों और नारों को सड़कों के किनारे दीवारों पर कहीं भी देखा जा सकता है। दूरदराज़ के गावों और कस्बों में धार्मिक आस्था से जुड़े मेले आदि सालभर होते ही रहते हैं, ऐसे में उनमें आस्था रखने वालों की संख्या कम नहीं है, इसीलिए इनका इस्तेमाल लोकप्रियता हासिल करने के लिए किया जाना काफी सामान्य है। दूसरी ओर राजनीतिक कारणों से ऐसे प्रतीकों का उपयोग अपने विरोधियों का मज़ाक उड़ाने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए किया जाना भी अब सामान्य होता जा रहा है। राजनीति के रंग वाकई में निराले हैं।

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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