स्वतंत्रता दिवस के दिन झंडारोहण समारोह में मुलायम ने जिस तरह अखिलेश के प्रति शिवपाल की नाराज़गी का उल्लेख किया, और यहां तक संकेत दिया कि शिवपाल पार्टी तक छोड़ सकते हैं, उससे समाजवादी पार्टी के समर्थक सकते में हैं. मुलायम ने जब यह कहा तो अखिलेश उनकी बगल में ही कुर्सी पर बैठे थे, लेकिन उनके एक मंत्री रविदास मेहरोत्रा, जो लखनऊ से विधायक हैं, मुलायम की बगल में खड़े थे. जिस तरह मुलायम ने अखिलेश को खरी-खोटी सुनाई, उससे अखिलेश के चेहरे पर असहजता के भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे.
शिवपाल ने मैनपुरी में रविवार को सार्वजनिक मंच से कहा था कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं हैं, सपा के कई लोग जमीन हथियाने और लोगों को परेशान करने में लगे हुए हैं, थानों और सरकारी कार्यालयों में लोगों की बात नहीं सुनी जा रही और यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह सरकार से इस्तीफ़ा दे देंगे. और इसके एक ही दिन बाद लखनऊ में मुलायम ने पार्टी और मीडिया के सामने शिवपाल का साथ देते हुए अखिलेश को काफी कड़े शब्दों में स्पष्ट कर दिया कि शिवपाल केवल उनके (मुलायम के) कहने पर पार्टी और सरकार में बने हुए हैं, और यदि शिवपाल ने पार्टी छोड़ दी तो मुसीबत हो जाएगी.
पार्टी सूत्रों के अनुसार शिवपाल की नाराज़गी तो 2012 में सपा की चुनावी जीत के बाद से बनी हुई है, क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन तब वह मुलायम के समझाने के बाद अखिलेश के मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे. इसके कुछ दिन बाद ही शिवपाल द्वारा बुलंदशहर के डीपी यादव को पार्टी में लाने के प्रयास पर भी अखिलेश ने पानी फेर दिया. पिछले तीन सालों में कई मंत्रियों को मंत्रिमंडल में लेने पर भी यह विवाद बना रहा. कुछ महीने पहले मथुरा के जवाहरबाग कांड पर भी इस विरोध की चर्चा सामने आई थी, और अभी कुछ दिन पहले मुख्य सचिव बनाए जाने के निर्णय पर भी दोनों के बीच एक राय न होने की खबरें भी हैं. एक मंत्री, जिन पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं, का मंत्रिमंडल में बने रहना भी इसी अंतर्विरोध का नतीजा बताया जाता है. मुख्यमंत्री के शिवपाल और वर्तमान मुख्य सचिव के साथ संवादहीनता की चर्चा भी सचिवालय में होती रहती है.
अखिलेश और शिवपाल के बीच के विरोध का सबसे प्रत्यक्ष उदाहारण कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर दिखाई दिया था, जब इस विलय की घोषणा शिवपाल ने एक प्रेस वार्ता में की, जिसमें कौमी एकता दल के अफज़ल अंसारी और अन्य नेता उपस्थित थे, लेकिन अगले ही दिन न केवल अखिलेश ने इस विलय के विरुद्ध स्पष्ट बयान दिया, बल्कि विलय की प्रक्रिया तैयार करने के समर्थक मंत्री बलराम सिंह यादव को बर्खास्त कर दिया. हालांकि शिवपाल ने अपनी नाराज़गी का कोई सार्वजनिक ऐलान तो नहीं किया, लेकिन सूत्र बताते हैं कि तभी से शिवपाल ने 'इस पार' या 'उस पार' की तैयारी कर ली थी.
मुलायम के नज़दीकी सूत्रों का मानना है कि मुलायम अखिलेश द्वारा सरकार चलाने की क्षमता पर तो भरोसा करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि अखिलेश पार्टी के पुराने और धुरंधर लोगों को अपने साथ बनाए रहने में कामयाब नहीं हो पाएंगे, क्योंकि वहां सोच का अंतर बहुत गहरा है. अपराध और थानों में तैनाती को लेकर भी अखिलेश का रुख समाजवादी पार्टी के परंपरागत तरीके से अलग है.
इसके विपरीत, पार्टी के युवा समर्थकों, जिनकी बड़ी संख्या समाजवादी युवजन सभा और लोहियावाहिनी से जुडी है, के बीच अखिलेश बहुत लोकप्रिय हैं, और अखिलेश इन्ही की बदौलत 2017 का चुनाव जीतने का इरादा रखते हैं, लेकिन पिछले कुछ महीनों से मीडिया में शिवपाल की नाराज़गी की खबरें जिस तरह से आती रहीं हैं, उनसे स्पष्ट है कि शिवपाल द्वारा अपनी स्थिति को लेकर प्रयास तेज किए गए हैं. ऐसी ही ख़बरों में कहा गया कि शिवपाल को पार्टी का प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाए जाने का कारण यह था कि शिवपाल की अगुआई में समाजवादी पार्टी के दोबारा सत्ता में आने की संभावनाएं ज्यादा हैं.
चूंकि परिवार में अंतर्विरोध की चर्चा सार्वजनिक हो चुकी है, इसलिए अखिलेश और शिवपाल के प्रति निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं, सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच दुविधा की स्थिति है. वे यह तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें अपने को सत्ता के करीब बनाए रखने के लिए किसका साथ देना चाहिए. मुलायम द्वारा शिवपाल को जुझारू और मेहनती बताए जाने से स्पष्ट है कि वह पूरी तरह शिवपाल के पीछे खड़े हैं.
एक नज़र उन संभावनाओं पर, जो आने वाले दिनों में सामने आ सकती हैं...
- क्या कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की प्रक्रिया फिर शुरू होगी...?
- क्या ऐसी स्थिति को अखिलेश स्वीकार करेंगे या अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे...?
- क्या अखिलेश इस स्थिति में समाजवादी पार्टी भी छोड़ देंगे – अपना दल बनाएंगे या किसी अन्य दल का साथ देंगे...?
- क्या मुलायम शिवपाल को सरकार का मुखिया बना सकते हैं...?
- क्या शिवपाल अपने साथ अखिलेश समर्थकों को रख पाएंगे...?
- मजबूत मंत्री - जैसे मोहम्मद आज़म खान - क्या करेंगे, किधर जाएंगे...?
यह भी संभव है कि ऐसा कुछ भी न हो, और मुलायम एक बार फिर पूरे समाजवादी कुनबे को एक साथ रहने के लिए मना लें, और सार्वजनिक रूप से अखिलेश शिवपाल का आशीर्वाद लेकर चुनाव के लिए साथ-साथ काम करने का वचन दें.
लेकिन एक बात साफ है कि यह पूरा प्रकरण समाजवादी पार्टी के लोगों के लिए अप्रत्याशित है और चूंकि विधानसभा चुनाव कुछ ही महीनों बाद होने हैं, सो, ऐसे में उनके सामने प्रतिबद्धता का संकट खड़ा हो सकता है. इसका चुनावी नुकसान होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
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