जब बजट भाषण में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने देश में 10 लाख तालाब बनाए जाने का दावा किया तो यह गांव फिर आंखों के सामने घूम गया. हमने अनुपम मिश्र की किताबों में तालाबों के महत्व को पढ़ा है. वह होते तो आज इस उपलब्धि पर कितना खुश हो रहे होते...! लेकिन सचमुच यदि देश में इतने तालाब बना ही दिए गए हैं तो हर गांव गोरवा क्यों नहीं हो गया...? चलिए, गोरवा न सही, कम से कम इतना तो ज़रूर हो जाता कि देश में बीते साल भीषण सूखे से लोग आसानी से निपट लेते. सूखे से तो देश के विशालकाय तालाब, यानी बांध भी न बचा पाए, जिन्हें देश में आधुनिक तीर्थ होने का दावा किया जाता रहा है. जिसके लिए देश में लाखों लोगों को विस्थापित किया गया और कीमती जंगल-जमीन को डुबो दिया गया, जिसका ठीक-ठाक मूल्यांकन भी अब तक नहीं हुआ. देश में लाखों तालाब बनाए जाने का यही मॉडल इन बांधों के पहले अपना लिया जाता, तो बहुत संभव था कि इतना पर्यावरणीय नुकसान देश को नहीं होता.
खैर! पहले गोरवा गांव की कहानी जान लीजिए. यह कहानी देवास जिले की है. कभी पानी से मालामाल रहने वाला जिला आधुनिक विकास की इस तरह भेंट चढ़ा कि यहां पर पहली बार रेलगाड़ी से पानी लाया गया था. टोंक खुर्द तहसील के करीब 1,500 की आबादी वाले इस गांव में वर्ष 2006 तक पानी की कमी बहुत बड़ी समस्या थी. उस समय गांव के एक-दो संपन्न किसानों के पास ही ट्रैक्टर थे, लेकिन खेती से उपज इतनी ही, जिससे बमुश्किल पेट पाला जा सके. 2006 में यहां पर पहली बार लोगों ने तत्कालीन कलेक्टर उमाकांत उमराव की कोशिशों से इस संकट से निपटने के लिए तालाब बनाने की मुहिम शुरू की थी. शुरुआत में एक-दो लोग ही आगे आए. 10 साल बाद जब मैं इस गांव में था तो तब तक यह 300 से ज्यादा तालाबों वाला गांव कहलाने लगा.
किसने बदली गांव की तकदीर...? किसी भी गांव वाले से राह चलते पूछ लेंगे तो उसका जवाब होगा - तालाब. खेत-तालाबों ने इस गांव में सूखे को ही खत्म नहीं किया, तकदीर को बदलकर रख दिया. इस गांव के निवासी हैं रणछोड़ जी. रणछोड़ जी हमें अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाकर खेत-खेत बने तालाबों को दिखाते हैं. रास्ते में हर कोई उन्हें 'जय राम जी' की करता है, पूछता है, 'कहां जा रहे हैं...? चाय पीकर जाइये...' उन्हें हर खेत का आइडिया है. एक के बाद एक लाइन से बने तालाब. एक-दूसरे से जुड़े हुए. ऐसे लगभग 25 तालाब आपस में जुड़े हए हैं. इसी तरह दूसरी तरफ भी. इसी मॉडल पर गांव में छोटे-बड़े तालाब बनाए गए. कई खेतों में जमीन के अंदर से पाइपलाइन डाल दी गई है. डेढ़ से दो किलोमीटर तक भी इन्हीं तालाबों से पानी जा रहा है. हर तालाब में पानी है. पानी आया तो लोगों ने मेहनत से खेती की. खेती सुधरी तो संपन्नता खुद-ब-खुद आई. संपन्नता का एक खतरा यह भी होता है कि लोग दूसरी दिशा में चल देते हैं, लेकिन ऐसा यहां नहीं है. गांव में कोई शराब नहीं पीता. लड़ाई-झगड़े आपस में बैठकर सुलझा लिए जाते हैं. गांव के दर्जनों युवा यहां सुबह-शाम दौड़ते हैं, फौज में जाने के लिए. इसी गांव के लांसनायक पवन कुमार की शहादत को याद करने के लिए यहां एक द्वार भी बनाया गया है. गांव में मेडिकल की पढ़ाई करके निकला एक युवक भी इसी गांव में अस्पताल खोलने की योजना बना रहा है. पिछले साल यहां पर ग्रामसभा में 60 परिवारों ने गरीबी रेखा से अपना नाम भी कटवा लिया.
यदि लोगों की खेती सुधर जाए तो बाकी के हालात भी खुद-ब-खुद सुधर जाते हैं. गोरवा गांव हमें यह सीख भी देता है. एक ओर जहां प्रदेश में कुपोषण के हालात चिंताजनक हैं और जिसे ठीक करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ठोस कदम भी उठा रहे हैं, उस दिशा में गोरवा एक आदर्श प्रस्तुत करता है. गोरवा की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता साधना बताती हैं कि उनके गांव में केवल तीन बच्चे कम वजन के हैं, यानी कुपोषित हैं. साधना 15 साल से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं, उनकी आंगनवाड़ी में 100 बच्चे दर्ज हैं, इस तरह से देखा जाए तो गोरवा गांव में केवल तीन प्रतिशत कुपोषण है, जबकि मध्य प्रदेश में 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं.
गोरवा गांव के आसपास के गांव भी उससे सबक ले रहे हैं. सबक तो पूरे देश को लेना चाहिए. यह विकास दिल्ली से चलकर गोरवा नहीं आता. यह गोरवा से चलकर दिल्ली पहुंचा है. इस गांव की झोली में जल संवर्धन के राष्ट्रीय अवार्ड भी हैं.
इसलिए यदि देश में 10 लाख तालाब जमीन पर बन गए होते, उनमें पानी रुक गया होता, तो दूसरे गांवों में पहुंचकर उतनी निराशा नहीं होती, जितनी इस गांव में पहुंचकर खुशी होती है. सचमुच, किसान और किसानी की हालत तो खराब है. उसे आप कर्ज़ दे-देकर ठीक करना चाहते हैं. कर्ज़ की व्यवस्था घातक ही होती है. ज़ोर संसाधन पर ज्यादा होना चाहिए. यह खुशी की बात है कि आप मान रहे हैं - देश में तालाबों का होना और उनमें पानी होना कितना ज़रूरी है.
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.